Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 21

background image
: ८ : आत्मधर्म : अषाड : २४८३ :
आत्माने लक्षमां लईने एकपणे अनुभव करतां, तेमां एक साथे अनंत धर्मोना निर्मळ परिणमननो अनुभव
थाय छे.
आठमी शक्तिमां सर्व भावोमां व्यापक एवा एक–भावस्वरूप विभुत्व कह्युं हतुं.
आ सत्तावीसमी शक्तिमां विलक्षण अनंत स्वभावोथी भावित एवा एकभावस्वरूप अनंतधर्मत्व
बताव्युं छे.
अनंत धर्मोना साधारण, असाधारण तथा साधारणा–साधारण एवा त्रण प्रकार पाडीने ते त्रण
प्रकारना धर्मोना धारणस्वरूप छवीसमी शक्ति बतावी; तेमां त्रण प्रकार बतावीने त्रणे प्रकारोने अभेद आत्मा
साथे एकरूप कर्या; अने अहीं विलक्षण अनंत धर्मोथी भावित एवा एकभावस्वरूप अनंतधर्मत्व शक्ति कहीने,
अनंत धर्मोनुं आत्मामां अभेदपणुं बताव्युं. जुदा जुदा अनंत धर्मो अने छतां आत्मानुं एकपणुं–एवो अचिंत्य
अनेकान्त स्वभाव छे. ज्ञाननो आत्मा जुदो, आनंदनो आत्मा जुदो, श्रद्धानो आत्मा जुदो–एम नथी, आत्मा
तो अनंतगुणना पिंडस्वरूप छे.
छद्मस्थने जुदा जुदा अनंत धर्मो ख्यालमां न आवे, पण अनंत धर्मोथी अभेद एवा आत्मानो
अनुभव थाय; ते अनुभवमां बधाय धर्मो आवी जाय छे; अने युक्तिथी तथा आगम वगेरेथी अनंत धर्मोनो
निर्णय थाय छे.
आत्मा परथी तो जुदो; एक समयना विकारथी आत्मानी शक्तिनो स्वभाव जुदो; अने आत्मानी
अनंत शक्तिओमां पण दरेकनो स्वभाव जुदो छे; छतां आत्मामां ते बधी शक्तिओ एक भावरूप थईने रहेली
छे–एवो ज आत्मानो स्वभाव छे. जेम औषधिनी एक गोळीमां अनेक प्रकारना ओसडनो स्वाद रहेलो छे, तेम
आत्मस्वभावना अनुभवमां अनंत शक्तिओनो रस भेगो छे. आ रीते अनंतधर्मत्व शक्तिवाळो एक आत्मा
छे; आ शक्तिओना वर्णन द्वारा धर्मोना भेद बताववानुं प्रयोजन नथी, पण धर्मीना धर्मोद्वारा धर्मी एवा
अखंड आत्माने लक्ष्य कराववो छे.
आत्मामां अनंत शक्तिओ छे, परंतु तेमां एवी तो कोई शक्ति नथी के परनुं कांई करी द्ये. आत्मानी
शक्तिओ वडे तो आत्मा लक्षित थाय छे; परंतु आत्मानी शक्ति ते लक्षण अने पर तेनुं लक्ष्य–एम थतुं नथी.
तेथी परना लक्षे आत्मानी शक्तिओनी प्रतीत थती नथी, अखंड आत्माना लक्षे ज तेनी शक्तिओनी यथार्थ
प्रतीत थाय छे.
ज्ञानलक्षणवडे अनंत धर्मवाळो आत्मा प्रसिद्ध थाय छे–तेनी आ वात चाले छे. लक्षण तेने कहेवाय के
घणा पदार्थोमांथी कोई एक खास पदार्थने जुदो ओळखावे. समस्त पर पदार्थोथी जुदो, ने पोताना अनंत
धर्मोनो पिंड एवो आत्मा ज्ञानलक्षणवडे ज ओळखाय छे. ज्ञानलक्षण तो खरेखर विकारथी पण आत्माने जुदो
बतावे छे. “ज्ञानलक्षण” अनंत धर्मोवाळा आत्माने लक्षित करे छे, पण ज्ञानलक्षण कांई विकारने लक्षित नथी
करतुं. आत्मानी अनंत शक्तिओमां विकार थवानी कोई शक्ति नथी. “वैभाविक” नामनी एक शक्ति छे परंतु
तेनो स्वभाव पण कंई विकार करवानो नथी; कोई पण विशेष भावरूपे परिणमवुं ते वैभाविक शक्तिनुं कार्य छे,
तेमां पण निर्मळ–निर्मळ विशेष भावोरूपे परिणमवुं–ते ज तेनो स्वभाव छे. आवी वैभाविक शक्ति सिद्धदशामां
पण छे. विकाररूप परिणमन थाय छे ते तो उपरनी (–पर्यायनी) एक समयनी तेवी लायकात छे, परंतु
आत्मानी एकेय शक्ति एवी नथी. –“शक्तिमानने भजो” –आवा शक्तिमान आत्माने ओळखीने तेने भजे
(एटले के आराधे) तो विकार टळीने शुद्धता थया विना रहे नहीं. एक समयनो विकार तो शक्ति वगरनो छे,
तेना भजनथी कल्याण थतुं नथी. पण अनंती शुद्धशक्तिओथी भरेला एवा पोताना आत्मस्वभावनी प्रतीत
करवाथी ज धर्म अने कल्याण थाय छे.
आत्मा पोते स्वयंसिद्ध तत्त्व छे, ते परथी ने विकारथी जुदुं छे पण पोताना अनंत गुणोथी जुदुं नथी.
अने अनंत गुणोथी अभेद एक तत्त्व होवा छतां तेना दरेक गुणनो स्वभाव जुदो जुदो छे. –आवा आत्मानी
समजण कहों के धर्म कहो; धर्म अने आत्मानी समजण ए बंने जुदा नथी. आत्मानी साची समजण ते पहेलो
अपूर्व धर्म छे, तेना विना धर्म थतो नथी.
आत्मा अनंत शक्तिनो पिंड छे, छतां आत्मा, तेनो कोई गुण के तेनी कोई गुणनी पर्याय परनुं काम