Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४८३ : आत्मधर्म : ९ :
करता नथी. परनी वात तो दूर रहो, परंतु पोतानामां ने पोतामां एक गुण बीजा गुणनुं काम करतो नथी,
जाणवुं ते ज्ञान–गुणनुं काम छे, ते कार्य श्रद्धा वगेरे गुणो न करे. अहो, पोतानो एक गुण पोताना ज बीजा
गुणनुं कार्य नथी करतो तो पछी ते बीजा पर द्रव्योनुं शुं कार्य करे? ज्ञाननुं लक्षण ‘जाणपणुं’ ते शुं पुण्य–पापने
करे? –परने करे? ए ज प्रमाणे श्रद्धानुं कार्य प्रतीति, आनंदनुं कार्य आह्लाद, एम दरेक गुण पोतपोताना
कार्यने करे छे; कोई गुणनुं एवुं कार्य नथी के विकारने करे के परने करे!
प्रश्न:– राग–द्वेष ते चारित्र गुणनुं तो कार्य छे ने?
उत्तर:– जेने गुण–गुणीनी एकतानी खबर नथी एवो अज्ञानी जीव विकारने पोताना गुणनुं कार्य माने
छे, तेने स्वभाव अने विकारनुं भेदज्ञान नथी. ज्ञानी तो गुण–गुणीनी एकतानी द्रष्टिथी, गुणस्वभावना
आश्रये निर्मळता–रूपे ज परिणमे छे; त्यां साधकने जे थोडोक विकार रह्यो छे तेने, स्वभावनी द्रष्टिमां गुणना
कार्य तरीके ते स्वीकारतो नथी, पण तेने गुणथी भिन्न जाणे छे. गुण साथे एकता थईने जेटली निर्मळ परिणति
थई ते ज गुणनुं कार्य छे. जेने गुणना शुद्ध स्वभावनी खबर ज नथी तेने गुणनुं शुद्ध कार्य क्यांथी थाय?
विकार करवा उपर जेनी द्रष्टि छे तेने गुण उपर द्रष्टि नथी.
आत्मानो कोई गुण परने करे ए तो वात नथी, अने आत्मानो कोई गुण विकारने करे ए वात पण
नथी. ते उपरांत अहीं तो कहे छे के एक गुणना निर्मळ कार्यने पण बीजो गुण करतो नथी केमके दरेक गुणो
विलक्षण छे. अखंड आत्माना आश्रये तेना बधाय गुणोनुं निर्मळ कार्य एक साथे थवा मांडे छे. एक वस्तुमां
रहेला अनंत गुणोमां पण सर्व गुण परस्पर असहाय छे, एक गुण बीजा गुणने सहायरूप नथी; जो एक गुण
बीजाने सहाय करे तो वस्तुना अनंत गुणो सिद्ध न थाय; गुणोनुं विलक्षणपणुं न रहे. कोईने श्रद्धा क्षायक थाय
छतां ज्ञान क्षायक न थाय, केमके बंने गुण जुदा छे, ने बंनेना कार्य जुदा छे. ए प्रमाणे बधा गुणोमां समजी
लेवुं. भाई! तारो एक गुण तारा बीजा गुणना कार्यने पण मदद नथी करतो, तो पछी तारो आत्मा परनां के
विकारनां कामने करे ए मान्यता क्यां रही? अने शरीर के पुण्य तने धर्ममां मदद करे ए वात पण क्यां रही?
तारो एकलो ज्ञाननो उघाड ते पण सम्यक्श्रद्धाने मददगार नथी थतो (–केमके एकला ज्ञानना उघाडथी
सम्यक्श्रद्धा नथी थती,) तो पछी राग के बहारनी चीज तने सम्यक्श्रद्धा वगेरेमां मददगार केम थाय?
अनंतधर्मवाळा आत्माने जे खरेखर माने ते पोताना धर्ममां बहारनी चीजने के रागने मददगार माने
ज नहीं, अने एकला एक गुणना आधारे पण धर्म न माने एटले भेद उपर द्रष्टि न राखे; पण अनंत गुणना
अभेदपिंडरूप आत्मा उपरनी द्रष्टिथी तेने पर्याये पर्याये धर्म थाय छे.
आत्माना अनंत धर्मोमां दरेक गुणनुं लक्षण स्वतंत्र छे, छतां बधा गुणोनुं कार्य तो अभेद आत्माना ज
आश्रये थाय छे. अनंत गुणोथी जुदो पडीने एकेक गुण पोतानुं काम नथी करतो, पण आत्मा परिणमतां एक
साथे तेना बधा गुणो परिणमे छे.
ज्ञानना लक्षणवडे श्रद्धा न ओळखाय, श्रद्धाना लक्षणवडे ज्ञान न ओळखाय, एम अनंत गुणो भिन्न
भिन्न लक्षणवाळा होवा छतां ‘आत्मा’ कहेतां तेमां बधा गुणो एक साथे समाई जाय छे; एटले आवा अभेद
आत्मामां अंतर्मुख थईने जे अनुभव करे तेने आत्माना अनंत धर्मोनी खबर पडे. बधाय आत्मा अनंत
गुणथी भरेला होवा छतां स्वसन्मुख थईने जे तेनी संभाळ करे तेने माटे ज तेनुं खरुं अस्तित्व छे; अनंत
शक्तिवाळा आत्मानो जेने निर्णय नथी तेने, अनंत शक्ति होवा छतां तेनो शुं लाभ? एटले तेने तो ते नहि
होवा समान ज छे. जेम घरमां रत्न वगेरेना भंडार भर्या होय पण तेनी खबर न होय तो ते नहि होवा
समान ज छे. घरमां अनाजनी कोठी भरी होय पण तेनी खबर न होय ने भूखे मरतो होय तो, तेने तो ते
अनाज होवा छतां ते न होवा जेवुं ज छे. तेम आत्मामां अनंत शक्ति सिद्ध भगवान समान भरी होवा छतां,
तेनी जेने खबर नथी–तेनी सन्मुख थईने आनंदनो अनुभव करतो नथी ने एकला विकारने ज सर्वस्व मानीने
अनुभवी रह्यो छे, तेने तो ते शक्तिओ न होवा समान ज छे, –तेने ते शक्तिओ पर्यायमां