आव्या छे, तेथी आ पावन तीर्थ छे.
जोतां आत्माना ज्ञान–आनंदनुं स्मरण जागे छे के अहो! आत्माना अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदने पामेला सर्वज्ञो
अने संतो अहीं आ भूमिमां विचर्या छे. तेथी भूमि पण तरवानुं निमित्त होवाथी ते तीर्थ छे. भाव तीर्थ तो
आत्मानुं ज्ञान–ध्यान छे, पण ते ज्ञानध्यानवाळा संतो ज्यां विचर्या ते भूमि पण तीर्थ छे; जे काळमां ते
विचर्या ते काळ पण मंगळ छे. आवी तीर्थभूमिने जोतां आत्माना ज्ञान–आनंदने लक्षमां लईने ते ज्ञान–
आनंद स्वभाव तरफ जे जीव झूके छे ते जीव भवथी तरी जाय छे. आम भाव तीर्थ वडे जे जीव तरे छे तेने
तरवामां आ क्षेत्र पण निमित्त छे तेथी ते पण तीर्थक्षेत्र छे.
आ तीर्थ छे. आ भूमिमां शासननुं प्रवर्तन थयुं छे. पोताना आत्मामां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप तीर्थनुं प्रवर्तन
थयुं ते पोतानुं जैनशासन छे. अहीं भगवानना समवसरणमां अनेक जीवो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप तीर्थने
पाम्या छे. अषाड वद एकमे अहीं भगवानना समवसरणमां चार तीर्थनी स्थापना थई; ए रीते भगवानना
शासनप्रवर्तननी आ भूमि छे; तेथी आ तीर्थ छे.
आरोप करीने भूमिने पण तीर्थ कह्युं. अहो, आत्माना ज्ञान–ध्यानमां लीन संतो जे भूमिमां विचर्या ते भूमि
जगतमां तीर्थ छे. ते संतोना चरणोथी जे धूळ स्पर्शाई ते धूळ पण तीर्थ छे. जेने आत्माना ज्ञान–ध्याननो प्रेम
छे ते ज्ञान–ध्याननुं स्मरण करीने आवी भूमिनुं पण बहुमान करे छे के अहो! ज्ञान–ध्यानधारक वीतरागी संतो
अहीं विचरता हता......
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप भाव तीर्थ साथेनी संधिपूर्वक तीर्थयात्रानी आ वात छे.
आत्माना ज्ञान–आनंदनुं स्मरण थाय छे. पण कोने? के जेने अंतरमां आत्माना ज्ञान–आनंदनुं लक्ष थयुं छे तेने
तेनुं स्मरण थाय छे, ने तेमां निमित्तरूप होवाथी आ भूमि पण तीर्थ छे. आ रीते उपादान–निमित्तनी संधि छे.
एकली भूमिनुं ज्ञान ते तो एकांत परप्रकाशक छे, तेमां बहु तो शुभ भाव थाय, पण ते कांई तरवानुं कारण नथी.
तरवानुं कारण तो सम्यग्ज्ञान छे. आत्माना ज्ञान–आनंदनुं भान अने स्मरण ते स्वप्रकाशक छे, ने तेमां निमित्तरूप
आ राजगृही आदि तीर्थक्षेत्रनुं ज्ञान ते पर प्रकाशक छे. आवुं स्व–परप्रकाशक सम्यग्ज्ञान थयुं ते तीर्थ छे;
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप भावतीर्थ धारक संतो ज्यां ज्यां विचर्या ते क्षेत्र पण जगतमां तीर्थ छे. तेथी अहीं
(तत्त्वज्ञानतरंगिणीमां) कह्युं केः–
सुरौधौ याति दासत्वं शुद्धाचिद्रक्तचेतसां ।। २२।।
थई जाय छे ने अनेक देवो तेना दास बनी जाय छे.
ः ४ः