आम ज्यां निर्णय कर्यो त्यां तो स्वसन्मुख अपूर्व पुरुषार्थथी ते शक्तिओ पर्यायमां ऊछळवा मांडी... अनंती
शक्तिओ निर्मळपणे वेदनमां आवी... अनंतशक्तिवाळो भगवान आत्मा प्रसिद्ध थयो. –त्यारे ज
अनंतशक्तिना खरा महिमानी खबर पडी.
शक्तिओने पृथक् पृथक् लक्षण सहित प्रत्यक्ष जाणे एवी बेहद ताकातवाळुं केवळज्ञान खीली जाय छे. शक्तिना
भेद उपर लक्ष छे त्यां बधी शक्तिनुं भिन्न भिन्न ज्ञान थई शकतुं नथी, पण ज्यां भेदनुं लक्ष छूटीने, अभेद
आत्माना अवलंबने केवळज्ञान थयुं त्यां बधी शक्तिनुं भिन्न भिन्न ज्ञान पण थई जाय छे. आ रीते अंतरना
अभेद स्वभावना अवलंबन ते ज मार्ग छे. सम्यग्दर्शन पण अंतरना अभेद स्वभावना अवलंबने ज थाय छे,
सम्यग्ज्ञान पण तेना ज अवलंबने थाय छे, ने सम्यक्चारित्र पण तेना ज अवलंबने थाय छे. बधायमां
अंतर्मुख वलणनी एक ज धारा छे.
आचार्यदेव आत्मानो वैभव बतावे छे. भाई! जुदा जुदा स्वरूपवाळी अनंती शक्तिनो वैभव तारामां छे, तेने
संभाळीने सिद्धपदमां ते वैभवने साथे लई जवानो छे.
शुद्ध चैतन्य प्राणने धारण करवुं ते आत्माना जीवत्वनुं लक्षण छे.
स्वरूपनी रचनानुं सामर्थ्य ते वीर्यशक्तिनुं लक्षण कह्युं;
अखंडित प्रतापवाळी स्वतंत्रताथी शोभीतपणुं ते प्रभुतानुं लक्षण कह्युं.
प्रकाश शक्तिनुं लक्षण स्वयं प्रकाशमान विशद स्वसंवेदन कह्युं;
विलक्षण अनंत स्वभावोथी भावित एवो एक भाव ते अनंतधर्मत्व शक्तिनुं लक्षण कह्युं;
वळी तद्रूपमयपणुं अने अतद्रूपमयपणुं ते विरुद्ध धर्मत्वशक्तिनुं लक्षण कहेशे.
–आ प्रमाणे दरेक शक्तिओ विलक्षण छे, एटले के तेमना लक्षणो एक बीजी साथे मळता नथी. हजी तो
विकार साथे तो एकता क्यांथी होय? शक्तिओने तो लक्षणभेद होवा छतां आत्मस्वभावनी अभेदतानी
अभेद नथी. आत्मामां अनंत शक्तिओ होवा छतां तेमनामां एक भावपणुं छे–एवा आत्माने लक्षमां लेतां
विकार के पर तेमां नथी आवता, एटले विकार अने पर साथेनी एकताबुद्धि रहेती नथी; अनंत शक्तिवाळा
एक स्वभावमां ज एकताबुद्धि थईने, तेना आश्रये शक्तिओ निर्मळपणे खीली जाय छे.
भान वगर धर्म केवो? ने साधुपणां केवा?