: १४ : आत्मधर्म चैत्र : २४८३
अगम:
मारो आत्मा एक शुद्ध ज्ञानदर्शन लक्षणस्वरूप छे, आ सिवाय जे बाह्य भावो रागादि शरीरादि–छे ते
बधाय माराथी भिन्न संयोग लक्षणवाळा छे, –आ रीते लक्षण द्वारा परथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मा आगमोमां
बताव्यो छे, ते अनुसार जाणीने हुं तेनुं वर्णन करीश.
अनुमान – युक्ति:
देह अने आत्मा भिन्न छे, केम के बंनेना लक्षण भिन्न छे, जेनां लक्षणो जुदां होय ते चीजो जुदी होय छे,
जेम के अग्नि अने पाणी; आत्मा तो उपयोग–लक्षणी छे ने देहादि तो उपयोग रहित अचेतन छे, माटे बंने
भिन्नभिन्न छे. कोईने देह नानो होय छतां बुद्धि घणी होय, ने कोईने देह मोटो होय छतां बुद्धि थोडी होय–एम
देखाय छे; जो देह अने बुद्धि भिन्न भिन्न न होय तो एम बने नहि. माटे देह तो जड छे, ने बुद्धि एटले के ज्ञान
ते तो आत्मानुं लक्षण छे, ए रीते देह अने आत्मा भिन्नभिन्न छे. –आ प्रमाणे युक्तिथी हुं देहादिथी भिन्न
आत्मानुं स्वरूप कहीश.
देहादिनी क्रियावडे आत्मा लक्षित नथी थतो, तेनाथी तो जड लक्षित थाय छे. आत्मा तो ज्ञानलक्षण वडे
लक्षित थाय छे. –ए रीते बंने भिन्न छे.
वळी अंदर राग–द्वेषादि भावो थाय छे ते पण खरेखर आत्माना ज्ञानलक्षणथी भिन्न छे; केम के रागद्वेष
तो आकुळता लक्षणवाळा छे, ते स्व–परने जाणता नथी, बहिरमुख भाव छे, ने ज्ञानस्वभाव तो शांत अनाकुळ
छे, अंतर्मुख थवानो तेनो स्वभाव छे, स्वपरने जाणवानो तेनो स्वभाव छे, आ रीते भिन्न लक्षण द्वारा
रागादिथी ज्ञानने भिन्न जाणीने, ते ज्ञानलक्षणवडे आत्माने रागादिथी भिन्न ओळखवो, सर्व प्रकारना लक्षणवडे
अनुमानथी–युक्तिथी आत्माने देहादिथी जुदो ने रागादिथी जुदो ज्ञानदर्शनस्वरूप नक्की करवो.
चित्तनी एकाग्रता – अनुभव
आगमथी अने युक्तिथी जे ज्ञानस्वरूप आत्मानो निर्णय कर्यो तेमां एकाग्र थईने तेनो साक्षात्
अनुभव कर्यों, –आवा अनुभवपूर्वक हुं भिन्न आत्मानुं स्वरूप बतावीश;–कोने? के जे आत्माना आनंदनो
अभिलाषी छे तेने!
आ रीते आगमथी युक्तिथी ने अनुभवथी शुद्ध आत्मानुं स्वरूप कहेवानी प्रतिज्ञा करी.ा३ा
सं तो नो सं दे श
धर्म माटे बाह्यसाधनोनी शोधमां भटकता जीवोने संतोनो संदेश
छे के –
हे जीव शुद्ध आत्मस्वभावनी प्राप्ति माटे तारा स्वभाव सिवाय
बीजा कोई साधनो साथे तारे खरेखर संबंध नथी, शुद्ध – अनंत
शक्तिवाळो तारो ज्ञानस्वभाव ज तारा धर्मनुं साधन छे, तेथी
सम्यग्दर्शन – ज्ञान – चारित्ररूप धर्मनी प्राप्तिने माटे तुं अनंतशक्तिसंपन्न
तारा ज्ञानस्वभावने एकने ज साधनपणे अंगीकार कर. ने एना
सिवाय बीजा कोई पण साधने शोधवानी व्यग्रता छोड. आत्मा
सिवाय बीजा साधने शोधवुं तेमां तारी परतंत्रता छे. सर्वप्रकारे
साधनरूप थईने स्वयं धर्मरूपे परिणमवाने समर्थ एवा तारा ‘स्वयंभू
भगवान’ ने ज अंतर्मुख थईने शोध. बीजाुं कांई शोध मा!