: ४ : आत्मधर्म चैत्र : २४८३
आत्मप्राप्तिनी दुर्लभता
[गोलाणा गाममां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन: कारतक वद ८]
(तत्त्वज्ञानतरंगिणी गाथा: अध्याय प, गा: ४)
शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मानो जेने प्रेम छे ने तेनी प्राप्तिनी भावना छे एवो जिज्ञासु जीव एम विचारे
छे के अरे! कल्पवृक्ष अने चिंतामणि तथा कामधेनु वगेरे में अनंतवार पूर्वे प्राप्त कर्यां; परंतु मारुं शुद्ध
चैतन्यरत्न में कदी प्राप्त कर्युं नथी.
आ मनुष्य लोकनी वच्चे जंबूद्वीप छे, तेनी वच्चे मेरु–पर्वत छे; तेनी आसपास जुगलीया मनुष्यो थाय
छे; जेमणे पूर्वे विशेष दानादि कर्या होय ते जुगलीयामां जन्मे छे; तेने त्यां कल्पवृक्ष होय छे ते ईच्छित
वस्तुओ–वस्त्र वगेरे आपे छे. आवा कल्पवृक्ष जीवने अनंतवार मळ्या पण चैतन्यस्वरूप आत्मानी प्राप्ति कदी
करी नथी.
अनंतवार खजाना मळ्या एक क्षणमां करोडो रूपिया मळे एवा निधान मळ्या, –पण आ चैतन्य
निधानना भान वगर जीव संसारमां ज रखडी रह्यो छे. अरे हुं कोण? एनो जीवने विचार पण आवतो नथी.
चिंतामणी रत्न एटले तेने हाथमां राखीने जे चिंतवो ते मळे, –एवुं चिंतामणि रत्न जीवने अनंत वार मळ्युं,
पण ते तो जड मळ्युं; चैतन्यरत्न शुं छे ते कदी न जाण्युं. आ आत्माने पोतामां ज शांति छे; बहारमांथी शांति
आवती नथी पण आत्माना स्वभावमां ज शांति छे. जेम अफीणमां कडवाश बहारथी नथी आवती, पण
अफीण पोते ज कडवुं छे, साकरमां गळपण बहारथी नथी आवतुं पण साकर पोते गळी छे; तेम आत्मा पोते
ज्ञान अने आनंदस्वरूप छे. तेवुं ज्ञान के आनंद बहारथी नथी आवता पण पोतामां ज छे. आवा
ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने चिंतववो ते ज शांतिनो उपाय छे. आवो चिंतामणि जेवो अवतार पामीने जीव
पोताना स्वरूपनुं चिंतन करतो नथी ने बहारना विषयोनी चिंतामां ज तेने वेडफी नांखे छे. तेनुं द्रष्टांत: एक
माणसने हाथमां चिंतामणी आवी पड्यो... तेने भूख लागेली एटले एम ईच्छयुं के खोराक मळे तो ठीक! –
तरत खोराक मळ्यो... पछी सूवा माटे पलंग मांग्यो, बंगलो मांग्यो; वस्त्र वगेरे मांग्युं... त्यां कागडो कोको
करतो आव्यो, तेना उपर खीजाईने कागडाने ऊडाडवा माटे चिंतामणि फेंकी दीधो... ने बंगलो वगेरे बधुं फूं थई
गयुं, तेम आ जीवने संसार परिभ्रमणमां चिंतामणि जेवो आ मनुष्य अवतार मळ्यो... त्यां स्त्री–मकान–
दुकान–खेती–पैसा वगेरेनी चिंतामां अज्ञानी जीव आ चिंतामणि जेवुं जीवन वेडफी नांखे छे, ने परनी चिंतामां
ज तेनो चिंतामणि जेवो अवतार क्षणमां फू थई जाय छे. तेने अहीं समजावे छे के अरे जीव! आ जीवन पामीने
तुं तारा आत्मानुं चिंतन कर.
भाई! अनादि काळथी तारा आत्माने आ जन्म–मरणनो मोटो रोग लागु पड्यो छे, माटे ते रोग केम
मटे–तेनो सत्समागमे उपाय कर. जुओ, छ महिना झीणो झीणो ताव रह्या करे तो क्षयरोगनी शंका पडे ने
अमारा सोनगढनी पासे जींथरी–अमरगढनी ईस्पितालमां फोटो पडाववा आववुं पडे छे, तो हे जीव! आ
जन्म–मरणनो रोग तने अनंत भवथी लागु पड्यो छे, ते मटाडवानो उपाय तो सत्समागमे पूछ! तारा
आत्मानो फोटो तो पडाव.
जेम चणामां मीठास भरी छे, तो तेने सेकतां मीठास प्रगटे छे. तेम आत्मामां आनंद भर्यो छे, तेथी
आत्मानुं भान करतां आनंद प्रगटे छे. अज्ञानरूपी कचासने लीधे तेने आनंदने बदले दुःखनुं वेदन थाय छे.
आत्मानुं ज्ञान करवुं ते ज आनंदनो उपाय छे. ज्ञानीनो समागम करीने अंतर्मुख ऊतरे तो आत्मानुं भान
थाय; आवा आत्माना भान वगर अनंतकाळथी जीव चार गतिना परिभ्रमणमां दुःखी थई रह्यो छे.
पुण्यथी ते स्वर्गमां जाय छे ने त्यांथी पाछो चार गतिमां रखडे छे; पापथी नरकमां जाय छे. मोक्षनो
उपाय तो पुण्य अने पाप बंनेथी जुदी जातनो छे. आवा मोक्षना उपायने ओळखवो ते धर्म छे. आवो मनुष्य
अवतार पामीने, अरे आत्मा! तारा आत्मानुं हित केम थाय तेनो तुं विचार कर. बीजुं तो बधुं संसारमां
मळवुं सहेलुं छे. पण आ एक शुद्ध आत्मानी ओळखाण ज बहु दुर्लभ छे. संतो ते वात समजावे छे, माटे हे
जीव! तुं आत्मानी ओळखाण कर.