Atmadharma magazine - Ank 163
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४८३ आत्मधर्म : ५ :
चै त न्य र त्न नी प री क्षा
(झ वे री ने म ळे लुं ई ना म!)
(फेदरा गामां पू० गुरुदेवनुं प्रवचन : : कारतक वद ६ : शुक्रवार)

[
तत्त्वज्ञानतरंगिणी: पांचमो अध्याय, श्लोक पहेलो]
भगवान तीर्थंकरदेव कहे छे के आ जीवे संसारना परिभ्रमणमां बधुं जाण्युं पण चैतन्यस्वरूप आत्माने
जाण्यो नथी. रत्नोना पारखां कर्या, पण आ देहमां रहेला चैतन्यरत्नने न पारख्युं, तेथी अहीं कहे छे के–
[तत्त्वज्ञानतरंगिणी अ. प, श्लोक १]
जिज्ञासु जीव विचार करे छे के अरे, आ संसारमां परिभ्रमण करतां में पूर्वे अनेक वार रत्नो, औषधि,
सिंह–वाघ, हाथी–घोडा, मगरमच्छ, सोनुं–चांदी वगेरेनी ओळखाण करी, परंतु जगतमां श्रेष्ठ एवा मारा
चैतन्यरत्नने में कदी न ओळख्युं. तेथी मारे माटे आ जगतमां हीरा–रत्नो वगेरे कोई पदार्थ अपूर्व नथी, पण
मारो आत्मा ज मारे माटे अपूर्व पदार्थ छे. आम विचारीने जिज्ञासु आत्मा पोताना शुद्ध चैतन्यरत्ननी
प्राप्तिनो प्रयत्न करे छे.
जुओ, एक द्रष्टांत आवे छे: एक मोटो झवेरी हतो; झवेरातनी परीक्षा करवामां ते बहु कुशळ हतो.
राजदरबारमां एक वार कोई परदेशी झवेरी घणुं ज किंमती रत्न लईने आव्यो, ने राजाने कह्युं के तमारा
झवेरीओ पासे आ रत्ननी किंमत करावो. राजाए झवेरीओने आज्ञा करी, पण कोई तेनी किंमत करी न शक्या.
छेवटे राजाए पेला वृद्ध झवेरीने बोलाव्यो ने तेणे बराबर किंमत करी तेथी राजाए खुशी थईने ते झवेरीने
ईनाम आपवा माटे दीवानने आज्ञा करी. दीवानजीए कह्युं के: बीजे दिवसे ईनामनी जाहेरात करशुं. रात्रे
झवेरीने बोलावीने पूछयुं: झवेरीजी! तमे आ रत्ननी परीक्षा करतां तो शीख्या पण आ देहथी भिन्न
चैतन्यरत्नने जाण्युं छे खरुं? झवेरी कहे: ना, चैतन्यरत्ननी परख करतां तो मने नथी आवडती. दीवानजी कहे:
अरे झवेरी! तमने ८०–८० वर्ष थया, मरणनां टाणां आव्या, ने आवा मनुष्य अवतारमां आत्माना हितने
माटे तमे कांई न कर्युं! माणेक–मोती ने रत्नोना पारखां कर्या पण चैतन्यरत्नने न पारख्युं तो आ अवतार पूरो
थतां आत्माना क्यां उतारा थशे!! एम शिखामण आपीने त्यारे तो झवेरीने विदाय कर्या, ने बीजे दिवसे
कचेरीमां आववानुं कह्युं.
बीजो दिवस थयो, त्यां कचेरी भराणी छे, राजा बेठा छे, झवेरी पण आव्या छे. राजाए दीवानजीने
आज्ञा करी के हवे आ झवेरीना ईनामनी जाहेरात करो. दीवानजीए ऊभा थईने कह्युं : महाराज! आ झवेरीने
सात खासडा मारवानुं ईनाम आपवानुं हुं जाहेर करुं छुं. दीवानजीनी वात सांभळतां ज राजा अने आखी
सभा आश्चर्यमां पडी गया...त्यां तो झवेरी पोते ऊभो थईने, हाथ जोडीने राजाने कहेवा लाग्यो के महाराज!
आ दीवानजी कहे छे ते साचुं छे, अरे! मने सात नहि पण चौद खासडा मारवा जोईए.. झवेरीनी वात
सांभळीने तो वळी बधायने विशेष अचंबो थयो. छेवटे झवेरीए खुलासो कर्यो के : हे राजन्! आ दीवानजीए
कह्युं तेम मने खासडां ज मारवा जेवुं छे; केमके में मारुं जीवन आत्माना भान वगर एम ने एम व्यर्थ गुमाव्युं.
में आ जड हीराने पारखवामां जिंदगी वीतावी, पण मारा चैतन्यरत्नने में कदी पारख्युं नहि. आ भव पूरो
थतां मारा आत्मानुं शुं थशे? एनो में कदी विचार कर्यो नथी. आ दीवानजीए मने सात खासडानुं ईनाम
आपवानुं कहीने मने आत्महित माटे जागृत कर्यो छे, तेथी ते तो मारे गुरुसमान छे.
अहीं आत्मार्थी जीव विचारे छे के : अरे! में रत्नो वगेरे ओळख्या पण चैतन्यरत्नने न पारख्युं.