काम–भोग–बंधननी कथा
परथी जुदा एकत्वनी
अनंत जन्ममरणनो जेनाथी अंत आवे–एवा चैतन्य स्वरूपनी वात जीवे कदी प्रेमथी सांभळी नथी, तेनो
परिचय कर्यो नथी, तेथी ते दुर्लभ छे. जीवे क्यारेक शास्त्रोनुं भणतर कर्युं तो ते पण वेदीयानी जेम भणी गयो,
पण तेना मर्मने न समज्यो. जेम लाकडामां अग्नि छे ते ईन्द्रियोथी देखातो नथी पण ज्ञानथी ज तेनो निर्णय
थाय छे; तेम आ देहरूपी लाकडामां चैतन्यज्योत आत्मा रहेलो छे, ते आत्मा ईन्द्रियोवडे न देखाय, पण
अंतरना ज्ञानवडे ज ते ओळखाय छे. आवा आत्मस्वरूपने ओळख्या वगर जीव अनंत दुःख पाम्यो छे.
सत्समागमे आत्माना आनंदस्वरूपनुं वारंवार श्रवण करीने तेनो प्रेम अने निर्णय करवो जोईए. जीवे पूर्वे
बधुं कर्युं छे पण आत्माने समजवानी कदी दरकार करी नथी.
आत्मा दर्शावे छे, तेने जो ओळखे तो ज शास्त्रने खरेखर भण्यो कहेवाय.
छे, अंदरना कर्मरूपी काचलांथी पण भिन्न छे ने रागरूपी रताशथी पण ते भिन्न छे. आवा आत्मानो अनुभव
करतां अंदरमां अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे तेनुं नाम धर्म छे.
काळथी संसारमां रखडतां तें शुं कर्युं? शुं तें एकला पाप ज कर्यां छे? –ना; पाप तेमज पुण्य पण तें अनंतवार
कर्यां; छतां हजी जन्ममरणथी तारो छूटकारो न थयो. एक सेकंड पण जो धर्म करे तो अल्पकाळमां जन्ममरणथी
छूटकारो थया विना रहे नहि. जन्म–मरणथी छूटकारो केम थाय तेनी आ वात छे. आ समजवुं तारे बाकी रह्युं
छे.
अज्ञानी पैसा वगेरेमां सुख मानीने ममता करे छे, ते ममताना दुःखनुं वेदन तेने पोतामां थांय छे, पण पैसा
कांई तेना आत्मामां आवी जता नथी, ते तो बहार ज रहे छे. लोको कहे छे के “आनी पासे करोड रूपीया छे.”
ज्ञानी कहे छे के एनी पासे करोड रूपीया नथी पण करोड रूपीयानी ममता तेनी पासे छे. करोड रूपीया ते तो जड
पुद्गल छे, ते कांई आत्मामां आवता नथी.
आनंद नथी. अरे, चैतन्यने चूकीने जेने बाह्य पदार्थोमां रस पड्यो छे तेओ चैतन्यना अपूर्व आनंदने जाणता
नथी. भगवान कहे छे के तारो आत्मा पण मारा आत्मा जेवो ज छे; भगवान थवानी तारामां ताकात छे; माटे
तुं एक वार तारा आत्मानी ओळखाण