Atmadharma magazine - Ank 162
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म चैत्र : २४८३
जीवनमां जे घूंटयुं हशे तेनुं मरणटाणे स्मरण थशे. चैतन्यनुं भान करीने तेना स्मरणपूर्वक कदि
समाधिमरण जीवे कर्युं नथी. चैतन्यस्वरूपनुं भान करीने एकवार पण तेना लक्षे समाधिमरणे देह छोडे तो
अल्पकाळमां मुक्ति थया वगर रहे नहि.
आचार्यदेव कहे छे के प्रभु! तें जिंदगीने कांई ऊजवळ करी नहि... आवो मनुष्य अवतार पामीने पण तें
आत्मानुं कांई हित न कर्युं... तो आ अवतार पूरो थतां तारा क्यां ऊतारा करीश! तारा आत्मामां परिपूर्ण
ज्ञान–आनंद भर्या छे. जेम लींडी पीपरमां ६४ पहोरी तीखाशनी ताकात छे तो तेमांथी ते तीखाश प्रगटे छे. तेम
एकेक आत्मामां परिपूर्ण ज्ञान–आनंदनी ताकात भरी छे, तेनुं भान करतां तेमांथी ज ते ज्ञान–आनंद प्रगट
थाय छे: वेपार धंधामां पापना भाव करे ने पैसा मळे, त्यां मूढप्राणी एम माने छे के में आम कर्युं तेथी मने
पैसा मळ्‌या. पण भाई! पैसा ते कांई तारा पापना धंधाथी नथी मळ्‌या; पैसा तो पूर्वना पुण्यना फळमां मळ्‌या
छे. पुण्य विना लाख उपाय करे तो पण पैसा मळता नथी. पहेलांं सत्समागमे आत्मानुं स्वरूप वारंवार
सांभळीने तेनो परिचय करवो जोईए. जेम निशाळमां एकडो शीखवा जाय छे त्यां पण ते एकडो सेंकडो वार
घूंटे छे. तेम जेणे आत्मानुं ज्ञान करवुं होय तेणे सत्समागमे तेनी वात वारंवार घूंटवी जोईए.
भाई! तारी जिंदगीना ५०–६० वर्ष तो वीती गया... तो हवे पांच–दस वर्ष आत्मानी समजण माटे तो
काढ! अरे, आ देहथी जुदुं तत्त्व शुं छे? तेनी मने केम समजण थाय! एम तुं विचार तो कर. जीवनमां
आत्माना हितनो कदी उपाय कर्यो नथी तो मरण वखते तुं कोनुं शरण करीश? घणा कहे छे के छेल्ले मरवा टाणे
आत्मानुं धर्मध्यान करशुं! –पण भाई! अत्यारे जीवनमां आत्मानी दरकार करतो नथी तो मरवा टाणे तेनुं
ध्यान क्यांथी लावीश! जेम–बंदूक जेणे कदी हाथमां झाली नथी, कई रीते बंदूक पकडवी ने क्यांथी फोडवी तेनी
खबर नथी ते लडाईमां क्यांथी ऊभो रही शकशे? बंदूक पकडतां पण तेनो हाथ धू्रजशे. तेम जीवनमां देहथी
जुदा आत्माने जाणवानी जेणे दरकार नथी करी, सत्समागमे श्रवण–मनन पण कर्युं नथी ते देह छूटवा टाणे तेनुं
चिंतन क्यांथी लावशे? माटे भाई! जीवनमां तारा हितनो उपाय कर–एवो उपदेश छे.
एम खेडूत पूछतो हतो के महाराज! अमे बहु दुःखी छीए, आ दुःखनो क्यांय उपाय आरो! त्यारे कह्युं
के भाई! पूर्वनां पाप कर्या तेथी आ दुःख आव्या छे... माटे हवे आत्मानुं भान करवुं ते ज आ भवचक्रथी
छूटवानो उपाय छे. आत्माना ज्ञान वगर आ भवना दुःखनो क्यांय आरो नथी. श्रीमद् राजचंद्र मोरबी पासे
ववाणीया गाममां थई गया. तेओ १६ वर्षनी उमरमां कहे छे के–
बहु पुण्यकेरा पुंजथी
शुभ देह मानवनो मल्यो,
तोय अरे! भवचक्रनो
आंटो नहि एके टळ्‌यो,
सुख प्राप्त करतां सुख–टळे छे,
लेश ए लक्षे लहो!
क्षण क्षण भयंकर भाव मरणे
कां अहो! राची रहो?
अरे जीव! आवो मोंघो मनुष्य अवतार मल्यो तेमां जो तें आत्मज्ञान न कर्युं ने भवनो फेरो न टाळ्‌यो,
तो तें आ मनुष्य अवतार पामीने शुं कर्युं? कीडीना अवतारमां अने तारा अवतारमां शुं फेर पड्यो?
आत्मज्ञान वगर क्षणे क्षणे तुं भाव मरणे मरी रह्यो छे. तेनाथी तारा आत्मानो उद्धार केम थाय तेनी आ वात
छे.
हुं आत्मा जगतनो जाणनार साक्षी छुं, कोईनो कर्ता–हर्ता हुं नथी–एम पोताना आत्मानो विचार के
विश्वास जीवे कर्यो नथी, ने परनो विश्वास कर्यो छे; माटे हे भाई! सत्समागमे आत्माना स्वरूपनुं श्रवण करीने
तेनो विचार कर... तेनो विश्वास कर. जेने आत्मानी घा लागी छे, आत्माना हितनी जिज्ञासा जागी छे ते
सत्समागमे ज्ञानी पासेथी आत्मानी वात सांभळीने एम विचारे छे के अरेरे! मारा आवा स्वरूपनो में कदी
विचार न कर्यो ने हुं भवभ्रमणमां दुःखी थयो. हवे ज्ञानी पासेथी मारुं शुद्ध स्वरूप भवभ्रमण टाळवुं छे. –आम
जिज्ञासा जगाडीने आत्मानुं श्रवण–मनन करवुं जोईए तो आत्मानुं भान थाय ने आ भवभ्रमणथी छूटकारो
थाय.