Atmadharma magazine - Ank 163
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म २४८३ : वैशाख :
अस्तित्व बधाय पदार्थोमां छे, तेथी ते सामान्य धर्म छे. एकला अस्तित्वथी आत्मानुं अन्य द्रव्यथी जुदुं स्वरूप
लक्षमां आवतुं नथी.
आत्मा छे तो खरो, पण ते केवो छे?
–के आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, आनंदस्वरूप छे. ज्ञानआनंद वगेरे धर्मोथी जोतां आत्मा समस्त अन्य
द्रव्योथी भिन्न लक्षमां आवे छे, केमके आत्मा सिवाय बीजे क्यांय ज्ञान के आनंद नथी. आ रीते ज्ञान–आनंद ते
आत्माना असाधारण धर्म छे, आत्मानी ते खास विशेषता छे. ते विशेषतावडे आत्मा अन्य द्रव्योथी जुदो पडी
जाय छे. अस्तित्व कहेतां बीजा द्रव्योथी आत्मानी कांई विशेषता नथी आवती, अने ज्ञानस्वरूप कहेतां
आत्मानी बीजा द्रव्योथी भिन्नता–विशेषता ख्यालमां आवे छे.
वळी आत्माने अमूर्त कहेवाथी पण तेनुं वास्तविक स्वरूप बधा पदार्थोथी जुदुं लक्षमां नथी आवतुं,
केमके अमूर्त तो आकाश पण छे; अमूर्त कहेवाथी फक्त मूर्त–पुद्गल द्रव्यथी असाधारणपणुं जणाय छे, माटे ते
धर्मने साधारण–असाधारण धर्म कहेवाय छे.
आ रीते, अस्तित्व वगेरे साधारण धर्मो, ज्ञान–आनंद वगेरे असाधारण धर्मो, तेमज अमूर्तपणुं वगेरे
साधारण–असाधारण धर्मो, एम त्रणे प्रकारना धर्मो आत्मामां छे. “आत्मा सत् चैतन्य अमूर्तिक छे”–एम
कहेतां उपरना त्रणे प्रकारना धर्मो तेमां आवी जाय छे.
ज्ञानगुण बधाय जीवोमां छे, तो पण आ जीवनुं जे ज्ञान छे ते बीजा जीवोमां नथी, तेथी पोताना
ज्ञानवडे पोते बीजा बधा जीवथी जुदो अनुभवमां आवे छे.
होवापणे आत्मा अने बधा पदार्थो सरखा छे; परंतु आत्मामां ज्ञान छे ने जडमां ज्ञान नथी ए रीते
आत्मानी विशेषता छे. जेम पुद्गलमां रूपीपणुं एटले के स्पर्श–रस–गंध–वर्ण छे, ते बीजा कोई द्रव्योमां नथी
एटले रूपीपणुं ते पुद्गलनो असाधारण धर्म छे. तेम ज्ञान–दर्शन–आनंद ते जीवमां ज छे, ने बीजा कोईमां
नथी, एटले ज्ञानादि ते जीवना असाधारण धर्मो छे.
जो बधी रीते बधी वस्तुओ समान ज होय ने सौ सौना विशेषधर्मो जुदा न होय तो “आ आत्मा छे
ने आ पर छे”––एम भिन्नपणुं कई रीते ओळखाय? “आ चीज आत्मा छे, ने आ चीज आत्मा नथी” एवुं
भिन्नपणुं आत्माना असाधारणधर्म वडे ओळखाय छे.
वळी, अस्तित्व वगेरे गुणो जेम आत्मामां छे तेम परमां पण छे. आत्माना एकेय गुणो परमां नथी,
परंतु आत्मानी जातना (अस्तित्व वगेरे) केटलाक गुणो परमां छे. जो एम न होय ने सर्वथा असमान धर्मो ज
होय तो आत्मानी माफक परनुं अस्तित्व सिद्ध ज न थाय, एटले आत्मा छे ने परचीज नथी, अथवा परचीज छे
ने आत्मा नथी–एम थई जाय,–परंतु एम नथी. आत्मा पण अस्तिरूप छे ने परचीज पण अस्तिरूप छे, आत्मा
पण वस्तु छे, ने परचीज पण वस्तु छे,–ए रीते अस्तित्व, वस्तुत्व वगेरे साधारण धर्मो छे. अने आत्माना
ज्ञान–आनंद वगेरे भावो परद्रव्योमां नथी एटले आत्माने परथी असाधारणपणुं–भिन्नपणुं छे.
जेम मनुष्य तरीके बधा माणसो सरखा छे, छतां तेमां कोई क्षत्रिय छे, कोई ब्राह्मण छे, कोई वाणीया छे,
कोई हरिजन छे,–एम तेनामां विशेषता छे. तेम जड–चेतन बधी वस्तुओ अस्तिपणे सरखी छे, पण तेमां कोई
ज्ञानवाळी वस्तु छे, कोई ज्ञान वगरनी छे, कोई अमूर्त छे, कोई मूर्त छे–एम तेमनामां विशेष धर्मोवडे विशेषता
पण छे.
आत्मामां होवापणुं छे, ज्ञान छे, अमूर्तपणुं छे, ते बधा धर्मो एक साथे रहेला छे. अस्तित्व बधी
वस्तुमां सरखुं छे, परंतु ‘सरखुं’ कहेवाथी कांई एक ज अस्तित्व गुण बधी वस्तुओमां वहेंचाई गयेलो नथी,
दरेक वस्तुमां पोतपोतानो अस्तित्व गुण जुदो जुदो छे, एकनुं अस्तित्व ते बीजानुं नथी; पण पोतपोतानुं
अस्तित्वपणुं बधायमां छे तेथी तेने समान कह्युं छे. जेम माणसोने मनुष्य तरीके समान कह्या तेथी कांई बधा
माणसो एक थई गया नथी, दरेक माणस जुदो जुदो ज छे. तेम अस्तित्व तरीके बधा पदार्थो सरखा कह्या, पण
तेथी कांई बधा पदार्थो एक थई गया नथी, दरेक पदार्थ जुदे जुदो ज छे.