Atmadharma magazine - Ank 163
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४८३ आत्मधर्म : १३ :
परथी तो आत्मा जुदो छे, ने अंदरना अरूपी विकारथी पण आत्मानो स्वभाव जुदो छे. जेम आत्मा
पण छे ने परमाणु पण छे, छतां बंने जुदा छे, केम के बंनेनो स्वभाव जुदो छे; तेम आ आत्मामां त्रिकाळशुद्ध
स्वभाव पण छे ने क्षणिक विकार पण छे, अस्तित्व बंनेनुं होवा छतां शुद्ध स्वभाव ते विकाररूपे नथी, ने
विकार ते स्वभावरूप नथी, ए रीते बंनेनी भिन्नता छे. –आ रीते बंनेनी भिन्नता होवाथी, अंतर्मुख द्रष्टिवडे
विकारथी भिन्नतानो अनुभव थाय छे. जेम विकारने अने ज्ञानने जुदा पाडीने ज्ञान स्वभावनो अनुभव थई
शके छे, तेम ज्ञान अने आनंदने जुदा पाडी शकाता नथी, केम के ते तो बंने आत्माना स्वभावरूप छे, ते बंने
धर्मो आत्मामां एक साथे रहेला छे, तेमने जुदा पाडी शकाय नहि. परंतु विकारने धारण करी राखवानो कोई
धर्म आत्मामां नथी एटले तेने जुदो पाडी शकाय छे. विकारथी जुदो ने परथी जुदो आत्मानो अनुभव थाय,
पण ज्ञानथी जुदो के आनंदथी जुदो एवो आत्मानो अनुभव थाय नहीं.
जगतमां शरीरादि अजीव छे, रागादि विकार पण छे, ने ज्ञान स्वभाव पण छे.–बधुंय छे एम जाणवुं
जोईए. जो तेना अस्तित्वने ज न जाणे तो अज्ञान छे. अने ते बधायनुं अस्तित्व होवा छतां तेमना भावोनी
विशेषतावडे तेमनी भिन्नता पण ओळखवी जोईए; जो भिन्नता न ओळखे तोय अज्ञान छे. शरीर छे पण ते हुं
नथी, राग छे पण ते हुं नथी, ज्ञान स्वभाव छे ते ज हुं छुं–एम परथी ने विकारथी भिन्न एवा पोताना
ज्ञानस्वभावनो अनुभव करवो ते धर्म छे.
शरीर छे, राग छे, ज्ञान छे,
त्रणेय होवा छतां, ते त्रणेनुं स्वरूप सरखुं नथी.
शरीर ते अजीव छे–ज्ञान वगरनुं छे, तेने अने ज्ञानने तद्न भिन्नता छे. वळी राग तो विकार छे ने ज्ञान
तो आत्मानो स्वभाव छे, ए रीते राग अने ज्ञान ए बंने सरखां नथी, पण जुदा जुदा स्वभाववाळा छे.–आम
भेदज्ञान करीने शुद्ध ज्ञानादि अनंत शक्तिओथी एकाकार एवा पोतानो अनुभव करवो ते मोक्षमार्ग छे.
आत्मा सर्वज्ञत्व शक्तिनो धरनार, अने पुद्गल तद्न अचेतन,–आवो स्वभावभेद छतां अस्तित्वपणे
बंनेमां समानता छे.
आत्मा असंख्यप्रदेशी मर्यादित क्षेत्रवाळो, अने आकाश अनंतप्रदेशी अमर्यादित क्षेत्रवाळुं, छतां बंनेमां
अस्तित्व सरखुं छे, तेमज अमूर्तपणुं बंनेमां सरखुं छे. अस्तित्व वगेरे समान होवा छतां आत्माने पोताना
चैतन्यगुणवडे आकाश साथे असमानपणुं छे.
अस्तित्व वगेरे सामान्य गुणोवडे बधा द्रव्योने समानता होवा छतां, पोतपोताना ज्ञानादि विशेष
गुणोवडे दरेक द्रव्योमां असमानता छे. ए समान, तेमज असमान, अने समान–असमान एवा त्रिविध धर्मो
आत्मामां एक साथे रहेला छे.––जो के बधा द्रव्योमां रहेला छे परंतु अहीं आत्मानी प्रधानता छे.
अस्तित्वने लीधे दरेक द्रव्य अनादिअनंत स्वत: सिद्ध टकेलां छे.
वस्तुत्वने लीधे दरेक वस्तु पोतपोतानी प्रयोजनभूत क्रिया सहित छे.
द्रव्यत्वने लीधे दरेक द्रव्य पोतानी पर्यायोना प्रवाहपणे द्रवे छे–परिणमे छे.
प्रमेयत्वने लीधे दरेक द्रव्य प्रमाणज्ञानमां प्रमेय थाय छे––जणाय छे.
अगुरुलघुत्वने लीधे दरेक द्रव्य पोताना द्रव्यगुणपर्यायपणे रहे छे, ने परना द्रव्य–गुण–पर्यायपणे थतुं नथी.
प्रदेशत्व गुणने लीधे दरेक द्रव्य पोतपोताना प्रदेशरूप आकारपणे रहे छे.
––आ अस्तित्व वगेरे सामान्य गुणो छे, ते दरेक द्रव्यमां छे. जीव–पुद्गल–धर्म–अधर्म–आकाश अने
काळ ए छए द्रव्यो आ सामान्यगुण अपेक्षाए सरखा छे अर्थात् सामान्यगुणो छए द्रव्योमां छे. अने ज्ञान,
रूपीपणुं, गतिहेतुत्व, स्थिति हेतुत्व, अवगाहनहेतुत्व तथा परिणमनहेतुत्व–ईत्यादि विशेष धर्मो वडे दरेक
द्रव्यने बीजाथी असाधारणपणुं छे. आत्मामां अनंत धर्मो छे