Atmadharma magazine - Ank 161
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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तीर्थधाममां आवुं उल्लासभर्युं मांगळिक सांभळीने सौने घणो आनंद थयो हतो, गुरुदेव आ तीर्थधाममां
पधारतां अहींनुं आखुं वातावरण घणुं उमंगभर्युं ने प्रफुल्लतामय लागतुं हतुं. अहीं संघमां लगभग १प०० जेटला
भक्तजनो थई गया हता, ने गुरुदेव साथे आ शाश्वत सिद्धिधामने भेटवा सौनां हृदय आतुर थई रह्या हता....कयारे ए
सिद्धिधामने भेटीए? ने कयारे गुरुदेव साथे यात्रा करीने ए सिद्धिधामने देखीए? एम सौ भावना भावी रह्या हता.
मंगळिक बाद भोजनादि करीने पू. कानजी स्वामी तरत ज ईसरी पं. गणेशप्रसादजी वर्णीजीने मलवा माटे
गया हता....एक बीजाना मिलनथी बंनेने खूब प्रसन्नता थई हती, ने वात्सल्यपूर्वक लगभग अडधी कलाक
वातचीत थई हती....ए सिवाय सम्मेदशिखरजी धाममां फरीने पण अनेक वार बंनेनुं मिलन अने वातचित थया
हता. वर्णीजीए प्रेमपूर्वक कह्युं हतुं के
‘इनकी प्रसन्न मुद्रा मुझे बहुत पसंद आई, और ऐसा लगा कि इस
आत्माके द्वारा समाजका कल्याण होगा।’ अने आप स्पष्ट कहेता हता के ईसका विरोध नहि करना चाहिए. आ
उपरांत अनेक विद्वान पंडितो पण गुरुदेवना परिचयमां आव्या हता ने गुरुदेवना परिचयथी खूब प्रसन्न अने
प्रभावित थया हता. पं. बंसीधरजी, पं. कैलासचंद्रजी, पं. फूलचंदजी वगेरेए घणो प्रेम बताव्यो हतो.
बपोरे प्रवचनमां सभानुं द्रश्य घणुं भव्य हतुं. त्रण मुनिओ, बे अर्जिकाओ, अनेक क्षुल्लक, ब्रह्मचारीओ,
घणा विद्वानो तेमज प्रतिष्ठित गृहस्थो अने त्रणचार हजार जेटला श्रोताजनोथी सभा घणी सुशोभित लागती हती;
ने
नमः समयसाराय ए श्लोक उपर अद्भुत भावभर्युं प्रवचन थयुं हतुं. सम्मेदशिखरमां आवी अद्भुत सभा
अने आवा मोटा संघसहित आवी यात्रा ते महान प्रसंग बन्यो.
रात्रे जिनमंदिरमां घणा उल्लासपूर्वक भक्ति थई हती.
फागण सुद छठ्ठ (ता. ७) ना रोज सवारमां पू. गुरुदेव भक्तजनो सहित तळेटीना जिनमंदिरोना दर्शने
पधार्या हता.
सम्मेदशिखरजी जेवा महान तीर्थधामने शोभावे एवो तळेटीनो अद्भुत जिनवैभव जोईने गुरुदेव अने
सौ प्रसन्न थया हता. सुंदर कारीगरीवाळो, मानस्तंभ, पार्श्वनाथ प्रभुना उपशांत रसमां झूलता विशाळ प्रतिमाजी,
पुष्पदंत भगवान, चंद्रप्रभु भगवान, सहस्रकूट जिनालय, चोवीस खड्गासन भगवंतो तेमां महावीर प्रभुना मोटा
प्रतिमाजी, नंदीश्वर जिनधामनी विशाळ रचना, सीमंधरप्रभुना चरणकमळ, वगेरे अद्भुत जिनेन्द्रवैभव छे तेना
भक्तिपूर्वक दर्शन कर्या.
त्यारबाद जिनमंदिरमां समूह पूजन थयुं, जेमां गुरुदेवे पण भाग लीधो हतो. सम्मेदशिखरजी जेवा महान्
तीर्थधाममां गुरुदेव सहित प०० उपरांत भक्तजनो एकसाथे धामधूमथी ज्यारे जिनेन्द्र भगवाननी पूजा करता
हता त्यारनुं द्रश्य घणुं भक्तिप्रेरक हतुं. सम्मेदशिखर धामनी तेमज सिद्ध भगवाननी वगेरे अनेक पूजाओ थई हती.
बपोरे प्रवचन थयुं हतुं. अहीं प्रवचनो खूब ज भावभरेला थता हता...अने ए भावभर्या प्रवचनो सांभळीने
हजारो श्रोताजनो तेम ज विद्वानो पण मुग्ध थई जता हता.
“हवे आवती काले तो सम्मेदशिखरजी उपर जवानुं छे, त्यां उपरना सिद्धभगवान देखाडशुं” एम गुरुदेव
प्रवचनमां वारंवार भावपूर्वक उल्लेख करता हता.
शाश्वत तीर्थधामनी अपूर्व यात्रा
फागण सुद सातम (ता. ८ शुक्रवार)ः आजे गुरुदेवनी संघसहित सम्मेदशिखरजी तीर्थधामनी यात्रानो
महान दिवस! अष्टाह्निका पण आजथी प्रारंभ थाय छे, ते उपरांत सुपार्श्वनाथ भगवानना मोक्षकल्याणकनो पण
आजे मंगलदिन छे, चंद्रप्रभुना कल्याणकनो पण आजे दिवस छे, आवा मंगल दिवसे गुरुदेव साथे शाश्वत
तीर्थधामनी यात्रा करतां सौ भक्तोने घणो आनंद थयो हतो.
रात्रे बे वागतां तो पू. गुरुदेव तैयार थई गया......ने सिद्धभगवंतोने याद करीने, ए शाश्वत सिद्धिधामनी
यात्रानो मंगल प्रारंभ कर्यो....सेंकडो भक्तजनो पण साथे चाल्या.....लगभग पांच वागतां हजार जेटला भक्तजनो
सहित गुरुदेव उपर पहोंची गया......आजनी आ महामंगल यात्रा बाबत गुरुदेव खूब प्रसन्नतापूर्वक वारंवार चर्चा
करता हता.
फागणः २४८३
ः १पः