Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : अषाड : २४८३ :
अतत्पणुं होय तेमां ते कांई करे नहि, एटले निमित्त अकिंचित्कर छे. –आम जे नथी मानता, अने कार्यमां
निमित्त कांईपण करे एम माने छे तेओ वस्तुनी तत्–अतत्शक्तिने जाणता नथी, अनेकान्तमय वस्तुस्वरूपने
जाणता नथी, तेथी तेओ मिथ्याद्रष्टि छे.
आ देव–गुरु–शास्त्र साचा ने आनाथी विरुद्ध कहेनार बीजा पण साचा–एम जे माने छे, अथवा तो शुं
साचुं हशे तेना संदेहमां रहे छे ने सत्यनो निर्णय करता नथी, तेमने अज्ञाननो नाश थतो नथी. दूधपाकमां
जराक झेर पड्युं होय तो लोको ते खाता नथी, अरे! झेर न होय पण ‘आमां झेर पड्युं हशे’ एवी शंका पडे
तोय ते दूधपाक खाता नथी; तो अहीं धर्ममां साचा देव–गुरु–शास्त्र ने कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्र ते बंनेने सरखा
मानीने आदरवा ते तो अमृत ने झेरने भेगा करवा जेवुं छे. अने साचा देवगुरुशास्त्रने मानवा छतां जो पोते
पोताना ज्ञानमां सत्यनो निर्णय न करे तो सत्यनो लाभ थाय नहि, माटे सत्–असत् नो पोताना ज्ञानमां
विवेक करवो जोईए. पैसा वगेरे तो बुद्धि विना पुण्यथी मळी जाय, परंतु धर्म विवेकबुद्धि वगर थतो नथी.
पुण्य विना पैसा मळे नहि; अने कदाचित् पुण्यथी पैसाना ढगला थाय तो तेमां आत्माने शुं लाभ?
अने पैसा न मळे तो तेथी आत्माने शुं नुकसान? आत्मा तो पैसा वगेरे परवस्तुथी जुदो–अतद्रूप–छे, तेने
पर–वस्तु सुख–दुःखनुं के लाभ–नुकसाननुं कारण नथी; माटे भाई! ज्यां तारुं रूप नथी तेनी सामे न जो, जेनी
साथे तारे तद्रूपता छे एवा तारा स्वरूपमां जो. तारा आनंदस्वरूपमां तद्रूपता थतां तने तारा आनंदनो
अनुभव थशे. ए सिवाय बहारमां कल्पनाना घोडा दोडावीने त्यां सुख–दुःख माने ते तो भ्रमणा छे. अरे भाई!
क्यां नात! क्यां कुटुंब! क्यां वाडो! क्यां संप्रदाय! क्यां पैसा ने क्यां शरीर! –ए तो बधुंय आत्माथी बहार
छे, तुं ते बधायथी जुदो छो, तारे ते बधानी साथे अतत्पणुं छे, ने तारा ज्ञान–आनंद वगेरे अनंतधर्मो साथे
तत्पणुं छे. आत्मानुं जे स्वरूप–पोतानुं रूप–छे ते स्वरूपने न समजतां ऊंधी श्रद्धाथी परने पोतानुं माने छे ते
मोह अनंत संसारनुं कारण छे; माटे हे जीव! आम बहारमां तारापणुं न मानतां, अंतरमां तारा आत्माने जो.
–ते मोक्षनुं कारण छे.
हुं मारा स्वभाव साथे तत्रूप छुं, ने परनी साथे अतत्रूप छुं–एवा स्वभावनुं भान थतां जीवनी
पर्याय स्वभावमां एकतारूपे परिणमे छे, एटले ते पर्याय स्वभावमां तद्रूप थई छे ने राग साथे अतद्रूप थई
छे, आ रीते पर्यायमां निर्मळ परिणमन थाय तेने ज शक्तिनी यथार्थ प्रतीति छे. एकला विभावमां ज तद्रूपपणे
जेनी पर्याय परिणमे छे ते तो राग साथे एकता बुद्धिवाळो मिथ्याद्रष्टि छे, तेने आत्मानी शक्तिनी प्रतीत नथी;
‘रागथी ने परथी अतद्रूप’ एवा स्वभावने तेणे खरेखर जाण्यो ज नथी.
विरुद्ध धर्मोने धारण करवानी आत्मानी शक्ति कही, तेमां विरुद्धधर्म कहेतां राग–द्वेष वगेरे न लेवा,
पण तत्–अतत्, अस्ति–नास्ति ईत्यादि स्वभावरूप धर्मो लेवा, एटले के विरुद्धधर्मो कह्या ते बंने स्वभावरूप
छे, ने ते विरुद्धधर्मो तो आत्मामां त्रिकाळ छे. राग ते आत्माना स्वभावथी विरुद्ध छे ते अपेक्षाए तनेय
विरुद्धधर्म कहेवाय, परंतु अहीं जे विरुद्धधर्मो कह्या छे तेमां ते न आवे. आ विरुद्धधर्मपणुं तो आत्मानो
स्वभाव छे.
• परथी भिन्नता अने पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनी साथे एकता थईने जे निर्मळ परिणमन थयुं ते
“विरुद्धधर्मत्व शक्तिवाळा आत्मानुं अविरुद्ध परिणमन” छे. अने–
• स्वभावनी एकता भूलीने रागादिमां एकता थईने जे मलिन परिणमन थयुं ते ‘विरुद्धधर्मत्व
शक्तिवाळा आत्मानुं विरुद्ध परिणमन’ छे.
–ए रीते आत्मानी शक्तिओने ओळखीने तेनी सन्मुख परिणमन थतां शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन
थाय छे; अज्ञानीने निर्मळ परिणमन थतुं नथी. राग साथे तद्रूप थईने परिणमे एवो आत्मानो स्वभाव नथी;
पण रागथी भिन्नतारूपे ने आनंदमां एकतारूपे परिणमे एवो आत्मानो स्वभाव छे. –जे पोताना