जगतना जीवोने–जेने सुख जोईतुं होय तेणे–आ परथी भिन्न शुद्ध आत्मा ज जाणवा योग्य छे, तेने
शास्त्रोमां संतोनो उपदेश छे. सर्व उपदेशनुं रहस्य शुं? के शुद्ध आत्मानी सन्मुख थईने तेने जाणवो. ते ज सर्व
शास्त्रोनो सार छे. आ सिवाय बहारना बीजा उपायथी सुख थवानुं जे कहेता होय ते उपदेशक पण साचा नथी,
ने तेनो उपदेश ते हितोपदेश नथी. हितोपदेश तो आ छे के तुं तारा शुद्ध आत्माने जाणीने तेनी सन्मुख था.
केम थाय, मारा आत्मामां शांतिनुं वेदन केम थाय–एवी जेना अंतरनी ऊंडी अभिलाषा छे ते जीवने अहीं शुद्ध
आत्मानुं स्वरूप संभळावे छे.
सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।।’
बाकी बधा संयोगलक्षण भाव मुजथी बाह्य छे.
बाकीना सर्वे संयोगलक्षणरूप भावो माराथी बाह्य छे.
आ रीते कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे संतोए, नियमसार, समयसारादि परम आगमोमां शुद्धात्मानुं स्वरूप जे
तेओ भिन्न होय छे, –जेमके जळ अने अग्निना लक्षण (शीत अने उष्ण) भिन्न भिन्न होवाथी तेओ प्रसिद्धपणे
जुदा छे. आत्मा उपयोगस्वरूपथी लक्षित छे अने शरीरादि तेनाथी विरुद्ध एवा अनुपयोग–जड स्वरूपे लक्षित
छे, तेथी तेने जुदापणुं छे. ए ज प्रमाणे रागादि भावोथी पण ज्ञाननी भिन्नता छे, केमके बंनेना लक्षण जुदा छे.
–ईत्यादि प्रकारे युक्ति तथा अनुमानथी पण हुं भिन्न आत्मानुं स्वरूप कहीश. –कोने? के जे जीव केवळ
अतीन्द्रिय सुखनो अभिलाषी छे तेने.
जे जीव आत्माना अतीन्द्रिय सुखनो अभिलाषी छे तेने माटे हुं शुद्ध आत्मानुं स्वरूप कहीश–एम
मारा अंतरना अनुभवथी मारी आत्मशक्ति अनुसार हुं शुद्ध आत्मानुं कर्मादिथी भिन्न स्वरूप कहीश. कोने माटे
कहीश? के जेने आत्माना सुखनी अभिलाषा छे तेने माटे कहीश.
भिन्न आत्मानुं स्वरूप समजवानी जिज्ञासा ज नथी, एटले एवा जीवोने श्रोता तरीके लीधा ज नथी.
स्वरूप बतावे छे, केम के एवा आत्मानुं स्वरूप जाणवाथी ज अतीन्द्रिय सुख थाय छे; माटे आगमथी, युक्तिथी
ने अनुभवथी आवा शुद्ध आत्मानुं स्वरूप जाणवा योग्य छे.