: १० : आत्मधर्म २४८३ : वैशाख :
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प्रश्न:– पशुपणुं होवा छतां मनुष्य समान विवेकी कोण छे?
उत्तर:– “पशुत्वेऽपि नरायन्ते सम्यक्त्वव्यक्तचेतना” ––अने सम्यकत्वद्वारा जेनी चैतन्य संपत्ति व्यक्त
थई गई छे एवो सम्यग्द्रष्टि जीव, पशुपणुं (तिर्यंच देह) होवा छतां मनुष्य समान विवेकी–हित अहितना
विचारवाळुं–आचरण करतो होवाथी मनुष्य छे.–जुओ, सम्यक्त्वनो प्रभाव!! (–सागारधर्मामृत–४)
प्रश्न:– एक सेकंडमां अनंत भवनो नाश करी नांखवानी ताकात कोनामां छे?
उत्तर:– सम्यग्दर्शन एवी चीज छे के जो जीव एक सेकंडमात्र पण ते प्रगटावे तो तेना भवभ्रमणनो
नाश थई जाय. एक क्षणमां अनंत भवनो नाश करी नांखवानी ताकात सम्यग्दर्शनमां छे.
(पू. गुरुदेव)
प्रश्न:– जे पोतानुं कल्याण चाहता होय तेणे पहेलांं शुं करवुं?
उत्तर:– हे जीवो! जो तमे आत्मकल्याणने चाहता हो तो पवित्र सम्यग्दर्शन प्रगट करो. ज्ञानीओ
सम्यग्दर्शनने कल्याणनी मूर्ति कहे छे, माटे हे कल्याणना कामी जीवो! तमे सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करवानो
अभ्यास करो. (पू. गुरुदेव)
प्रश्न:– सम्यग्दर्शन केम थाय?
उत्तर:– सम्यग्दर्शन प्रगट करवा माटे श्री गुरु पासेथी आत्मस्वभावनुं सीधुं श्रवण करीने, अचिंत्य
चैतन्यशक्तिसंपन्न अने स्वत: परिपूर्ण एवा पोताना शुद्ध ज्ञानस्वभावनी रुचि करो... प्रीति करो...निर्णय
करो...लक्ष करो...आश्रय करो...आ प्रमाणे शुद्ध आत्मानी लगनी ते सम्यग्दर्शननो उपाय छे.
पहेलांं ‘हुं ज्ञान छुं’ एम पोताना ज्ञानस्वभावनो निर्णय करीने, पछी अंतरमां द्रढ प्रयत्नथी वारंवार
तेनो अभ्यास करीने मति–श्रुतज्ञानने अंतर्मुख करता शुद्ध आत्मामी निर्विकल्प आनंद सहित स्वानुभूति थाय
छे, आ ज सम्यग्दर्शन थवानी रीत छे. (–पू. गुरुदेव)
प्रश्न:– मानवदेह करतां पण अनंतगणुं दुर्लभ शुं छे?
उत्तर:– संसारमां मनुष्यपणुं दुर्लभ छे, मनुष्यपणुं अनंत काळे मळे छे, परंतु सम्यग्दर्शन तो एनाथी ये
अनंतुं दुर्लभ छे. मनुष्यपणुं अनंतवार मळ्युं छे पण सम्यग्दर्शन पूर्वे कदी प्राप्त कर्युं नथी; माटे आ मनुष्यपणुं
पामीने ते ज महान कर्तव्य छे. (–पू. गुरुदेव)
प्रश्न:– आ काळे भरतक्षेत्रमां सम्यग्दर्शन–धारक महात्माओ छे खरा?
उत्तर:– हा; जो के आ काळे आ भरतक्षेत्रमां एवा सम्यग्दर्शनधारक महात्माओनी घणी ज विरलता छे,
तो पण, खारा पाणीना समुद्रमां मीठा पाणीनी वीरडी माफक अत्यारे पण सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा आ भूमिमां
विचरे छे. जगतमां सम्यग्द्रष्टि जीवोनी त्रणे काळे विरलता ज होय छे.
प्रश्न:– सर्वोत्कृष्ट सुखना हेतुभूत कोण छे?
उत्तर:– “हे सर्वोत्कृष्ट सुखना हेतुभूत सम्यग्दर्शन! तने अत्यंत भक्तिथी नमस्कार हो.” (–श्रीमद्
राजचंद्र)
प्रश्न:– संसारमां अनंतानंत जीवो अनंतुं दुःख केम भोगवे छे?
उत्तर:– आ अनादि संसारमां अनंत–अनंत जीवो सम्यग्दर्शनना आश्रय विना अनंत–अनंत दुःख
अनुभवे छे.