Atmadharma magazine - Ank 161
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 25

background image
फेलाव्यो; ते बधो इतिहास आ नालंदा विद्यापीठमां बनेलो, तेथी आ नालंदा विद्यापीठना अवलोकन प्रसंगे
भक्तजनो अकलंक–निकलंकना स्मरणथी लागणीवश बनी जता हता, ने हृदय जैनधर्म प्रत्येनी भक्तिथी भराई
जतुं हतुं, कुंडलपुर अने नालंदा थईने गुरुदेव संघसहित पावापुरी पधार्या.
पावापुरी धामां अद्भुत भक्तिभरी यात्रा
पावापुरीमां धर्मशाळामां महावीरभगवानना १० फुट मोटा खड्गासन प्रतिमाजी बिराजे छे. जे घणी ज
सुंदर अने भाववाही छे. त्यां रात्रे भक्ति थई हती. गुरुदेवे पण भक्तिमां स्तवनो गवडाव्या हता. धर्मशाळामां
बीजा पण अनेक मंदिरो छे. तेम ज २४ भगवंतोना चरणकमळ अने महावीरप्रभुना तथा गौतमगणधरना
चरणकमळ पण छे.
जलमंदिर पद्मसरोवरनी वच्चे आवेलुं छे, जे भगवाननुं निर्वाणस्थान छे.
(ता. ३) फागण सुद बीजः आजे सवारमां जलमंदिरे सामूहिक पूजनभक्ति घणा उल्लासथी थया हता.
पावापुरी जलमंदिरमां वीरप्रभुना तेमज गौतमप्रभु अने सुधर्मप्रभुना चरणकमळ बिराजे छे. सरोवरनी
वच्चे जलमंदिरनुं द्रश्य बहु रळियामणुं लागे छे. त्यां पूजन–भक्ति माटे गुरुदेव साथे भक्तजनो गातां गातां
चाल्या...प्रभुना चरण पासे आवीने बेठा; भावपूर्वक हीरामाणेकनो अर्घ चडाव्यो...गुरुदेवे प्रभुचरणनो अभिषेक
पण कर्यो...पछी भक्ति शरू करतां पहेलां गुरुदेवे कह्युं केः जुओ भगवान अहींथी मोक्ष पधार्या...अहींथी उपर
भगवान बिराजे छे...एम कहीने हाथ ऊंचो करीने सिद्धालय बताव्युं...अने पछी भक्ति शरू करी–
आजे वीरप्रभुजी निर्वाण पदने पामीया रे.....
अहींथी वीरप्रभुजी निर्वाण पदने पामीया रे.....
श्री गौतमगणधरजी पाम्या केवळज्ञान.....
सुरनर आवो आवो निर्वाण महोत्सव उजववा रे.
भक्तिमां भगवानना विरहनी वात आवतां गुरुदेव गदगद थई गया हता.....अने ए गदगदभरेली
भक्ति भक्तोना हैयांने पण हचमचावती हती.
ए भक्ति वखतना स्तब्ध वातावरणमां जाणे के भक्तो गुरुदेवने पूछी रह्या छे के–हे गुरुदेव! भगवान
अहींथी कई रीते–कया मार्गे मुक्ति पधार्या? ते अमने बतावो. त्यारे गुरुदेव भक्तिद्वारा बतावे छे के भगवान
अहींथी समश्रेणी मांडीने सिद्ध थया ने उपर बिराजी रह्या छे.
“अहीं पावापुरीमां समश्रेणी प्रभु आदरी रे.....
मुक्तिमां बिराज्या आप प्रभु भगवंत.....
अहीं भरतक्षेत्रे तीर्थंकर विरहा पडया रे.....
वीर भगवानना पगले पगले मुक्तिमार्गे चालतां चालतां गुरुदेव भक्तोने बतावी रह्या छे के–भगवाने तो
त्रीस वर्षे तप आदर्या ने उग्र आत्मध्यान करी–करीने केवळज्ञान पाम्या....पछी अनेक भक्तोने उगारीने अहींथी
मोक्षधाम सीधाव्याः–
त्रीस वर्षे तप आदर्या.....लीधा केवळज्ञान,
अगणित भव्य उगारीने.....पाम्या पद निर्वाण.....
भगवान पासे बाळकनी जेम भक्ति करतां हाथ जोडीने संतो कहे छे के “हे नाथ!–
अम बाळकनी आपे लीधी नहि संभाळ
अमने केवळना विरहामां मूकी चालीया रे.....
छेवटे बेधडकपणे आत्मसाक्षीथी कहे छे के–हे भगवान! आप मुक्ति भले पाम्या...अमे पण आपनां बाळक
छीए...ने अमे पण आपना शासनने शोभावता शोभावतां आपनी पासे चाल्या आवीए छीए.
–आवा भावपूर्वक गुरुदेवनी भावभीनी भक्ति पूरी थई, ने आवा तीर्थधाममां गुरुदेवनी आवी भक्ति
देखीने सौ भक्तजनोने घणो ज आनंद थयो....
त्यार बाद पू. बेनश्रीबेने पण महाउल्लासथी भक्ति करावी.
निर्वाण महोत्सव थया अहीं.....
वीर प्रभु सिद्ध थया छे.....
वीर प्रभुजी सिद्ध थया छे,
गौतम केवळज्ञान.....वीर प्रभु.
ः १२ः आत्मधर्मः १६१