गौतमस्वामीनी मोक्षभूमिः श्री गुणावा
विपुलाचले महावीर प्रभुनुं अर्हंतपद ने गौतमस्वामीनुं गणधरपद, त्यांथी आगळ आवतां आ पावापुरी
धाममां महावीर प्रभुनुं सिद्धपद अने गौतमप्रभुनुं अर्हंतपद. आ रीते तीर्थंकर–गणधरनी सरस जोडीना
पावनधामोनां दर्शन गुरुदेव साथे थतां सौ भक्तोना अंतरमां बहु ज भक्तिनो आह्लाद थतो हतो.
गुरुदेवने पण भक्तिनी धून जागतां फरीने तेओश्रीए भक्ति गवडावी–
वीर प्रभुजी मोक्ष पधार्या गौतम केवळज्ञान रे
वीरजीनुं शासन झूले रे.....
गुरुदेव भक्तिरूपी दोरीवडे भगवानना शासनने झूलावी रह्या छे–एवुं ए भक्ति वखतनुं वातावरण हतुं,
ने भक्तो भक्तिना तानमां डोलता हता.
भक्ति पछी उमंगभर्या पूजन थया.....गुरुदेव ज्यारे हाथमां श्रीफळ वगेरेने लईने चढावता हता त्यारे ए
द्रश्य वखते समन्तभद्र स्वामीनी ए स्तुति याद आवती हती के “हे जिनेन्द्र! तारा चरणनी यथार्थ सेवना ज्ञानीओ
ज करे छे. आजे गुरुदेवनी साथे साथे जिनेन्द्रदेवनुं पूजन करतां भक्तजनोने जे आनंद थयो तेनुं वर्णन अहीं शुं
थई शके?
पूजनादि बाद, जयजयकारथी वातावरण गाजी ऊठयुं. त्यारबाद भक्तिनी जोरदार धून गातां गातां पू.
बेनश्रीबेन सहित भक्तमंडळे ए पवित्रधामनी प्रदक्षिणा करी....प्रदक्षिणा बाद जमीन पर घूंटणभर थईने
भावभीने चित्ते बंने बेनोए शीर लगावीने नमस्कार कर्या....जाणे के ए नमस्कार मंत्रना बळवडे उपरना सिद्ध
भगवंतोने नीचे उतारीने पोताना हृदयमां पधराव्या.....
एम भक्ति–पूजन करीने पाछा फरतां, पूल उपरथी पसार थती वखते–
“हे वीर तुम्हारे द्वारे पर एक दर्श भीखारी
आया है”
ए भक्तिनी अद्भुत धून जामेली....ने भक्तो एकतान थई गयेला. ते प्रसंग नजरे नीहाळनाराना हैयामां
कोतराई गयो छे....ए वखते भक्तोनी आंखो भक्तिरसथी भीनी थई जती हती.
फागणः २४८३ ः १३ः