Atmadharma magazine - Ank 164
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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सम्मेदशिखरजी की यात्रा दरमियान–
मधुबन में श्रीमान् पं० फूलचंदजी साहब का
भावपूर्ण संक्षिप्त भाषण
ता० १६–३–५७ के दिन मधुबन में श्रीमान् पं० बंसीधरजी साहब के
भाषण के बाद पं० फूलचंदजी साहबने भी संक्षिप्त वक्तव्य के द्वारा अपना भाव
व्यक्त किया था–जो यहां दिया जाता है।
हमारे पू० पंडितजी [बंसीधरजी साहब] हमारे गुरुजी है, उन्होंने आपके
[पू० कानजीस्वामी के] बारे में बहुत स्पष्ट कह दिया। जब आप खडे हुए, हमने सोचा था
कि आप बहुत मर्यादा में रहकरके बोलेंगे, लेकिन हमने देखा कि भावना मर्यादा का
उल्लंघन करती है।
महाराजजी का जो प्रवचन हो रहा है उसके बारे में कुछ लोगों में भ्रान्ति फैली हुयी
है; मैं कहता हूं कि वे लोग आकर के प्रवचन सूनें; ऐसा काम न करें कि जनताको
सम्यग्ज्ञान के लाभमे बाधक हो।
कल रात को जिनमंदिर में इन लोगों की भक्ति हम सबने देखी; मैं आपसे पूछता हूं
कि क्या ऐसी भक्ति हमने कभी देखी है?
पू० स्वामीजी के साथ इन्दोर से मैं सम्पर्क मे रहा आता हूं। मैं आपकी और संघ
के सदस्यों की क्रिया, व्यवहार, धर्मकी लगन, भक्ति–जो भी देख रहा हूं, उस परसे एक
पंडित के नाते–विद्वत्परिषदके अध्यक्ष के नाते मैं घोषित करता हूं कि ये लोग पूरे
दिगम्बर है–सच्चे दिगम्बर है, धर्मबंधु के नाते हमें उनका स्वागत करना चाहिए, और
स्वामीजीके उपदेश का लाभ लेना चाहिए। यहां की जनता उनसे परिचत नहीं है, अतः
जनता से कोई अनुचित प्रवृत्ति न हो जाय–इसलिये हमें स्थिति को सम्हाल लेना चाहिए।
हमारी इच्छा है कि स्वामीजी का जहां जहां आगमन हो वहां जनता स्वागत करे और
आपके प्रवचन से लाभ उठावें।
सागर के प० मुन्नालालजी साहबकी भावना
मधुबन में ता० १६–३–५७ के दिन पं० बंसीधरजी व पं० फूलचंदजी–पंडितद्वय के
भाषण के बाद में सागर विद्यालय के मंत्री पं० मुन्नालालजी साहबने भी संक्षिप्त में अपनी
भावना व्यक्त करते हुए कहा कि–
स्वामीजी के विषय में कोई शंका नहि। दि० जैन विद्यालय–सागर का जो उत्सव यहां
की पावन भूमि में संतो के सान्निध्यमें हुआ है उसके लिये हम आपके आभारी है। भविष्य में
हमारे स्नातकों को सोनगढ भेजकर के वहां की द्रष्टि प्राप्त करने की हमें प्रेरणा हुई है।।
જેઠઃ ૨૪૮૩ આત્મધર્મઃ ૧૧