: ८ : आत्मधर्म २४८३ : वैशाख :
सर्वे जीवोमां बहिरात्मा, अंतरात्मा अने परमात्मा एम त्रण प्रकारना आत्मा छे.
• बाह्य शरीरादि पदार्थोने ज जे आत्मा माने छे ते बहिरात्मा छे.
• अंतरमां देहादिथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं जेने भान छे ते अंतरात्मा छे.
• अने चैतन्य शक्ति खोलीने जेणे परम सर्वज्ञपद प्रगट कर्युं छे ते परमात्मा छे.
आवा त्रण प्रकारमांथी सर्वज्ञता ने परिपूर्ण आनंदरूप एवुं परमात्मपणुं परम उपादेय छे.
अंतरात्मापणुं ते तेनो उपाय छे अने बहिरात्मापणुं छोडवा जेवुं छे. परमात्मा थवानुं साधन शुं? के
अंतरात्मापणुं ते परमात्मा थवानुं साधन छे. अंतरमां परमात्मशक्ति भरी छे, तेनी प्रतीत करीने तेमांथी ज
परमात्मदशा प्रगटे छे, ए सिवाय बहारमां बीजुं कोई तेनुं साधन छे ज नहि. आत्माना अंतर अवलोकनमां
कोई बहारनी चीज सहायक पण नथी ने विघ्नकारी पण नथी. आवा अंतर स्वभावनी द्रष्टि करे तो
अंतरात्मपणुं थाय ने बाह्यमां आत्मबुद्धिरूप बहिरात्मपणुं छूटी जाय. अने जे अंतरात्मा थयो ते हवे
अंर्तशक्तिमां एकाग्र थईने परमात्मा थई जशे. आ रीते हेयरूप एवा बहिरात्मपणाने छोडवानो तथा
उपादेयरूप एवुं परमात्मपणुं प्रगट करवानो उपाय अंतरात्मपणुं छे. अने ते अंतरात्मपणुं कर्मादिथी भिन्न
ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने जाणवाथी ज थाय छे, माटे अहीं भिन्न आत्मानुं स्वरूप कहेवामां आवे छे.
अरिहंत अने सिद्ध भगवान साक्षात् परमात्मा थई गया. ते परमात्माने पण परमात्मदशा प्रगट्या
पहेलांं बहिरात्मपणुं हतुं, ते छोडीने अंतरात्मा थया ने ते उपायथी परमात्मपणुं प्रगट कर्युं.
वर्तमानमां जे धर्मी–अंतरात्मा छे तेने पूर्वे अज्ञानदशामां बहिरात्मपणुं हतुं ने हवे अल्पकाळमां
परमात्मपणुं प्रगट थशे.
जे जीव अज्ञानी–बहिरात्मा छे तेने पण आत्मामां परमात्मा अने अंतरात्मा थवानी ताकात छे.
आत्मामां केवळज्ञानादि परमात्मशक्ति छे; जो शक्तिपणे केवळज्ञानादि शक्ति न होय तो तेने रोकवामां
निमित्तरूप केवळज्ञानावरणीय कर्म केम होय? बहिरात्माने केवळज्ञानावरण छे ते एम सूचवे छे के तेनामां पण
शक्तिपणे केवळज्ञान छे.
आ रीते आत्मानी बहिरात्मा, अंतरात्मा ने परमात्मा एवी त्रण अवस्था छे; तेमांथी चैतन्यशक्तिनी
प्रतीतवडे बहिरात्मपणुं छोडवा जेवुं छे ने परमात्मपणुं प्रगट करवा जेवुं छे.
[वीर सं. २४८२ वैशाख वद ६: समवसरणप्रतिष्ठा–वार्षिकोत्सव]
आत्मानुं स्वरूप एक समयमां परिपूर्ण ज्ञानानंदस्वरूप छे; तेनी त्रण प्रकारनी अवस्थाओ छे. जे
पोताना चिदानंदस्वरूपने चूकीने बहारमां शरीरादि ते ज हुं–एम माने छे ते बहिरात्मा छे; ते अधर्मी छे,
एकला विभावने ज साधे छे. अने जेणे देहथी भिन्न रागथी पार पोताना ज्ञानानंदस्वभावथी परिपूर्ण
आत्माने अंतरमां जाणी लीधो छे ते अंतरात्मा छे, ते धर्मात्मा छे, ते परमात्मदशाना साधक छे. अने
चिदानंदस्वभावमां लीन थईने केवळज्ञान–अनंतआनंद वगेरे जेमने प्रगटी गया छे ते परमात्मा छे.
आ बहिरात्मा, अंतरात्मा ने परमात्मा ए त्रण दशामांथी एक वखते एक दशा व्यक्त होय छे.
बहिरात्मदशा वखते अंतरात्मपणुं के परमात्मपणुं व्यक्त न होय ; अंतरात्मदशा वखते परमात्मपणुं के
बहिरात्मपणुं न होय; अने परमात्मदशा वखते बहिरात्मपणुं के अंतरात्मपणुं न होय. अरहंत अने
सिद्धभगवान ते परमात्मा छे; चोथा गुणस्थानथी मांडीने बारमा गुणस्थान सुधीना साधक जीवो ते बधाय
अंतरात्मा छे अने मिथ्याद्रष्टि जीवो बहिरात्मा छे.
बहिरात्मदशा वखते पण आत्मानी शक्तिमां परमात्मा थवानी ताकात पडी छे. भगवाने समवसरणमां
एथी दिव्य घोषणा करी छे के अहो जीवो! तमारा आत्मामां परमात्म शक्ति भरेली छे, ते शक्तिनो विश्वास
करो. जे जीवो पोतानी परमात्म