सद्रश बन गया है। आपने एक नवयुग का निर्माण किया है। आपकी वाणी अनादिरुढ,
व्यवहारमूढ़, निश्चयअनारुढ़ प्राणियों को सत्पथ प्रदर्शन करती है और दीर्घ काल तक करती
रहेगी ऐसा हमारा विश्वास है। जैन धर्म विश्वधर्म है, उसका सूक्ष्म अध्यात्मवाद अद्वितीय है। उस
अध्यात्मवाद को सरल और स्पष्ट भाषा में समझाकर आपने इसकी ख्याति में चार चांद लगा दिए
है। आपके द्वारा जिन शासन की जो प्रभावना हुई है वह ऐतिहासिक और अवर्णनीय है।
तत्त्व की प्रतिष्ठा की है। आपके इस सिंहनाद से कि “प्रभुत्व शक्ति प्राणि मात्र के अन्तर में अनादि
काल से पड़ी है अतः उस ओर अन्तर्दष्टि करे तो प्रत्येक प्राणी प्रभु हो सकता है” हमारे भीतर
की सुषुप्त प्रभुत्व शक्ति को प्रभावपूर्ण आह्वान मिला हैं। हमारे अन्तर में एक अभूतपूर्व जागृति हुई
है। आगे हम आत्मोन्नति के पथ पर बराबर अग्रसर होकर अपनी स्वरूपप्राप्ति के लिए सतत
प्रयत्नशील रहेंगे, ऐसा हमारा द्रढ़ निश्चय है।
अमृतपान निरंतर करते रहें। आपकी महान् कृपा के लिए अपनी कृतज्ञता प्रकाश करने योग्य
हमारे पास शब्द नहीं हैं। अतः हम आपके सामने नतमस्तक हैं।