Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : अषाड : २४८३ :
ऊछळती नथी. “अहो! मारो आत्मा तो अनंत शक्तिसंपन्न छे, क्षणिक विकार जेटलुं मारुं अस्तित्व नथी” –
आम ज्यां निर्णय कर्यो त्यां तो स्वसन्मुख अपूर्व पुरुषार्थथी ते शक्तिओ पर्यायमां ऊछळवा मांडी... अनंती
शक्तिओ निर्मळपणे वेदनमां आवी... अनंतशक्तिवाळो भगवान आत्मा प्रसिद्ध थयो. –त्यारे ज
अनंतशक्तिना खरा महिमानी खबर पडी.
अनंती शक्तिना जुदा जुदा लक्षणो वाणीथी वर्णवी न शकाय, तेमज विकल्पथी के छद्मस्थना ज्ञानथी
पण ते पकडी न शकाय; परंतु अनंत शक्तिथी अभेद एक द्रव्यने ज्ञानलक्षणवडे पकडीने तेमां लीन थतां, बधी
शक्तिओने पृथक् पृथक् लक्षण सहित प्रत्यक्ष जाणे एवी बेहद ताकातवाळुं केवळज्ञान खीली जाय छे. शक्तिना
भेद उपर लक्ष छे त्यां बधी शक्तिनुं भिन्न भिन्न ज्ञान थई शकतुं नथी, पण ज्यां भेदनुं लक्ष छूटीने, अभेद
आत्माना अवलंबने केवळज्ञान थयुं त्यां बधी शक्तिनुं भिन्न भिन्न ज्ञान पण थई जाय छे. आ रीते अंतरना
अभेद स्वभावना अवलंबन ते ज मार्ग छे. सम्यग्दर्शन पण अंतरना अभेद स्वभावना अवलंबने ज थाय छे,
सम्यग्ज्ञान पण तेना ज अवलंबने थाय छे, ने सम्यक्चारित्र पण तेना ज अवलंबने थाय छे. बधायमां
अंतर्मुख वलणनी एक ज धारा छे.
आ जीवनी परिणतिने अनादि संसाररूपी पीयरमांथी सिद्धदशारूपी सासरे वोळावतां तेनो करियावर
संतो बतावे छे. जेने आत्मानी लगनी लागी छे–मोक्षनी लगनी लागी छे एवा आत्मार्थी–मोक्षार्थी जीवने
आचार्यदेव आत्मानो वैभव बतावे छे. भाई! जुदा जुदा स्वरूपवाळी अनंती शक्तिनो वैभव तारामां छे, तेने
संभाळीने सिद्धपदमां ते वैभवने साथे लई जवानो छे.
पहेलांं जीवत्व शक्तिनुं लक्षण एम बताव्युं के आत्म द्रव्यने कारणभूत एवा चैतन्य मात्र भावनुं
धारण करवुं ते जीवत्व शक्ति छे; आ शरीर के दस प्राणने धारण करवुं ते आत्माना जीवत्वनुं स्वरूप नथी, पण
शुद्ध चैतन्य प्राणने धारण करवुं ते आत्माना जीवत्वनुं लक्षण छे.
पछी बीजी चिति शक्तिमां कह्युं के अजडत्वस्वरूप एटले के जरा पण जडपणुं जेनामां नथी एवी चिति
शक्ति छे, एटले के परिपूर्ण जाणवुं ते चितिशक्तिनुं स्वरूप छे;
सुखशक्तिनुं लक्षण अनाकुळता कह्युं;
स्वरूपनी रचनानुं सामर्थ्य ते वीर्यशक्तिनुं लक्षण कह्युं;
अखंडित प्रतापवाळी स्वतंत्रताथी शोभीतपणुं ते प्रभुतानुं लक्षण कह्युं.
प्रकाश शक्तिनुं लक्षण स्वयं प्रकाशमान विशद स्वसंवेदन कह्युं;
विलक्षण अनंत स्वभावोथी भावित एवो एक भाव ते अनंतधर्मत्व शक्तिनुं लक्षण कह्युं;
वळी तद्रूपमयपणुं अने अतद्रूपमयपणुं ते विरुद्ध धर्मत्वशक्तिनुं लक्षण कहेशे.
–आ प्रमाणे दरेक शक्तिओ विलक्षण छे, एटले के तेमना लक्षणो एक बीजी साथे मळता नथी. हजी तो
पोताना गुणोमां पण आ रीते एक गुणना लक्षणने बीजा गुण साथे एकतानो मेळ नथी, तो पछी पर साथे के
विकार साथे तो एकता क्यांथी होय? शक्तिओने तो लक्षणभेद होवा छतां आत्मस्वभावनी अभेदतानी
अपेक्षाए ते बधी शक्तिओ अभेद छे, परंतु तेवी रीते विकार के पर चीज कांई आत्माना स्वभावनी साथे
अभेद नथी. आत्मामां अनंत शक्तिओ होवा छतां तेमनामां एक भावपणुं छे–एवा आत्माने लक्षमां लेतां
विकार के पर तेमां नथी आवता, एटले विकार अने पर साथेनी एकताबुद्धि रहेती नथी; अनंत शक्तिवाळा
एक स्वभावमां ज एकताबुद्धि थईने, तेना आश्रये शक्तिओ निर्मळपणे खीली जाय छे.
आत्मामां पोतानी अनंती शक्तिओ छे तेम धर्मास्तिकाय वगेरे द्रव्योमां पण अनंती शक्तिओ छे.
अनंती शक्ति वगरनी कोई वस्तु ज होय नहि.–आ तो जैनतत्त्वनुं मूळ रहस्य छे. आवा मूळ वस्तु–स्वरूपना
भान वगर धर्म केवो? ने साधुपणां केवा?
‘जैनना बारिष्टर’ गणाती एक व्यक्तिने कोईए पूछयुं– ‘धर्मास्तिकायमां केटला गुण?’ तो कहे के बे;
कया कया? –के एक अरूपीपणुं ने बीजुं गतिहेतुत्व! जुओ, आ बारिष्टर!! –हजी तो जिनेन्द्र भगवाने