: ૨૦ : આત્મધર્મ ૨૪૮૩ : વૈશાખ :
। श्रीवीतरागाय नमः।
सोनगढ (सौराष्ट्र) के आत्मार्थीं पुरुष श्री कानजीस्वामी को
सादर समर्पित
अभनन्दन – पत्र
माननीय!
स्थानीय श्री जैन स्वाध्याय मंडल की प्रार्थना को स्वीकार कर अपनी उत्तर भारतयात्रा के
अन्तर्गत आपने कुचामन के लिए जो अपना अमूल्य समय दिया है, उसके प्रति हम आपके
आभारी हैं।
अध्यात्मप्रेमी!
आपने भगवान कुन्दकुन्दरचित समयसार, पंचास्तिकाय आदि ग्रंथों का गहन अध्ययन एवं
ज्ञानार्जन करके जिस अध्यात्म सुधा का अविरल पान आत्मज्ञान–पिपासुओं को कराया वह
सराहनीय है।
श्रेष्ठ प्रवक्ता!
आपकी तत्त्व प्रतिपादन शैली बहुत ही सुन्दर तथा सरल है। आपके प्रभावशाली एवम्
माधुर्य से ओतप्रोत प्रवचनों का श्रवण कर आबालवृद्ध के अन्तःकरण में आत्म–तत्त्व की ओर
अभिनव रुचि उत्पन्न होती है। गूढ़ से गूढ़ तत्वों को सरल स्पष्टीकरण द्वारा बुद्धिगम्य बना देना
आपकी अनुपम विशेषता का परिचायक है।
निर्भीक!
“अन्तःकरण की बात अन्तःकरण ही में बैठती,” का ज्वलन्त रूप आपके निर्भीक व्यक्तित्व
में स्पष्टतः विद्यमान है। पुण्य, पाप, धर्म, अधर्म, जीव, अजीव, नर्क और स्वर्ग आदि सारभूत
विषयों पर आपकी न्यायसङ्गत तथा युक्तियुक्त विवेचना सर्वत्र हृदय–ग्राही सिद्ध हुई है। भगवान
कुन्दकुन्द के मंतव्यानुकूल पदाथ निर्देशन की ओर सतत समुद्यत रहते है।
शान्त स्वभावी!
आपके हँस मुख एवं सोम्य चहरे से शान्त–स्वभाव प्रतिपल परिलक्षित होता है जिससे
प्राणी मात्र को तदनुकूल प्रेरणा मिलती है। इस मङ्गलमय अवसर पर हम आपका हार्दिक
अभिनन्दन करते हुए कामना करते हैं कि भगवान महावीर के दिव्य संदेश को विश्व–व्यापी बनाने
में आप उत्तरोत्तर अग्रसर रहेंगे।
कुचामन सिटी भवदीयः–
वैशाख कृष्णा ५ वी. नि. सं. २४८३ दि० जैन समाज, कुचामन