Atmadharma magazine - Ank 161
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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पाछां फरतां आ उल्लासभरी यात्रा गुरुदेव साथे थई तेनी “वाहवा जी वाहवा” नी धून गातां हतां–
पावापुरी धाम देख्यां.....वाहवा जी वाहवा.....
मुक्तिना आ धाम देख्यां.....वाहवा जी वाहवा.....
गुरुदेवनी साथे देख्यां.....वाहवा जी वाहवा.....
गुरुदेवे भक्ति करी.....वाहवा जी वाहवा.....
संतो साथे जात्रा थई.....वाहवा जी वाहवा.....
अनंतकाळनी भावना पूरी थई.....
वाहवा जी वाहवा.....
आजे (फागण सुद बीज ने रविवारे) सोनगढमां सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठानो मंगल दिवस, अने
बराबर आजे ज अहीं पावापुरी मोक्षधाममां गुरुदेव साथे अपूर्व भक्तिभरेली यात्रानो प्रसंग बन्यो तेथी सौ
भक्तोने घणो उल्लास थयो.
लगभग १००० भक्तजनो साथे तीर्थयात्रानो आ एक महान प्रसंग छे, ते बाबतनो प्रमोद सौ भक्तजनो
गुरुदेव पासे व्यक्त करता हता....ने आ यात्रा प्रसंगथी गुरुदेवने पण घणो प्रमोद थतो हतो. जलमंदिरनी सामे
वीरप्रभुनी अंतिम देशनानुं (समवसरणनुं) स्थान छे, ते जोवा पण गुरुदेव पधार्या हता. त्यां समवसरण जेवी
रचना (त्रण पीठीका) छे ने तेमां वीरप्रभुना पुराणा (लगभग अढी हजार वर्ष जूना) चरणकमळ छे, त्यां गुरुदेवे
भक्तजनो सहित अर्घ चढाव्यो हतो.
बपोरे पू. गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं. प्रवचनमां गुरुदेव वारंवार तीर्थधामोनो भाववाही उल्लेख करता हता.
ता. ४ (फा. सुद त्रीज) बपोरे पू. गुरुदेव अने संघ पावापुरीथी नीकळीने गुणावा आव्या. गुणावा ते
गौतमस्वामीनी मोक्षभूमि छे; त्यां जिनमंदिरमां मुनिसुव्रतप्रभुना मोटा प्रतिमाजी तेमज गणधरदेवना चरणकमळ
छे; ते उपरांत पावापुरी जेवुं एक नानुं रळियामणुं जलमंदिर पण छे. सरोवर वच्चे जलमंदिरमां गौतम स्वामीना
चरणकमळ शोभे छे. गुणावा उपशांत वातावरणवाळुं सिद्धिधाम छे. अहीं उल्लासपूर्वक भक्ति थई हती, तेमां पू.
गुरुदेवे पण भक्ति गवडावी हती.
अहींथी पू. गुरुदेव गया शहेरमां पधार्या......गया शहेरमां जैन समाजे गुरुदेवनुं ने संघनुं प्रेमपूर्वक भव्य
स्वागत कर्युं. तथा गुरुदेवने अभिनंदनपत्र आपवामां आव्यु हतुं. केटलाक भक्तजनो गुणावाथी सीधा
सम्मेदशिखरजी गयेला ने त्यां रात्रे जिनमंदिरमां भक्ति करी हती.
पू. गुरुदेव ता. ६ (फा. सुद पांचम) नी सवारे लगभग १० वागे सम्मेदशिखरजी धाम (मधुवन) पधार्या;
पवित्र तीर्थधाममां जैनसमाजे उमळकापूर्वक गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं...शाश्वत तीर्थधाममां आवतां गुरुदेवने पण घणी
ज प्रसन्नता थती हती...त्रण–चार हजार श्रोताजनोनी सभामां मांगळिक संभळावतां गुरुदेवे कह्युं के–अनंत
तीर्थंकरो अने संत मुनिवरो अहींथी मोक्ष पाम्या छे, तेथी आ सम्मेदशिखरजी तीर्थ ते मंगळ छे; जुओ,
अहींथी उपर अनंत सिद्धभगवंतो बिराजे छे. आत्मानो ज्ञान–आनंद स्वभाव जे भावथी प्रगटयो ते भाव
पण मंगळ छे. धवलामां तो वीरसेनाचार्य कहे छे के –भविष्यमां मोक्ष पामनार आत्म द्रव्य पण मंगळ छे,
केमके अल्पकाळमां केवळज्ञान थवानुं छे अने जे काळे आत्मा मुुक्ति पाम्यो ते काळ पण मंगळ छे. जेणे
आत्माना ज्ञान–आनंद स्वभावनी प्रतीत करीने पोतामां सम्यग्दर्शन–ज्ञानरूप मंगळ प्रगट कर्युं ते जीव
भगवानने पण पोताना मंगळनुं कारण कहे छे, ने भगवान ज्यांथी मोक्ष पधार्या एवा आ सम्मेदशिखरजी
वगेरे तीर्थधामने पण ते मंगळनुं निमित्त कहे छे. केम के आवी निर्वाणभूमि जोतां तेने मोक्षतत्त्वनुं स्मरण
थाय छे. आ रीते मोक्ष तत्त्वनी प्रतीतमां अने स्मरणमां आ भूमि निमित्त छे तेथी आ भूमि पण मंगल छे.
तेनी जात्रा माटे अहीं आव्या छीए. आ रीते द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव सर्व प्रकारे मांगलिक कर्युं.
ः १४ः
आत्मधर्मः १६१