Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : अषाड : २४८३ :
थया, ने बीजा जीवोने पण अंतरंग स्वरूपना अवलंबने सर्वज्ञ–वीतराग थवानो ज उपदेश बताव्यो.
महाविदेहमां अत्यारे सीमंधर परमात्मा साक्षात् बिराजे छे, समवसरणमां तेओनो एवो उपदेश छे के तमारो
स्वभाव परिपूर्ण ज्ञान ने आनंदस्वरूप छे, रागनो एक अंश पण स्वभावमां नथी; आवा स्वभावनुं
अवलंबन करो. भगवाननो उपदेश वीतरागतानो छे, राग राखवानो भगवाननो उपदेश नथी, जो रागथी
लाभ थाय तो भगवान पोते राग छोडीने वीतराग केम थया? अने जे वीतराग थया ते रागथी लाभ थवानुं
केम कहे? रागथी लाभ थाय एवो भगवाननो उपदेश छे ज नहीं. रागथी लाभ थाय–एवो उपदेश ते
हितोपदेश नथी पण अहितोपदेश छे.
आत्मा परनुं करे एम जे माने ते परनो राग केम छोडे? अथवा परथी आत्माने लाभ माने तो ते
परनो राग केम छोडे? अने रागथी जे लाभ माने ते पण रागने छोडवा जेवो केम माने? रागने जे आदरणीय
माने छे ते रागरहित–वीतरागी सर्वज्ञ परमात्माने ओळखतो ज नथी.
भगवान तो परम हितनो ज उपदेश देनारा छे. बंधनुं ने अहितना कारणोनुं ज्ञान करावे छे, पण तेनुं
ज्ञान करावीने ते छोडावे छे, ने हितना कारणरूप सम्यग्दर्शनादि प्राप्त करावे छे.
जुओ, आजे गं्रथाधिराज समयसारनी प्रतिष्ठानो दिवस छे. अढार वर्ष पहेलांं आ ‘जैन
स्वाध्यायमंदिर’नुं उद्घाटन थयुं, त्यारे अहीं आ ‘समयसार’नी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा (बेनश्री चंपाबेनना हाथे)
थई छे. समयसार एटले शुद्धआत्मा: शक्तिपणे दरेक आत्मा शुद्ध स्वभावथी परिपूर्ण “कारणसमयसार” छे,
तेने कारण परमात्मा कहे छे, ते कारणसमयसारस्वरूप शुद्ध आत्मानुं स्वरूप आ समयसार बतावे छे. अने ते
कारणसमयसारनी द्रष्टि करतां तेना आश्रये अनंत–चतुष्टयस्वरूप कार्य परमात्मापणुं खीली जशे, ते
कार्यसमयसार छे. आवा कारणसमयसार शुद्ध आत्मानी जेणे श्रद्धा–ज्ञान–रमणता करी तेणे पोताना आत्मामां
भगवान समयसारनी स्थापना करी. आवी समयसारनी स्थापनानो आ दिवस छे. आ समयसारमां
भगवाननी दिव्यध्वनिमां कहेलो उपदेश कुंदकुंदाचार्यदेवे गूंथ्यो छे. सीमंधरपरमात्मा महाविदेहे साक्षात् बिराजे छे
तेमनी अहीं जिनमंदिरमां स्थापना छे अने ते भगवाने दिव्यध्वनिमां जे कह्युं ते आ समयसारमां
कुंदकुंदाचार्यदेवे भर्युं छे तेनी अहीं स्वाध्यायमंदिरमां स्थापना छे. कुंदकुंदाचार्यदेव अहीं थयेला, विदेह गयेला,
दिव्यध्वनि लावेला, ने आ समयसार रच्युं; ते अंतरना कारण–समयसारनुं वाचक छे; ने ते कारणसमयसारना
आश्रये कार्यसमयसार थवाय छे. आम त्रण ‘समयसार’ थया;–एक कारणसमयसार, तेना आश्रये थतुं
कार्यसमयसार, अने तेना वाचकरूप आ परमागम समयसार. आवा शुद्ध समयसारने ओळखीने आत्मामां ते
समयसारनी स्थापना करे तो तेना आश्रये मोक्षना कारणरूप सम्यग्दर्शनादि प्रगटे. आ अपूर्व छे–पूर्वे कदी
आवा आत्मानी श्रद्धा के ओळखाण करी नथी. अरहंतपरमात्मा थया ते तो कार्य–परमात्मा छे, ने ते कार्यनुं जे
कारण छे ते त्रिकाळी कारणपरमात्मा छे. पहेला ज तबक्के आ वात सांभळतां बहुमान लावीने हा पाडे, ने तेनो
निर्णय करीने विश्वास करे ते धर्मनी अपूर्व शरूआत छे. ज्ञानस्वभावनुं लक्ष करवुं ते ज परमहितनो मार्ग छे,
ने एवा हितनो ज उपदेश भगवाने कर्यो छे एटले के ज्ञानस्वभाव तरफ वळवानो ज भगवाननो उपदेश छे.
पराश्रयनो भगवाननो उपदेश नथी, ते तो छोडवानो भगवाननो उपदेश छे, पहेलांं आवो निर्णय करे तेणे
भगवान परमात्माने अने तेमना हितोपदेशने जाण्यो छे. पण रागादिथी लाभ माने तो तेणे हितोपदेशी
सर्वज्ञ–वीतराग परमात्माने मान्या नथी.
अरहंत परमात्मा हजी देह सहित छे, तेओ दिव्यध्वनिथी उपदेश आपे छे; अने सिद्ध परमात्मा देहरहित
थई गया छे, तेओ लोकोने बिराजमान छे. अरहंत अने सिद्ध परमात्मा ईन्द्रिय विषयो रहित निजानंदनो
अनुभव करे छे. आवा भगवानना आनंदने ओळखे तो आत्माना आनंद स्वभावनी प्रतीत थई जाय अने
ईन्द्रिय विषयोमांथी सुखबुद्धि ऊडी जाय. भगवान सादिअनंत पोताना अतीन्द्रिय आनंदरसनुं पान करे छे,
कृतकृत्य परमात्मा छे; पोताना अतीन्द्रिय ज्ञान ने आनंदना भोगवटा सिवाय बीजुं कोई कार्य तेमने रह्युं नथी;
आत्मानी शक्तिमांथी आनंद ऊछळ्‌यो छे तेना अनुभवथी परमात्मा कृतकृत्य