रहित छे–रागथी पण विविक्त छे,–एम जे जाणतो नथी, ने रागना संगथी लाभ माने छे तेने खरेखर
‘विविक्तशय्यासन’ नथी पण विकारमां ज शय्यासन छे. भले ते जंगलमां एकांत गुफामां एकलो पड्यो रहेतो
होय तो पण अंतरमांथी रागनो संग छूटयो नथी तेथी तेने खरेखर विविक्तशय्यासन होतुं नथी, अने
तो उपर कह्यां; ते उपरांत सर्वना ज्ञाता होवाथी भगवानने ‘सर्वज्ञ’ कहेवाय छे, सहज अत्मिक आनंद सहित
होवाथी ‘सहजानंदी’ पण कहेवाय छे; राग–द्वेष–मोहरूपकलंक रहित होवाथी ‘निकलंक’ अथवा ‘अकलंक’ पण
कहेवाय छे; रागादि अंजनरहित होवाथी निरंजन पण कहेवाय छे. जन्म–जरा–मरण रहित होवाथी ‘अज–
अजर–अमर’ पण कहेवाय छे; वळी तेओ ज ज्ञानस्वरूप–बोधस्वरूप होवाथी खरा ‘बुद्ध’ छे; पोताना
ज्ञानानंदस्वरूपनी मर्यादाने धारण करता होवाथी तेओ ज ‘सीमंधर’ छे. आत्मानुं अनंत महान पराक्रम–
वीरता प्रगट करेल होवाथी तेओ ‘महावीर’ छे.
(सत्यवतीनंदन) ओळखाय छे तथा ‘महावीर’ कहेतां भरतक्षेत्रना छेल्ला तीर्थंकर (त्रिशलानंदन) ओळखाय
छे; पण गुणवाचक तरीके तो बधाय परमात्मा–जिनवरोने ‘सीमंधर’ अथवा ‘महावीर’ कहेवाय छे, केमके
बधाय भगवंतो स्वरूपनी सीमाने धारण करनारा छे ने महान् वीर्यना धारक छे–आ रीते गुणना स्वरूपथी
परमात्माने ओळखवानी प्रधानता छे. अने, परमात्माने जेटला नामो लागु पडे छे ते बधाय नामो आ
आत्माने पण स्वभाव–अपेक्षाए लागु पडे छे, केम के स्वभावथी तो आ आत्मा पण परमात्मा जेवो ज छे.
परमात्माना गुणोने ओळखीने परमात्मानुं स्वरूप जे जाणे तेने आत्मानुं स्वरूप पण जणाया वगर रहे नहि.
जेटला गुणो परमात्मामां छे तेटला ज गुणो आ आत्मामां छे ने तेनो विकास करीने (एटले के पर्यायमां प्रगट
ओळखवुं जोईए; ओळखाण विना तेनी प्राप्ति थती नथी.
ने शनिवार सुधीना दस दिवसो दसलक्षणीधर्म
अर्थात् पर्युषणपर्व तरीके ऊजवाशे. आ दिवसो
दरमियान उत्तम क्षमा वगेरे धर्मो उपर पू.
गुरुदेवना खास प्रवचनो थशे.
सुधीना आठ दिवसो धार्मिक प्रवचनना खास
दिवसो तरीके ऊजवाशे.