थाय छे.
आ सत्तावीसमी शक्तिमां विलक्षण अनंत स्वभावोथी भावित एवा एकभावस्वरूप अनंतधर्मत्व
साथे एकरूप कर्या; अने अहीं विलक्षण अनंत धर्मोथी भावित एवा एकभावस्वरूप अनंतधर्मत्व शक्ति कहीने,
अनंत धर्मोनुं आत्मामां अभेदपणुं बताव्युं. जुदा जुदा अनंत धर्मो अने छतां आत्मानुं एकपणुं–एवो अचिंत्य
अनेकान्त स्वभाव छे. ज्ञाननो आत्मा जुदो, आनंदनो आत्मा जुदो, श्रद्धानो आत्मा जुदो–एम नथी, आत्मा
तो अनंतगुणना पिंडस्वरूप छे.
निर्णय थाय छे.
छे–एवो ज आत्मानो स्वभाव छे. जेम औषधिनी एक गोळीमां अनेक प्रकारना ओसडनो स्वाद रहेलो छे, तेम
आत्मस्वभावना अनुभवमां अनंत शक्तिओनो रस भेगो छे. आ रीते अनंतधर्मत्व शक्तिवाळो एक आत्मा
छे; आ शक्तिओना वर्णन द्वारा धर्मोना भेद बताववानुं प्रयोजन नथी, पण धर्मीना धर्मोद्वारा धर्मी एवा
अखंड आत्माने लक्ष्य कराववो छे.
प्रतीत थाय छे.
धर्मोनो पिंड एवो आत्मा ज्ञानलक्षणवडे ज ओळखाय छे. ज्ञानलक्षण तो खरेखर विकारथी पण आत्माने जुदो
बतावे छे. “ज्ञानलक्षण” अनंत धर्मोवाळा आत्माने लक्षित करे छे, पण ज्ञानलक्षण कांई विकारने लक्षित नथी
करतुं. आत्मानी अनंत शक्तिओमां विकार थवानी कोई शक्ति नथी. “वैभाविक” नामनी एक शक्ति छे परंतु
तेनो स्वभाव पण कंई विकार करवानो नथी; कोई पण विशेष भावरूपे परिणमवुं ते वैभाविक शक्तिनुं कार्य छे,
तेमां पण निर्मळ–निर्मळ विशेष भावोरूपे परिणमवुं–ते ज तेनो स्वभाव छे. आवी वैभाविक शक्ति सिद्धदशामां
पण छे. विकाररूप परिणमन थाय छे ते तो उपरनी (–पर्यायनी) एक समयनी तेवी लायकात छे, परंतु
आत्मानी एकेय शक्ति एवी नथी. –“शक्तिमानने भजो” –आवा शक्तिमान आत्माने ओळखीने तेने भजे
तेना भजनथी कल्याण थतुं नथी. पण अनंती शुद्धशक्तिओथी भरेला एवा पोताना आत्मस्वभावनी प्रतीत
करवाथी ज धर्म अने कल्याण थाय छे.
समजण कहों के धर्म कहो; धर्म अने आत्मानी समजण ए बंने जुदा नथी. आत्मानी साची समजण ते पहेलो
अपूर्व धर्म छे, तेना विना धर्म थतो नथी.