: વૈશાખ : ૨૪૮૩ આત્મધર્મ : ૧૯ :
हुए सहारनपुर नगरी में पधारे। उत्तर–प्रदेश की यह नगरी आपके पदार्पण से पवित्र हुई है। इस
मंगल वेला में आपके प्रति श्रद्धाभाव प्रगट करते हुए हम गौरव अनुभव करते हैं।
ज्ञान–सुधाकर!
भगवान् श्री कुंदकुंदाचार्यदेव, स्वामी पुष्पदंत, भूतबलि, श्री उमास्वामी, स्वामी कार्तिकेय,
श्री अमृतचंद्राचार्य देव इत्यादि महान् आचार्यों के हृदय में प्रवेश कर आपने जैन धर्म के गूढ़
रहस्य को समझा और उसे मुमुक्षुओं के सामने स्पष्ट करके रख दिया है। आपकी वाणी–तुङ्ग से
अध्यात्म रस का स्रोत सौराष्ट्र से उत्तर भारत तक अविरल बह रहा है, जिस से सांसारिक दुःखों
से संतप्त एवं क्लान्त प्राणी उसे पीकर शांति–विश्रान्ति पारहे हैं।
अध्यात्मयोगिन्!
धन्य हैं मातेश्वरी देवी उजमबा, जिसने आप जैसे पुत्ररत्न को जन्म दिया। धन्य है
भगवान् धरसेनाचार्य का सौराष्ट्र, जहां आप से आत्मज्ञानी का आविर्भाव हुआ। धन्य है भारत
देश, जो आपसे तत्त्व–मर्मज्ञ के द्वारा आध्यात्मिक आगार रहा है।
युगप्रवर्तक!
आपके उपदेशों से सहस्त्रों भाई बहनोंने जैन धर्म के शुद्ध स्वरूप को समझा है। जैन धर्म
विश्व–धर्म है, उसका सूक्ष्म अध्यात्मवाद अद्वितीय है और उस अध्यात्मवाद को आपने सरल–स्पष्ट
भाषा में समझाकर उसमें चार–चांद लगा दिये हैं। आपके द्वारा जिनशासन की जो प्रभावना हुई
वह अवर्णनीय, ऐतिहासिक और एक नवयुग का निर्माण कर रही है।
शाश्वत सुख–मार्ग–दर्शक!
आपके इस सिंहनाद से कि “प्रभुत्व शक्ति प्राणी–मात्र के अन्तर में अनादि काल से पड़ी
है, अतः उस ओर द्रष्टि करे तो प्रत्येक प्राणी प्रभु हो सकता है।” हमारी सुषुप्त प्रभुत्व–शक्ति को
जागृति का आह्वान मिला है। भविष्य में हम आत्मोन्नति के पथ पर अग्रसर होकर अपने शुद्ध
स्वरूपप्राप्ति में सजग रहेंगे, ऐसा हमारा निश्चय है।
आत्मबोधी–मनस्वी!
आपके थोडे़ से प्रवचनामृत पान से उसके और अधिक निरंतर पाने की अतृप्त भावना जाग
उठी है। आज आपकी महान् कृपा है जो आप यहां पधारे। अपनी कृतज्ञता प्रकाश करने योग्य
शब्द भी हमारे पास नही हैं। हार्दिक भावना से ही हम आप का बारम्बार अभिनन्दन करते हैं।
सहारनपुर श्रद्धावनत–
८–४–५७ जैन पंचान प्रबन्धकारिणी कमैटी