Atmadharma magazine - Ank 163
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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: ૨૨ : આત્મધર્મ ૨૪૮૩ : વૈશાખ :
श्रीवीतरागाय नमः
सोनगढ (सौराष्ट्र) के आध्यात्मिक प्रवक्ता
सत्पुरुष श्री कानजी महाराज की सेवामें सादर समर्पित
अभनन्दन पत्र
सम्माननीय! हमारा सौभाग्य है कि राजस्थान के इस प्रसिद्ध एवं अनेक पंचकल्याणक–
बिंब–प्रतिष्ठा–भूमि लाडनूं नगर में पधार कर आपने हमें दो दिन का सुअवसर प्रदान किया।
हम आप को अपने बीच पाकर अत्यन्त प्रमुदित हो रहे हैं। चिरसंचित अभिलाषा आज हमारी
पूर्ण हुई।
सत्पुरुष! भारत के आध्यात्मिक सत्पुरुषों में आपका विशिष्ट स्थान हैं। आपने मानव को
दुःखमय संसार से हटानेवाले आत्मानुभूति–कारक जो सदुपदेश दिये हैं––वे वस्तुतः मननीय और
उपादेय हैं। ऐसे परोपकारी सत्पुरुष का समागम पाकर आज हम अतिशय गौरव का अनुभव कर
रहे हैं।
आत्मार्थिन्! अनंत दुःखमय संसार की स्थिति का अवलोकन कर आत्मा की खोज में
संलग्न आपने भगवान कुन्दकुन्द की महान् कृतियों का मनन एवं परिशीलन करके जो द्रष्टि प्राप्त
की है–वह महान है। प्राणी का कल्याण आत्म–निरीक्षण द्वारा ही संभव है, मोह माया में फंसे
हुए प्राणी का हित बहिर्मुखी वृत्ति से हटकर अन्तर्मुखी द्रष्टि प्राप्त करने में ही है। इसी मार्ग का
आपने हमें उपदेश दिया है।
आध्यात्मिक प्रचारक! आज के विनाशकारी भौतिक युग में जहां संहारकारक नित्य नये
नये आयुधों की खोज बडे़ वेगसे चलरही हैं वहां केवल आध्यात्मिकता का प्रसार ही इस विकराल
संहार को रोक सकता है। भारत सदा से सन्त साधुओंको जन्म देकर विश्व को शान्ति का पाठ
पढ़ाता आया है। आज भारत में आप सरीखे अध्यात्म–प्रचारक की महान् आवश्यकता है। इस
महान प्रचार–कार्य में आप जो सहयोग दे रहे हैं वह स्तुत्य है।
जैनशासन–प्रभावक! आप के सदुपदेश के प्रभाव से सोनगढ़ एक तीर्थसा बन गया है।
सांसारिक वैभव से दूर रहकर सदाचरणपूर्वक अपने जीवन को अन्तर्मुखी द्रष्टि द्वारा सफल करने
में ही जैन शासन की महत्ता हैं। सम्यग्दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र ये तीनों मिलकर ही इहलौकिक
और पारलौकिक कल्याण के हेतु हैं। इनको जीवन में अपनाने से ही धर्म की सच्ची प्रभाबना
होती हैं।
इस पावन प्रसंग पर हम आपका अन्तःकरण से अभिनन्दन करते हैं और भगवान से
प्रार्थना करते हैं कि आपका सदुद्रश्य सफल हो।
वैशाख कृष्णा चतुर्थी सं० २०१४ विनयावनत
दि० १८–४–५७ लाडनू दि० जैन समाज