Atmadharma magazine - Ank 164
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष चौदमुं ः सम्पादकः जेठ
अंक आठमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८३
दिव्य ध्वनि धाम राजगृही तीर्थमां
मंगल प्रवचन
माह वद १४ ना रोज राजगृहीनगरीमां पू. गुरुदेवे संघ सहित दिव्यध्वनिना
धाम विपुलाचल तीर्थनी यात्रा करी.....विपुलाचल उपर वीर प्रभुना समवसरणना अने
दिव्यध्वनिना धामने हृदयनी ऊंडी ऊर्मिओपूर्वक नजरे नीहाळ्‌या.....दिव्यध्वनि छूटवाना
ए धन्य प्रसंगने याद करीने भावभीनी अद्भुत भक्ति करी.....त्यारबाद नीचे आवीने
प्रवचनमां जे भक्तिनुं झरणुं वहाव्युं ते अहीं आपवामां आव्युं छे. दिव्यध्वनि छूटवानी
पावन तिथि–अषाड वद एकम–नजीक आवी रही छे त्यारे आ भक्तिभर्युं प्रवचन
जिज्ञासु जीवोने विशेष उपयोगी थशे.
*
तीर्थंकरोना ज्यां कल्याणक थया, अने आत्मज्ञान ध्यानवंत मुनिओना चरणथी जे भूमि स्पर्शाई तेने तीर्थ
कहेवाय छे. आ राजगृही तीर्थधाम छे. अहीं महावीर भगवाननुं समवसरण हतुं. भगवानना वखतमां राजा
श्रेणिकनी आ राजधानी हती. अहीं महावीर भगवानना समवसरणमां श्रेणिक राजा क्षायक सम्यक्त्व पाम्या हता.
तेमने हजी चारित्र न हतुं; पण आत्मानुं भान हतुं ने तेमने तीर्थंकरनामकर्म बंधायुं छे, आवता भवमां ते आ
भरतक्षेत्रना पहेला तीर्थंकर थशे.
आ राजगृही छे. महावीर भगवानना वखतमां राजा श्रेणिक अहीं राज्य करता हता. राज्यनो ते प्रकारनो
राग तेमने हतो, पण राग जेटलो आत्मा तेओ मानता न हता, रागथी ने राजथी पार चिदानंद स्वरूपनुं तेमने
भान हतुं. अहीं तो आ चोवीसीना २३ तीर्थंकर भगवंतोना समवसरण आवेला छे. २३–२३ तीर्थंकरोना चरणोथी
स्पर्शायेली आ महापवित्र भूमि छे, तेथी आ तीर्थ छे. अनेक संतोए आत्मानुं ज्ञान–ध्यान करीने भवथी तरवानो
उपाय आ भूमिमां कर्यो छे.
अषाड वद एकमना रोज सर्वज्ञ भगवान महावीर परमात्मानी दिव्यध्वनि आ विपुलाचल उपर सौथी
पहेली नीकळी हती, ते ज आ क्षेत्र छे. गौतमस्वामीनुं गणधर पद पण अहीं ज थयुं हतुं ने भगवाननी देशना
झीलीने बार अंगरूप शास्त्रोनी रचना पण अहीं ज गौतमस्वामीए करी हती. वैशाख सुद दसमे भगवानने
केवळज्ञान थयुं पण ६६ दिवस सुधी दिव्यध्वनि न नीकळ्‌यो; अहीं भगवाननुं समवसरण आव्युं, ने गौतमस्वामी
सभामां आवतां ६६ दिवसे पहेलवहेली दिव्यध्वनिनी अमृतवर्षा अहीं थई. एवी आ तीर्थभूमि छे. अहीं ज
भगवानना समवसरणमां श्रेणिक राजा क्षायक सम्यक्त्व पाम्या हता.
वळी भगवान मुनिसुव्रतनाथना गर्भ–जन्म तप