विपुलाचल पर्वत उपर भगवान महावीर प्रभुनी पहेलवहेली देशना थई हती, गौतमस्वामी अहीं ज गणधरपद
पाम्या हता अने अहीं ज बारअंगनी रचना करी हती. ते उपरांत अहीं राजगृहीमां २३ तीर्थंकरोना समवसरण
थया हता. श्रेणिकराजानी आ राजधानी हती; तेमज मुनिसुव्रतप्रभुना चार कल्याणक अहीं थया हता. आवा पावन
धाममां भगवानना समवसरणनुं स्मरण करतां करतां ने भक्तिगान गातां गातां गुरुदेवनी साथे साथे भक्तजनो
विपुलाचल पर्वत उपर जता हता...जाणे के गुरुदेव साथे भगवानना समवसरणमां जता होईए एवा भावो सौ
भक्तजनोने उल्लसता हता.
विपुलाचल उपर त्रण मंदिरो छे; तेमां महावीर प्रभु वगेरेना प्रतिमाजी तथा चरणकमळ बिराजे छे गुरुदेव
सहित सौ भक्तोए अर्घ चडाव्यो. त्यारबाद भक्ति थई.....
(१) “वीर सभामां अहीं गौतम पधार्या.........
अमृत वरस्या मेह रे....वीरजीनी वाणी
छूटी रे.....”
(२) प्रभुनी वाणी जोर रसाळ....
मनडुं सांभळवा तलसे........
ए स्तवनो गुरुदेवे घणा भावथी गवडाव्यां हता. ते वखते जाणे के विपुलाचल उपर भगवानना
समवसरणनी सभा भराणी होय ने भक्तो दिव्य ध्वनि माटे भगवानने विनवता होय–एवुं भावभर्युं वातावरण
हतुं. त्यां घणा उल्लासथी भक्ति कर्या बाद बीजा अने त्रीजा पर्वतनी यात्रा करी.
यात्रा बाद त्रीजा पर्वतनी तळेटीमां भातुं आपवामां आवे छे, त्यां सौए भातुं खाधुं ने विश्राम कर्यो.
ए रीते त्रण पर्वतनी यात्रा करीने गुरुदेव नीचे पधार्या..केटलाक भक्तजनोए चोथा पहाडनी पण यात्रा करी.
बपोरे जिनमंदिरना चोकमां गुरुदेवनुं सुंदर प्रवचन थयुं. प्रवचन बाद गया अने पटनाना जैन समाज
तरफथी गुरुदेव प्रत्ये एक अभिनंदन पत्र वांचवामां आव्यो हतो अने रात्रे जिनमंदिरमां अद्भुत भक्ति थई हती.
(ता. १–३–प७) महा वद अमासनी सवारमां बाकी रहेली बे टूंकनी यात्राए गुरुदेव संघसहित पधार्या
हता. पहेलां पांचमा पर्वत उपर गया हता. अहीं चोवीस भगवंतोना प्रतिमाजी कोतरेला छे. त्यां दर्शन करीने अर्घ
चडाव्यो, त्यारबाद घणी महान भक्ति थई. पहेलां गुरुदेवे बे स्तवनो गवडाव्यां हता.
आश धरीने अमे आवीया रे......
अमने उतारो भवोदधि पार रे....
जिनराज लगन लागी रे
इत्यादि स्वतनो गुरुदेवे गवडाव्या हता......विधविध तीर्थोनी यात्रामां गुरुदेवने उल्लास थतां वारंवार
भावभीनी भक्ति करावता हता...ने तेथी भक्तोने घणो आनंद थतो हतो. पंचपहाडी उपर पू. गुरुदेवनी भक्ति
बाद पू. बेनश्रीबेने पण घणा उमंगपूर्वक–
“आज तो वधाई मारे समोसरण दरबारजी......ए स्तवन गवडावीने जोरदार भक्ति करावी हती. अहीं
भक्ति बाद, आ पांचमी टूंक उपर नीकळेला पुराणा जिनमंदिरना अवशेषो तेमज बे हजार वर्षो जूना अनेक
दिगंबर जिनप्रतिमाओनुं गुरुदेव सहित सौए अवलोकन कर्यु हतुं. बे हजार वर्षो जूना जिनवैभवने जोतां
गुरुदेवना मुखमांथी अनेक वार उद्गारो नीकळता के जुओ, ईतिहास पण दिगंबर जैनधर्मनी साक्षी पूरे छे.
पंचमपहाडीनी यात्रा बाद गुरुदेव चोथी पहाडी तरफ पधार्या. त्यां जता वच्चे पुराणी गुफाओ आवे छे तेनुं
अवलोकन कर्युं. आ गुफानी दिवालो उपर जिनप्रतिमानी आकृति कोतरेली छे. गुफाना प्रवेशद्वारमां चार जिनप्रतिमा
कोतरेल एक स्तंभ छे. आ विशाळ अने शांत गुफामां प्रवेशतां ज एम थाय छे के अहीं पूर्वे अनेक संतमुनिओ
वस्या हशे ने आत्मध्यान कर्यां हशे.
चोथी पहाडीनुं नाम ‘श्रमणगीरी’ छे; अहीं ७०० मुनिओ वसता हता ने आत्मध्यान करता हता. तेमना
ः १०ः आत्मधर्मः १६१