Atmadharma magazine - Ank 162
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २४८३ आत्मधर्म : ११ :
– परम शांति दातारी –
ध्त्
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’ उपर
परमपूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना –
भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(३)
[वीर सं. २४८२ वैशाख वद–४ समाधिशतक गा. ३]
–ए प्रमाणे पहेलां श्लोकमां सिद्ध भगवानने तथा बीजा श्लोकमां अरहंत भगवानने नमस्कार करीने
हवे त्रीजा श्लोकमां श्री पूज्यपादस्वामी कहे छे के जे केवळ सुखनो अभिलाषी छे एवा मोक्षार्थी जीवने माटे हुं
कर्ममलथी विभक्त एवा सुंदर आत्मानुं स्वरूप कहीश:–
श्रतेन लिंगेन यथात्मशक्ति–
समाहितान्तःकरणेन सम्यक्।
समीक्ष्य कैवल्यसुखस्पृहाणां
विविक्तमात्मानमथाभिधास्ये ।।३।।
शास्त्रकार श्री पूज्यपादस्वामी कहे छे के: हुं श्रुतथी एटले के कुंदकुंदभगवान वगेरे पूर्वाचार्योए रचेला
शास्त्रोथी, तथा लिंगथी एटले युक्ति–अनुमानथी, अने आत्मशक्ति अनुसार चित्तनी एकाग्रताथी सम्यक्प्रकारे
जाणीने तथा अनुभवीने, भिन्न आत्मानुं स्वरूप हवे कहीश. कोने माटे कहीश? के जे जीव केवळ आत्माना
सुखनो ज अभिलाषी छे, विषयोथी पार एवा अतीन्द्रिय चैतन्य आनंदनी ज जेने भावना छे, एवा भव्य
जीवोने माटे हुं भिन्न आत्मानुं स्वरूप कहीश.
जुओ, जेमना चरणकमळ देवोथी पूज्य छे एवा पूज्यपादस्वामी पोते आत्मानो अनुभव करतां करतां
आ रचना करे छे. तेओ पंदर–पंदर दिवसना उपवास