Atmadharma magazine - Ank 163
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४८३ आत्मधर्म : ७ :
– परम शांति दातारी –
अध्यात्म भावना
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य
सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना – भरपूर
वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(४)
हवे अहीं एवी आशंका थाय छे के विविक्त आत्मानुं स्वरूप कहेवानी प्रतिज्ञा करी, तो आत्मा केटला
प्रकारना छे? अने तेमांथी केवो आत्मा उपादेय छे ने केवो आत्मा होय छे? आत्माना केटला प्रकार छे के
जेमांथी आप परथी विभक्त शुद्ध आत्माने ज उपादेय तरीके बताववा मांगो छो?–एवी आशंकाना उत्तररूप
चोथो श्लोक कहे छे:–
बहिरन्तःपरश्चेति त्रिधात्मा सर्वदेहिषु।
उपायेत्तत्र परमं मध्योपायाद्बहिस्त्यजेत्।। ४।।
स्वरूप समजवा माटे नवराश पण नथी मळती. आ देह तो आज छे ने काल नथी. आ देह कांई कायम
नथी रहेवानो; माटे आत्मानुं हित केम थाय–ते करी लेवा जेवुं छे. अमारे सोनगढमां एक शारदाबेन हती, तेने
मरवानी तैयारी हती त्यारे कह्युं के आत्मा ज्ञान–दर्शन ने आनंदस्वरूप छे...त्यारे ते पण कहे के हा...आ देह तो
आज छे ने काल नथी! हजी तो आम वातचीत करती हती त्यां पा कलाकमां तो देह छूटी गयो. एम क्षणमां आ
देह तो छूटी जाय छे; माटे देहथी भिन्न ज्ञान ने आनंदस्वरूप आत्मा शुं चीज छे तेनुं भान करवुं जोईए.
आत्माना भान विना जीवे बधुं कर्युं पण तेनुं परिभ्रमण न टळ्‌युं; माटे हे जीव! आत्मानुं भान कर तो तारुं
भवभ्रमण टळे ने मुक्ति थाय.