सुधी शुभ भाव करवानो उपदेश केम आपता नथी?
सम्यग्दर्शनथी ज थाय छे. अशुभ तेमज शुभ ए बंने प्रकारना भावो तो जीव
अनादिकाळथी उपदेश वगर पण करतो ज आव्यो छे, पण तेनाथी कांई
भवभ्रमणनो अंत आवतो नथी, तेथी तेना उपर शुं वजन देवुं!! शुभराग पण
अपराध छे, विकार छे, तेनी रुचि करवानुं केम कहेवाय? जेम ‘अमृत न मळे तो
तुं झेर खाजे’ एम केम कहेवाय? हा, एम कहेवाय के अमृत न मळे त्यांसुधी
तेने ज मेळववानो प्रयत्न करजे, पण झेर तो खाईश नहि. –तेम सम्यग्दर्शन न
थाय तो तेणे सम्यग्दर्शननो प्रयत्न करवो, पण रागने तो धर्म न ज मानवो.
रागने धर्म मानवो ते तो मिथ्यात्वरूप झेरनुं सेवन छे, माटे जेणे भवथी छूटवुं
होय तेने माटे तो पहेलांं सम्यग्दर्शननो ज उपदेश छे.
ऊंची जातना शुभभावो तो सहेजे थई जाय छे, एटले तेने तेना उपदेशनी
मुख्यता नथी. जेम अनाज पाकतां राडां पण साथे पाकी जाय छे, पण खेडूतनो
प्रयत्न अनाज माटे छे, राडां माटे नथी; तेम सम्यग्दर्शन वगेरेने साधतां साधतां
वच्चेनी भूमिकामां ऊंची जातनो शुभराग पण आवी जाय छे, पण धर्मीनो
प्रयत्न तो सम्यग्दर्शनादि माटे छे, राग माटे तेनो प्रयत्न नथी, तेमज ते रागने
धर्म मानता नथी.
तो तेना शुभनी शी किंमत? तेणे आत्मानुं शुं हित कर्युं? –अहीं तो आत्मानुं
हित थाय ने भवभ्रमणनो अंत आवे–एवी वात छे. जेनाथी आत्मानुं
भवभ्रमण न अटके तेनी शी किंमत?