Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४८३ : आत्मधर्म : १५ :
धर्म थाय–एम कहो तो तेमां परथी आत्मानुं अतत्पणुं (भिन्नपणुं) सिद्ध थतुं नथी, एटले ते अनेकांत नथी.
“आम पण थाय ने आम पण थाय” –एम अनेकांत गरबड नथी करावतो, पण “आम छे ने बीजी रीते
नथी” एम यथार्थ वस्तुस्वरूपने अनेकांत निश्चित करावे छे. वस्तुस्वरूपमां होय तेवा धर्मोने मानवा ते
अनेकांत छे, पण वस्तुस्वरूपमां न होय तेवा धर्मोने मानवा ते तो मिथ्यात्व छे. जेमके परनुं न करे एवो धर्म
आत्मामां छे, परंतु परनुं करे एवो तो धर्म आत्मामां नथी; छतां आत्मा परनुं करे एम मानवुं ते मिथ्यात्व छे.
आत्मा पोतानुं करे, ने परनुं पण करे–त्यां विरुद्धधर्मत्व न थयुं, पण आत्मा पोतानुं करे ने परनुं न करे–एमां
विरुद्धधर्मत्ववडे वस्तुनी सिद्धि थई, तेथी ते अनेकांत छे.
पोताना ज्ञायक स्वभावपणे आत्मा त्रिकाळ तद्रूप (–ते मय) छे अने परनी साथे आत्मा कदी
तद्रूप नथी एटले के अतत्रूप छे. एम तद्रूपपणुं तथा अतद्रूपपणुं एवा बंने विरुद्ध भावोने एक साथे
धारण करवा ते विरुद्धधर्मत्व शक्तिनुं लक्षण छे. जे तद्रूप होय ते ज अतद्रूप केम होय? एम अज्ञानीने
विरुद्धता लागे, पण भगवान कहे छे के एवा धर्मोने धारण करवानो तो तारो स्वभाव छे; पोतापणे तत् ने
परपणे अतत् एवा विरुद्धधर्मने धारण करे एवो ज तारो अविरुद्ध स्वभाव छे. तत्–अतत्, एक–अनेक,
सत्–असत् वगेरे चौद बोलथी अनेकांतनी व्याख्यानुं घणुं विस्तारथी स्पष्टीकरण आ परिशिष्टनी शरूआतमां
आवी गयुं छे.
आत्मानो स्वभाव पोताना स्वरूपे रहेवानो छे, ने पररूपे नहि थवानो तेनो स्वभाव छे, एटले पर
पासेथी कांई मदद ल्ये के परचीज आत्माने शरणभूत थाय–एवो वस्तुस्वभाव नथी. “चत्तारि शरणं
पव्वज्जामि अरहंतं शरणं पव्वज्जामि................” एम भक्तिमां विनयथी बोलाय, तेमां अरिहंत वगेरेने
ओळखीने तेमना बहुमाननी भावना छे; पण खरेखर आत्मा परनुं शरण ल्ये के पर कोई आत्माने शरण
आपे–एवो पोतानो के परनो स्वभाव नथी. जो आत्माने परनुं शरण होय तो ते पर साथे तद्रूप–एकमेक थई
जाय; पण एम कदी बनतुं नथी. अनेकान्त स्वभावरूपी अभेद किल्लो एवो छे के आत्माने सदा परथी अत्यंत
भिन्न ज राखे छे, परना एक अंशने पण आत्मामां आववा देतो नथी अंर्तद्रष्टिथी आवा (–परथी अत्यंत
विभक्त ने पोताना स्वरूपथी एकत्व) वस्तुस्वभावने ओळखवो ते अपूर्व सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान छे.
आत्मा पोताना ज्ञानपणे छे ने परज्ञेयपणे नथी. ज्ञान साथे तत्पणुं छे, ने परज्ञेयो साथे अतत्पणुं छे.
आ आत्मा पोताथी भिन्न कोई पण द्रव्यनुं, कोई पण क्षेत्रमां, कोई पण काळे के कोई पण प्रकारथी किंचित् करी
शके नहि, केम के तेने पर साथे अतत्पणुं छे बस, बधायथी छूटाछेडा! एक स्वतत्त्वनुं ज अवलंबन रह्युं.
आत्मा अने परवस्तु (शरीर वगेरे) कदी क्षेत्रथी पण भेगा रह्या नथी, सौनुं स्वक्षेत्र भिन्न भिन्न छे. आत्माने
पोताना असंख्य प्रदेशोरूपी स्वक्षेत्रथी सत्पणुं छे, ने शरीरादिना प्रदेशोरूप परक्षेत्रथी असत्पणुं छे बंने
एकपणे कदी भेगा थया ज नथी, जुदा जुदा बे पणे ज सदाय रह्या छे, तो कोई कोईनुं शुं करे? ए ज न्याये
आत्मा अने कर्मनुं पण परस्पर अतत्पणुं समजवुं. पोताना स्वधर्मोथी बहार नीकळीने कदी कर्मपणे आत्मा
थयो ज नथी, ने कर्मो आत्माना स्वरूपमां आव्या ज नथी, तो आत्माने ते शुं करे?
प्रश्न:– शुं कर्म नथी?
उत्तर:– कर्म नथी एम कोणे कह्युं? कर्ममां कर्म छे पण आत्मामां कर्म नथी. अने आत्मामां जेनुं अस्तित्व
नथी ते आत्माने शुं करे? आत्मा पोताना चैतन्यमय द्रव्य–गुण–पर्यायो साथे एकरूप छे ने कर्मना द्रव्य–गुण–
पर्यायोथी अतत्रूप छे–जुदो छे. जो आम न होय तो आत्मा अने जड बंने एकमेक थई जाय, एटले वस्तुनो
ज अभाव थई जाय–वस्तुना अभावने तो कोण ईच्छे? नास्तिक होय ते एवुं माने!
एक वस्तुमां कार्य थती वखते बीजी चीजने निमित्त कहेवाय छे ते तो, ते कार्यने अने तेने योग्य हाजर
रहेली बीजी चीजने ओळखाववा माटे ज कहेवाय छे, परंतु ते बीजी चीज कांई पण करी दे छे–एम बताववा
माटे तेने कांई निमित्त नथी कहेता. निमित्त साथे कार्यनुं अतत्पणुं छे. जेने जेनी साथे