थईने तेमांथी परमात्म दशा प्रगट करे छे.
थईने तेओ परमात्मा थया. आ रीते पहेलांं जेओ बहिरात्मा हता तेओ ज पोतानी शक्तिना अवलंबने
अंतरात्मा थईने परमात्मा थया. आवी परमात्मा थवानी ताकात दरेक आत्मामां छे. अभव्यमां पण एवी
ताकात छे, पण ते पोतानी शक्तिनी प्रतीत कदी करतो नथी तेथी तेने ते कदी व्यक्त थती नथी. कोई एम कहे के
अभव्य जीवमां केवळज्ञाननी शक्ति नथी. –तो ते वात जुठ्ठी छे. अभव्यने पण केवळज्ञानावरणीयकर्म तो छे के
नहीं? जो केवळज्ञान शक्ति न होय तो तेने आवरण करनारुं कर्म केम होय? अनादिथी बधाय जीवोने
केवळज्ञानावरणीय कर्म छे, ने आत्मामां केवळज्ञानादि परमस्वभाव पण अनादिथी ज छे. ते स्वभावनी प्रतीत
करीने तेमां जे लीन थाय छे तेने ते केवळज्ञानादि शक्ति प्रगटी जाय छे अने केवळज्ञानावरणीय वगेरे कर्मो छूटी
जाय छे. अहीं तो एम बताववुं छे के तारा आत्मामां अत्यारे पण परमात्मदशा प्रगटवानी ताकात पडी छे,
तेनी प्रतीत कर, ने बहिरात्मबुद्धि छोड.
ज होय छे, बीजी बे प्रकृति तेने नथी होती; –परंतु तेनी जेम अनादि मिथ्याद्रष्टिने के अभव्यने केवळज्ञानावरण
तथा मनःपर्ययज्ञानावरण कर्मप्रकृतिओ पण नथी–एम नथी; पहेलेथी ठेठ बारमा गुणस्थान सुधीना बधाय
जीवोने पांचे ज्ञानावरणकर्म होय छे, अने ठेठ दसमा गुणस्थानना अमुक भाग सुधी ज्ञानावरणनी पांचे
प्रकृतिओ बंधाया ज करे छे. आ बंधन उपरथी अहीं सिद्ध एम करवुं छे के बधाय आत्मामां ते केवळज्ञानादि
शक्तिरूपे छे. “सर्व जीव छे सिद्ध सम”–शक्तिपणे बधाय आत्मा परिपूर्ण, सिद्धभगवान जेवा सामर्थ्यवाळा
छे,–पण ‘जे समजे ते थाय”– पोतानी स्वभावशक्तिने जे समजे तेने ते शक्तिमांथी परमात्मदशा प्रगटे छे.
बहिरात्मपणुं छोडवा जेवुं छे, परमात्मपणुं प्रगट करवा जेवुं छे ने अंतरात्मपणुं तेनो उपाय छे.
ज कारण छे तेथी ते बहिरात्मबुद्धि छोडवा जेवी छे. बहिरात्मबुद्धि छोडवानो उपाय शुं? के अंतरात्मपणुं ते
बहिरात्मपणाना त्यागनो उपाय छे. हुं शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूप छुं, ज्ञानदर्शनस्वरूप एक शाश्वत आत्मा ज मारो
छे, ए सिवाय संयोगलक्षणरूप कोई भावो मारा नथी, तेओ माराथी बाह्य छे–एम भेदज्ञान करीने, आत्माना
अंर्तस्वभावमां आत्मबुद्धि करवी ते अंतरात्मापणुं छे. आवा अंतरात्मपणारूप साधनवडे परमात्मदशा प्रगट
करवानो उपाय करवो जोईए.