Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४८३ : आत्मधर्म : ३ :
– परम शांति दातारी –
अध्यात्म भावना
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य
सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना – भरपूर
वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(प)
[वीर सं. २४८२ वैशाख वद ८, समयसार – प्रतिष्ठा वार्षिक उत्सव]
आ समाधिशतक छे; समाधि एटले शुं? आधि–व्याधि अने उपाधिरहित आत्मानी सहज शांति ते
समाधि छे, अथवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते समाधि छे, अथवा निर्विकल्प आनंदना अनुभवमां लीनता ते
समाधि छे. ते समाधि केम थाय? के देहादिथी भिन्न ज्ञानानंद–स्वरूप आत्मानुं भान करीने तेमां एकाग्रताथी
समाधि थाय छे. आत्माने देहादिथी भिन्न न जाणे ने रागादिवाळो ज जाणे तो तेने समाधि थती नथी, पण
भ्रांति थाय छे. एवी भ्रांति ते बहिरात्मदशा छे. सिद्ध समान, ज्ञान–आनंदथी परिपूर्ण, देहादिथी भिन्न एवा
आत्मानी अंतद्रष्टि जेने छे ते अंतरात्मा छे. देह हुं, राग हुं–एवा परमां आत्माना संकल्प–विकल्पथी जे रहित
छे ने निर्विकल्प प्रतीतसहित छे ते अंतरात्मा छे. पछी चैतन्यमां लीन थईने जेमणे केवळज्ञान ने परिपूर्ण
आनंद प्रगट कर्यो ते परमात्मदशा परम उपादेय छे.
चैतन्य स्वभावने देहादिथी भिन्न जाणीने तेना अवलंबने सर्वज्ञता ने आत्मानो स्वाधीन अतीन्द्रिय
आनंद भगवाने प्रगट कर्यो. ते भगवान परमात्मा सर्वज्ञ–वीतराग अने परम हितोपदेशक छे; आनंदथी
भरेला निजरसनुं पान करे छे; आत्मामांथी ज उत्पन्न एवा परम स्वाधीन अनंतसुखना भोगवटामां सदाय
लीन छे. जुओ, भगवान परमात्मा केवा छे? सर्वज्ञ–वीतराग–परम हितोपदेशी छे. पोते सर्वज्ञ–वीतराग