अल्पकाळमां मुक्ति थया वगर रहे नहि.
ज्ञान–आनंद भर्या छे. जेम लींडी पीपरमां ६४ पहोरी तीखाशनी ताकात छे तो तेमांथी ते तीखाश प्रगटे छे. तेम
एकेक आत्मामां परिपूर्ण ज्ञान–आनंदनी ताकात भरी छे, तेनुं भान करतां तेमांथी ज ते ज्ञान–आनंद प्रगट
थाय छे: वेपार धंधामां पापना भाव करे ने पैसा मळे, त्यां मूढप्राणी एम माने छे के में आम कर्युं तेथी मने
पैसा मळ्या. पण भाई! पैसा ते कांई तारा पापना धंधाथी नथी मळ्या; पैसा तो पूर्वना पुण्यना फळमां मळ्या
छे. पुण्य विना लाख उपाय करे तो पण पैसा मळता नथी. पहेलांं सत्समागमे आत्मानुं स्वरूप वारंवार
सांभळीने तेनो परिचय करवो जोईए. जेम निशाळमां एकडो शीखवा जाय छे त्यां पण ते एकडो सेंकडो वार
घूंटे छे. तेम जेणे आत्मानुं ज्ञान करवुं होय तेणे सत्समागमे तेनी वात वारंवार घूंटवी जोईए.
आत्माना हितनो कदी उपाय कर्यो नथी तो मरण वखते तुं कोनुं शरण करीश? घणा कहे छे के छेल्ले मरवा टाणे
आत्मानुं धर्मध्यान करशुं! –पण भाई! अत्यारे जीवनमां आत्मानी दरकार करतो नथी तो मरवा टाणे तेनुं
ध्यान क्यांथी लावीश! जेम–बंदूक जेणे कदी हाथमां झाली नथी, कई रीते बंदूक पकडवी ने क्यांथी फोडवी तेनी
खबर नथी ते लडाईमां क्यांथी ऊभो रही शकशे? बंदूक पकडतां पण तेनो हाथ धू्रजशे. तेम जीवनमां देहथी
जुदा आत्माने जाणवानी जेणे दरकार नथी करी, सत्समागमे श्रवण–मनन पण कर्युं नथी ते देह छूटवा टाणे तेनुं
चिंतन क्यांथी लावशे? माटे भाई! जीवनमां तारा हितनो उपाय कर–एवो उपदेश छे.
छूटवानो उपाय छे. आत्माना ज्ञान वगर आ भवना दुःखनो क्यांय आरो नथी. श्रीमद् राजचंद्र मोरबी पासे
ववाणीया गाममां थई गया. तेओ १६ वर्षनी उमरमां कहे छे के–
शुभ देह मानवनो मल्यो,
तोय अरे! भवचक्रनो
आंटो नहि एके टळ्यो,
सुख प्राप्त करतां सुख–टळे छे,
लेश ए लक्षे लहो!
क्षण क्षण भयंकर भाव मरणे
कां अहो! राची रहो?
आत्मज्ञान वगर क्षणे क्षणे तुं भाव मरणे मरी रह्यो छे. तेनाथी तारा आत्मानो उद्धार केम थाय तेनी आ वात
छे.
तेनो विचार कर... तेनो विश्वास कर. जेने आत्मानी घा लागी छे, आत्माना हितनी जिज्ञासा जागी छे ते
सत्समागमे ज्ञानी पासेथी आत्मानी वात सांभळीने एम विचारे छे के अरेरे! मारा आवा स्वरूपनो में कदी
विचार न कर्यो ने हुं भवभ्रमणमां दुःखी थयो. हवे ज्ञानी पासेथी मारुं शुद्ध स्वरूप भवभ्रमण टाळवुं छे. –आम
जिज्ञासा जगाडीने आत्मानुं श्रवण–मनन करवुं जोईए तो आत्मानुं भान थाय ने आ भवभ्रमणथी छूटकारो
थाय.