वगेरेमां पण समजवुं. आ रीते अनेकान्तस्वरूप आत्मा एकसाथे परस्पर विरुद्धधर्मोने धारण करे छे–एवी
विरुद्धधर्मत्व शक्ति तेनामां छे. जे समये तत्रूप छे ते ज समये तेनाथी विरुद्ध अतत्रूप पण छे, जे समये
अस्तिरूप छे ते ज समये तेनाथी विरुद्ध नास्तिरूप पण छे, आवुं विरुद्धधर्मपणुं आत्मामां छे.
के वस्तुस्वरूपमां ज विरुद्धधर्मत्व नामनी शक्ति छे, वस्तु पोते ज एवी छे के परस्पर कथंचित विरुद्ध धर्मोने
पोतामां धारी राखे छे. आवुं वस्तुस्वरूप जाणतां, परथी परांग्मुख थईने स्वमां वळवानुं थाय छे, पर साथेनी
एकता छूटीने स्व साथे एकता थाय छे, मिथ्याबुद्धि छूटीने सम्यग्बुद्धि थाय छे, पराश्रय छूटीने स्वाश्रय थाय
छे, वीतरागता अने केवळज्ञान तेनुं फळ छे.
आत्मा पोताना ज्ञान–आनंद वगेरे स्वभावो साथे सदा एकरूप छे ने राग साथे एकरूप कदी थतो नथी–एवो
तेनो स्वभाव छे; आत्मानो ज्ञानानंद स्वभाव राग साथे कदी एकमेक थई गयो नथी पण जुदो ज छे. आवा
स्वभावने ओळखीने तेनी सन्मुख थतां पर्यायमां पण तेवुं (रागथी भिन्नतानुं) परिणमन थाय छे; एटले
स्वभावमां वळेली ते पर्यायमां पण ज्ञानआनंद साथे तद्रूपता ने रागादि साथे अतद्रूपता–एवुं अनेकांतपणुं
प्रकाशे छे. ए ज धर्म छे ने ए ज मोक्षमार्ग छे.
जैनशासन अनादिथी जयवंत वर्ते छे, केम के वस्तु पोते ज आवा अनेकान्तस्वरूप छे. अनेकान्त ज धर्मनो
प्राण छे. जेम प्राण विना जीवन न होय तेम अनेकान्तस्वरूपने समज्या विना धर्म न होय; माटे अनेकान्त ज
धर्मनो प्राण छे. अनेकान्तने अमृत पण कहेवाय छे, केम के अमृतमय एवुं जे मोक्षपद ते अनेकान्तवडे पमाय
छे. अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप जीव अनंतकाळमां एक क्षण पण समज्यो नथी, ने पोतानी मिथ्या कल्पनावडे
अनेकान्तने विपरीतपणे मानीने “रागथी पण धर्म थाय. आत्मा परनुं पण करे” एम माने छे. परंतु
अनेकान्तनुं एवुं स्वरूप नथी. वीतरागता ते धर्म ने राग पण धर्म एवो अनेकान्त नथी, पण वीतरागता ते
धर्म, अने राग ते धर्म नहि–एवो अनेकान्त छे. अनेकान्त, वस्तुस्वरूपमां परस्पर विरुद्ध बे शक्तिओ कहे छे,
पण केवी? –के वस्तुस्वरूपने नीपजावनारी. “वीतरागता ते धर्म ने राग पण धर्म” एम कहेवामां धर्मनुं स्वरूप
सिद्ध नथी थतुं, परंतु “वीतरागता ते ज धर्म छे ने राग ते धर्म नथी” एम कहेतां धर्मनुं वास्तविक स्वरूप सिद्ध
थाय छे, ने ते ज अनेकान्त छे.
नीपजावनारी परस्पर विरुद्ध बे शक्तिओ स्वयमेव प्रकाशे छे, तेनुं नाम अनेकान्त छे. आ ज्ञान मात्र
आत्मवस्तुने पण स्वयमेव अनेकान्तपणुं प्रकाशे ज छे–आवा आत्माने ओळखे तो धर्म थाय.
थतो नथी एटले ते अनेकान्त नथी. ए ज रीते स्वभावना आश्रये धर्म थाय ने परना आश्रये धर्म न थाय,
एम अनेकान्त छे केमके तेमां परथी भिन्न आत्मानुं जेवुं स्वरूप छे तेवुं प्रसिद्ध थाय छे; पण स्वभावना आश्रये
धर्म थाय अने परना आश्रये पण