Atmadharma magazine - Ank 161
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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सौथी पहेली कुंथुनाथ भगवाननी टूंक आवे छे. त्यां दर्शन अने चरणस्पर्श करीने सौए अर्घ चडाव्यो.....
सम्मेदशिखरजी तीर्थ उपरथी आ चोवीसीना २० तीर्थंकर भगवंतो तेमज करोडो मुनिवरो मोक्ष पाम्या छे; उपर २प
टूंको छे. तेमां भगवानना चरणकमळ बिराजे छे. पहेली टूंके शरूआतमां पू. गुरुदेवे एक स्तवन गवडाव्युं हतुं.....तेमां
वच्चे कह्युं केः जुओ, अहींथी अनंता तीर्थंकरो ने मुनिओ मोक्ष पधार्या छे, ते अनंता सिद्ध भगवंतो अत्यारे
उपर बिराजी रह्या छे.....उपर पंक्तिमां अनंत सिद्ध भगवंतो बिराजे छे, तेनां अहीं स्मरण थाय छे.....
आजे आ महामंगळ प्रसंग छे.
* अहींथी अनंता जीवो मोक्ष पाम्या छे तेथी आ भूमि मंगळ छे.
* आजे भगवानना मोक्षनो दिवस छे तेथी आ काळ पण मंगळ छे.
* आत्मद्रव्य अल्पकाळमां मोक्ष पामनार छे ते द्रव्य पण मंगळ छे.
* अने आजनो भाव पण मंगळ छे.
आ रीते आपणे बधुं मंगळ छे.
गुरुदेवना श्रीमुखेथी, शाश्वत तीर्थराजनी यात्राना प्रारंभमां आ प्रमाणे मांगळिक सांभळतां सौ
भक्तजनोए आनंदपूर्वक हर्षनाद व्यक्त कर्यो हतो.
त्यार बाद भक्ति चालतां चालतां गुरुदेव कहे के–आ कुंथुनाथ प्रभुनी पहेली टूंक छे. “कूंथु” नो अर्थ पृथ्वीमां
स्थित; ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत गुणोस्वरूप चैतन्य–पृथ्वीमां भगवान स्थिर रहेनारा छे. आम तो अहींनी कांकरी–
कांकरीए अनंता जीवो मोक्ष गया छे, पण नजीकना काळने हिसाबे वर्तमान चोवीसीमां श्री कुंथुनाथ भगवान अहींथी
मोक्ष गया छे. अनंता सिद्ध भगवंतो अहीं आपणा शीर उपर बिराजे छे; मोक्षपद जगतमां सौथी श्रेष्ठ छे तेथी तेओ
लोकमां सौथी श्रेष्ठ–ऊंचा स्थाने बिराजे छे. इत्यादि घणा घणा प्रकारे गुरुदेव सिद्ध भगवंतोनो महिमा भक्तजनोने
समजावता हता....ने “आवा सिद्धभगवंतोने तमारा हृदयमां स्थापीने तेमनुं ध्यान करो.” एवी प्रेरणा भक्तोना
हृदयमां जगाडता हता. त्यारबाद पू. बेनश्रीबेने पण नवा नवा स्तवनो द्वारा अद्भुत भक्ति करावी हती. तीर्थधाम
हजारो भक्तोथी उभराई गयुं हतुं.....ने चारे कोरना रस्ता यात्राळुओथी छवाई गया हता.
एक पछी एक टूंकनी यात्रा करता करता, ने भक्तिपूर्वक अर्घ चडावता चडावता, सुपार्श्वनाथ प्रभुनी टूंके
आव्या...आ भगवाननो आजे मोक्षकल्याणक होवाथी अहीं खास भक्ति थई. गुरुदेवे सुपार्श्वनाथप्रभुना
चरणकमळनो भावपूर्वक अभिषेक कर्यो.....ने पछी “हुं एक शुद्ध सदा अरूपी.....ज्ञानदर्शनमय खरे” ए धून
बोल्या....तेमज “ अपूर्व अवसर” नी केटलीक गाथाओ घणा ज उपशांत भावथी बोल्या हता..... ते वखतनुं
वातावरण भक्तिथी ने उपशांत भावनाथी छवाई गयुं हतुं.
त्यारबाद छेल्ली पार्श्वनाथ भगवाननी टूंके पण पू. गुरुदेव ए स्तवनो भक्तिपूर्वक गवडाव्या हता. छेल्ले
पू. बेनश्रीबेने एक स्तवन गवडाव्युं हतुं......ने आ रीते घणा आनंद अने जयजयकारपूर्वक पू. गुरुदेवनी संघसहित
शाश्वत तीर्थधामनी यात्रा पूर्ण थई हती.....
शाश्वत तीर्थधाम श्री सम्मेदशिखरजी धामकी जय हो.
ः १६ः आत्मधर्मः १६१