Atmadharma magazine - Ank 162
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म चैत्र : २४८३
श्रुत परिचित अनुभूत सर्वने
काम–भोग–बंधननी कथा
परथी जुदा एकत्वनी
उपलब्धि केवळ सुलभ ना. (प)
आत्मानो अनुभव करतां जे अतीन्द्रिय शांतिनुं वेदन थाय छे तेनी झांई पण जीवने कदी आवी नथी.
आत्माने बंधन करनारी एवा विषय–कषायोनी ज कथा सांभळी छे, तेनो ज प्रेम अने परिचय कर्यो छे; पण
अनंत जन्ममरणनो जेनाथी अंत आवे–एवा चैतन्य स्वरूपनी वात जीवे कदी प्रेमथी सांभळी नथी, तेनो
परिचय कर्यो नथी, तेथी ते दुर्लभ छे. जीवे क्यारेक शास्त्रोनुं भणतर कर्युं तो ते पण वेदीयानी जेम भणी गयो,
पण तेना मर्मने न समज्यो. जेम लाकडामां अग्नि छे ते ईन्द्रियोथी देखातो नथी पण ज्ञानथी ज तेनो निर्णय
थाय छे; तेम आ देहरूपी लाकडामां चैतन्यज्योत आत्मा रहेलो छे, ते आत्मा ईन्द्रियोवडे न देखाय, पण
अंतरना ज्ञानवडे ज ते ओळखाय छे. आवा आत्मस्वरूपने ओळख्या वगर जीव अनंत दुःख पाम्यो छे.
सत्समागमे आत्माना आनंदस्वरूपनुं वारंवार श्रवण करीने तेनो प्रेम अने निर्णय करवो जोईए. जीवे पूर्वे
बधुं कर्युं छे पण आत्माने समजवानी कदी दरकार करी नथी.
ज्ञान अने आनंदनी सत्ता मारा आत्मामां छे, बहार नथी. आवा आत्माना लक्ष वगर शास्त्रो भणवा
छतां अज्ञानी जीव संसारमां ज रखडे छे. खरेखर तो ते शास्त्रने भण्यो ज नथी. शास्त्रो तो ज्ञानानंदस्वरूप
आत्मा दर्शावे छे, तेने जो ओळखे तो ज शास्त्रने खरेखर भण्यो कहेवाय.
आत्मा देहथी भिन्न चैतन्यस्वरूप छे. जेम श्रीफळमां सफेद मीठुं टोपरुं छे ते उपरना छालाथी, अंदरनी
काचलीथी तथा राती छालथी जुदुं छे, तेम आ आत्मा ज्ञान अने आनंदनुं श्रीफळ छे; ते देहरूपी छालाथी भिन्न
छे, अंदरना कर्मरूपी काचलांथी पण भिन्न छे ने रागरूपी रताशथी पण ते भिन्न छे. आवा आत्मानो अनुभव
करतां अंदरमां अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे तेनुं नाम धर्म छे.
वस्तुस्वभावः धर्मः एम भगवाने कह्युं छे;
आत्मानो आनंद स्वभाव छे. ते आनंदनुं वेदन थाय तेनुं नाम धर्म छे.
जुओ, भाई! धर्मनी आ व्याख्या अलौकिक छे. लोको पुण्यने धर्म मानी रह्या छे, तेनाथी आ व्याख्या
जुदी छे. पुण्य अनंतवार तुं करी चूक्यो पण ते धर्मनुं स्वरूप कदी जाण्युं नथी. भाई, तुं विचार तो कर के अनंत
काळथी संसारमां रखडतां तें शुं कर्युं? शुं तें एकला पाप ज कर्यां छे? –ना; पाप तेमज पुण्य पण तें अनंतवार
कर्यां; छतां हजी जन्ममरणथी तारो छूटकारो न थयो. एक सेकंड पण जो धर्म करे तो अल्पकाळमां जन्ममरणथी
छूटकारो थया विना रहे नहि. जन्म–मरणथी छूटकारो केम थाय तेनी आ वात छे. आ समजवुं तारे बाकी रह्युं
छे.
शास्त्रोनुं भणतर जुदी चीज छे ने अंतरमां आत्मानो अनुभव जुदी चीज छे. शास्त्र भणतर पण जीवे
अनंतवार कर्युं, पण वास्तविक आत्मा शुं चीज छे तेनो अनुभव कदी कर्यो नथी; रागनो ज अनुभव कर्यो छे.
अज्ञानी पैसा वगेरेमां सुख मानीने ममता करे छे, ते ममताना दुःखनुं वेदन तेने पोतामां थांय छे, पण पैसा
कांई तेना आत्मामां आवी जता नथी, ते तो बहार ज रहे छे. लोको कहे छे के “आनी पासे करोड रूपीया छे.”
ज्ञानी कहे छे के एनी पासे करोड रूपीया नथी पण करोड रूपीयानी ममता तेनी पासे छे. करोड रूपीया ते तो जड
पुद्गल छे, ते कांई आत्मामां आवता नथी.
जीवे बहारना पदार्थोनी समजण करी, –हीरा मोतीनी किंमत करी, पण अंतरमां आत्मा शुं चीज छे,
चैतन्य हीरो केवो छे–तेनी किंमत कदी जाणी नथी.
आजे विहारनो पांचमो दिवस छे ने आ पांचमी गाथा वंचाय छे. पद्मनंदी स्वामी आ पांचमी गाथामां
कहे छे के–अरे प्रभो! जेम लाकडामां अग्नि भरेलो छे तेम तारा आत्मामां आनंद भर्यो छे. बहारमां क्यांय तारो
आनंद नथी. अरे, चैतन्यने चूकीने जेने बाह्य पदार्थोमां रस पड्यो छे तेओ चैतन्यना अपूर्व आनंदने जाणता
नथी. भगवान कहे छे के तारो आत्मा पण मारा आत्मा जेवो ज छे; भगवान थवानी तारामां ताकात छे; माटे
तुं एक वार तारा आत्मानी ओळखाण