समाधि छे. ते समाधि केम थाय? के देहादिथी भिन्न ज्ञानानंद–स्वरूप आत्मानुं भान करीने तेमां एकाग्रताथी
समाधि थाय छे. आत्माने देहादिथी भिन्न न जाणे ने रागादिवाळो ज जाणे तो तेने समाधि थती नथी, पण
भ्रांति थाय छे. एवी भ्रांति ते बहिरात्मदशा छे. सिद्ध समान, ज्ञान–आनंदथी परिपूर्ण, देहादिथी भिन्न एवा
आत्मानी अंतद्रष्टि जेने छे ते अंतरात्मा छे. देह हुं, राग हुं–एवा परमां आत्माना संकल्प–विकल्पथी जे रहित
छे ने निर्विकल्प प्रतीतसहित छे ते अंतरात्मा छे. पछी चैतन्यमां लीन थईने जेमणे केवळज्ञान ने परिपूर्ण
आनंद प्रगट कर्यो ते परमात्मदशा परम उपादेय छे.
भरेला निजरसनुं पान करे छे; आत्मामांथी ज उत्पन्न एवा परम स्वाधीन अनंतसुखना भोगवटामां सदाय
लीन छे. जुओ, भगवान परमात्मा केवा छे? सर्वज्ञ–वीतराग–परम हितोपदेशी छे. पोते सर्वज्ञ–वीतराग