Atmadharma magazine - Ank 163
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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: વૈશાખ : ૨૪૮૩ આત્મધર્મ : ૨૧ :
। श्रीवीतरागाय नमः।
आध्यात्मिक संत, आत्मार्थी, पूज्यश्री कानजीस्वामी की सेवा में सादर समर्पित
अभनन्दन – पत्र
पुज्यवर!
हमारा सौभाग्य है कि हम जिस महान् व्यक्तित्व के पुण्य दर्शन की वर्षों से प्रतीक्षा कर
रहे थे–हमारी वह मनोकामना आज सफल हो गई। आपके विराट् संघ ने सिद्धक्षेत्र श्री
सम्मेदशिखरजी के यात्रा प्रसंग से इस छोटी सी नगरी के समाज के विशेष आग्रह पर एक
दिवसीय विराम लेना स्वीकार किया है, यह हम सब के परम सौभाग्य का विषय हैं। अतः
इस शुभ वेला में हम आपके प्रति श्रद्धाभाव प्रकट करते हुए अपने आपको गौरवान्वित अनुभव
करते हैं।
आत्मार्थिन्! अनंत दुःखमय संसार की स्थिति का अवलोकन कर आपने उच्चतम तत्त्वज्ञान
का अध्ययन एवं मनन किया और उसकी महत्ता को समस्त मुमुक्षुगण के समक्ष स्पष्ट खोल कर
रख दिया है। इस भौतिक युग के विनाशकारी वातावरण के विरुद्ध आध्यात्मिकता का प्रसार कर
आपने सहस्रों मानवों का समस्त जीवन ही परिवर्तित कर दिया हैं। आपके सतत प्रयत्नों से
आपका आत्मज्ञान सोनगढ़
(सौराष्ट्र) को तीर्थस्थान बना कर समस्त भारत में ब्याप्त हो गया है।
मानवशिरोमणि! यों तो सहस्त्रों माताएं पुत्रों को जन्म देती है परंतु धन्य है उस जननी
उजमबा को जिसने अपनी कोंख से आप जैसा नररत्न जाया हैं। धन्य हैं उस पुण्यशील सौराष्ट्र
देश को जहां आप जैसे आत्मिक ज्ञानी संतपुरुष का आविर्भाव हुआ है, जिसकी ज्ञान–ज्योति
सौराष्ट्र को ही नहीं वरन् समस्त भारत को आध्यात्मिक मार्गप्रदर्शन कर रही हैं।
शाश्वत सुखमार्ग–प्रदर्शक!
सच्चिदानन्दधन भगवान् आत्मा के स्वरूप को हम भूले हुए थे। उसका एवं द्रव्य के
परिणमन की स्वतन्त्रता का विशद विवेचन करके आपने हम श्रोताओं के हृदय में धर्म के मार्मिक
तत्त्व की प्रतिष्ठा की है। आपके इस सिंहनाद से कि “प्रभुत्व शक्ति प्राणि मात्र के अन्तर में अनादि
काल से पड़ी है अतः उस ओर अन्तर्दृष्टि करे तो प्रत्येक प्राणी प्रभु हो सकता हैं” हमारे भीतर
की सुषुप्त प्रभुत्व शक्ति को प्रभावपूर्ण आह्वानन मिला है। हमारे अन्तर में एक अभूतपूर्व जागृति
हुई है। आगे हम आत्मोन्नति के पथ पर बराबर अग्रसर होकर अपने स्वरूप–प्राप्ति के लिए सतत
प्रयत्नशील रहेंगे–ऐसा हमारा द्रढ़ निश्चय हैं।
इस पुनीत अवसर पर अलीगढ, जिला टोंक का दि० जैन समाज हृदय से अभिनंदन
अलीगढ १४–४–५७ विनीत
सकल दि. जैन समाज अलीगढ, जिला टोंक (राजस्थान)