Atmadharma magazine - Ank 161
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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भगवान महावीरनी निर्वाणभूमिः श्री पावापुरी
स्मरणथी गुरुदेवने पण घणी भावनाओ जागती हती. आ पहाडी उपर गुरुदेवे घणा भावपूर्वक मुनिवरोनी भक्ति
गवडावी हती–
मारा परम दिगंबर मुनिवर आया,
सब मिल दर्शन कर लो,
हां सब मिल दर्शन कर लो.....
बार बार आना मुशकील है,
भावभक्ति उर धर लो.....
हां भावभक्ति उर धर लो.....
गुरुदेवनी भावभीनी भक्ति सांभळीने सौ भक्तो प्रसन्न थया हता...पहाडी उपरथी उतरतां उतरतां पण
गुरुदेव धीमे धीमे मुनिवरोनी भक्ति बोलता हता......
–आम आनंदपूर्वक पंच पहाडी तीर्थधामनी यात्रा पूर्ण थई.
पंच पहाडी तीर्थधाम की जय...
पंच पहाडी तीर्थधाममां विचरेला तीर्थंकरो–संतोने नमस्कार.
जिनवाणी–पावनधामने नमस्कार.
पू. गुरुदेव साथे पवित्र तीर्थधामनी यात्रा थई तेनी खुशालीमां आजे रात्रे जिनमंदिरमां अद्भुत भक्ति
थई हती.
ता. २–३–प७ (फा. सुद १) ना रोज सवारमां श्री जिनेन्द्र भगवाननी भव्य रथयात्रा नीकळी हती.
रथयात्रा बाद श्री जिनेन्द्रदेवनो महाअभिषेक थयो हतो. अने राजगृहीना जैन समाज तरफथी गुरुदेवने
सन्मानपत्र अर्पण करवामां आव्युं हतुं.
कुंडलपुर – नालंदा
बपोरे राजगीरीथी पावापुर तरफ जतां वच्चे कुंडलपुर तथा नालंदा पण गया हता. कुंडलपुरमां
महावीरप्रभुनुं जे जन्मस्थान गणाय छे त्यां जिनमंदिरमां गुरुदेवे भक्ति करावी हती अने पछी बेनश्रीबेने
जन्मकल्याणकनी वधाईनी धून गवडावी हती. नालंदामां बौद्धोनी जूनी विद्यापीठ खोदकाम करतां नीकळेली छे, जेमां
श्री अकलंक–निकलंक गुप्त वेषे भणता हता ने पकडाई जतां तेमने केद कर्या हता....त्यांथी छटकीने जतां, पाछळथी
पकडाई गया ने निकलंकनुं बलिदान देवायुं. पछी तो अकलंक स्वामीए बौद्धोने हरावीने जैनधर्मनो जोरदार प्रभाव
फागणः २४८३
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