Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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श्री जैन विद्यार्थीगृह सोनगढना नवा मकानो उद्घाटन महोत्सव
परम पूज्य, परमोपकारी श्री सद्गुरुदेवश्रीना पुनित प्रतापे सौराष्ट्रमां अनेक जिनमंदिरो, स्वाध्याय
मंदिरो निर्माण थयां छे.
अहीं सुवर्णपुरीमां श्री जिनमंदिर, समवसरण, मानस्तंभ, श्री जैन स्वाध्याय मंदिर, प्रवचनमंडप, श्री
ब्रह्मचर्याश्रम, श्राविकाश्रम तथा श्राविकाशाळानुं निर्माण थयुं छे.
पूज्य गुरुदेवश्रीनो प्रभावना–उदय विस्तृत थतो जाय छे अने तेना प्रतापे उपरनां अनेक धार्मिक
मंदिरो उपरांत अहीं विद्यार्थीओ धार्मिक तथा व्यावहारिक केळवणी मेळवी शके ते अर्थे ‘विद्यार्थी–गृह’नुं सुंदर,
स्वतंत्र नवुं मकान आशरे रूा. ८०) हजारना खर्चे तैयार करवामां आव्युं छे.
आ मकाननो उद्घाटन–विधि, आ कार्यमां रूा. २५) हजार जेवी उदार सखावत अर्पनार राजकोटनिवासी
शेठ श्री मोहनलाल कानजीभाई घीयाना शुभ हस्ते भादरवा सुद ३ ने बुधवार ता. २८–८–५७ ना रोज थशे.
तो आ मंगळ प्रसंगे सर्वे मुमुक्षुभाई बेनोने अत्रे पधारवा अमारूं हार्दिक आमंत्रण छे.
आ शुभ प्रसंगे अत्रे पधारनारने पू. गुरुदेवश्रीनी अमृतमयी वाणी सांभळवानो पण अपूर्व लाभ मळशे.
लि.
मोहनलाल काळीदास जसाणी, मोहनलाल वाघजी करांचीवाळा
मंत्रीओ,
श्री जैन विद्यार्थीगृह सोनगढ (सौराष्ट्र)
• सोनगढमां सिद्धचक्रविधान •
सोनगढमां अषाड सुद ७ थी शरू करीने १प सुधी नंदीश्वर–अष्टाह्निका महोत्सव आनंदथी मानवामां
आव्यो हतो. गया अष्टाह्निका महोत्सवमां (फागण मासमां) तो शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेदशिखरजी वगेरे
तीर्थधामोनी यात्रा गुरुदेव साथे हजारो भक्तजनोए घणा उल्लासथी करीने; अने ए अपूर्व तीर्थयात्रा निमित्ते
आ अष्टाह्निका दरमियान सोनगढमां “श्री सिद्धचक्र–विधान” पूजन घणा उल्लासपूर्वक धामधूमथी करवामां
आव्युं हतुं. आ विधानमां पहेले दिवसे आठ, अने पछी दररोज बमणा–बमणा करतां छेल्ले दिवसे १०२४
अर्घो चडाववाना होय छे. सिद्धभगवंतोनुं आ सिद्धचक्रविधान पूजन सुंदर अध्यात्मभावोथी भरेलुं छे.
सिद्धभगवंतोना सिद्धिधामनी आनंदभरी यात्रा बाद सिद्धभगवंतोनुं आ महापूजन करतां भक्तोने घणो
उल्लास अने भक्ति उल्लसता हता. पूजन पूर्णता बाद पूर्णिमानी सांजे जिनमंदिरमां श्री जिनेन्द्रदेवनो
महाअभिषेक करवामां आव्यो हतो. सिद्धचक्रविधान निमित्ते जाप वगेरे योग्य विधि करवामां आवी हती.
वरशसन प्रवतन महत्सव
अषाड वद एकमना रोज भगवान महावीरप्रभुनी दिव्यध्वनि छूटवानो मंगलदिन “वीरशासनप्रवर्तन”
अने “शासननुं बेसतुं वर्ष” तरीके उजवायो हतो. सवारमां महावीर भगवाननुं अने दिव्यध्वनि
जिनवाणीमातानुं समूहपूजन थयुं हतुं. त्यारबाद जिनवाणीमातानी “प्रवचन यात्रा” नीकळी हती. त्यारबाद
पू. गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं. विपुलाचल धामनी हमणां ताजी ज जात्रा करी होवाथी गुरुदेवनुं ए भावभीनुं
प्रवचन विपुलाचल तीर्थधामनो फरीने साक्षात्कार करावतुं हतुं. एटलुं ज नहि पण भगवानना समवसरणनो
अने भगवानना दिव्यध्वनिनो पण जाणे के फरीथी साक्षात्कार करावतुं हतुं. ए श्रेणिकराजानी राजधानी
राजगृही, ए विपुलाचल धाम, ए महावीर भगवान, ए समवसरण, ए ईन्द्र, ए मानस्तंभ, ए ईन्द्रभूतिनुं
गणधरपद, ए दिव्यध्वनि, ए शास्त्ररचना, ए श्रेणिकराजा अने सभाजनो, ए अमृतमय धर्मवर्षानो आखोय
चितार पू. गुरुदेवना प्रवचन वखते स्मृति समक्ष उपस्थित थतो हतो.
वार्षिक बेठक
श्री जैन अतिथि सेवा समितिनी वार्षिक बेठक भादरवा शुद बीज ने मंगळवार ता. २७–८–५७ ना रोज
मळशे. सौ सभ्योने हाजर रहेवा विनंति छे.
वार्षिक लवाजम रूपिया त्रण : छूटक नकल चार आना