आपको आत्मार्थी कह कर आ० कुन्दकुन्दके अति गहन आध्यात्मिक ग्रन्थों की गूढ़तम ग्रन्थियों के
सूक्ष्मतम रहस्य का उद्घाटन कर कुन्दावदात, अमृतचन्द्र–प्रस्यूत पीयूष का स्वयं पान करते हुए
अन्य सहस्रों अध्यात्म–रस–पिपासुओं को भी उसका पान करा रहे है और अत्यन्त सरल शब्दों में
अध्यात्म तत्त्वका प्रतिपादन कर रहे हैं।
और सम्पन्न धरानोंके कुमार–कुमारिकाओंने आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार किया। तथा जिस
सौराष्ट्रमें दि० जैन मन्दिर विरल ही थे, वर्हां आपकी प्रेरणासे २० दि
भावी पीढ़ी के लिए प्रस्तुत किये हैं।
महान् विद्वान् पं० टोडरमलजी ने उस दूषित व्यवहारसे जनताके बचाव के लिये मोक्षमार्गप्रकाशकी
रचनाकर जैनधर्मके शुद्ध रूपकी रक्षा की। उनके पश्चात् इस बीसवीं शताब्दीमें व्यवहार–मूढ़ता–
जनित धर्मके विकृत स्वरूपको बतलाकर ‘आत्म–धर्म’ के द्वारा उससे बचनेके मार्गका आप निर्देंश
कर रहे हैं। आपके तत्त्वावधानमें आज तक तीन लाख पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है जिससे
लोगोंको अपनी ‘भूलमें भूल’ ज्ञात हुई है।
उपासक हैं और निन्दा–स्तुतिमें समवस्थ रहते हैं। आपके हृदयकी शान्ति और ब्रह्मचर्यका तेज
आपके मुख पर विद्यमान है, आप समयके नियमित परिपालक है। भगवद्–भक्ति–पूजा करनेकी
विधि, आध्यात्मिक–प्रतिपादन–शैली और समयकी नियमितता ये तीन आपकी खास विशेषताएं है।
अध्यात्मका प्रतिपादन करते हुए भी हम आपकी प्रवृत्तियोंमें व्यवहार और निश्चयका अपूर्व सम्मिश्रण
देखते है। आपके इन सर्व गुणोंका प्रभाव आपके पार्श्ववर्ती मुमुक्षुओं पर भी हैं। यही कारण हैं कि
उनमें भी शान्ति–प्रियता और समयकी नियमितता द्रष्टिगोचर हो रही हैं।