Atmadharma magazine - Ank 165
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : अषाड : २४८३ :
ते जातनो विकल्प होय छे तेनी वात छे. पण परमार्थे आ ब्रह्मस्वरूप–चैतन्यस्वरूप आत्मा रागना संगथी पण
रहित छे–रागथी पण विविक्त छे,–एम जे जाणतो नथी, ने रागना संगथी लाभ माने छे तेने खरेखर
‘विविक्तशय्यासन’ नथी पण विकारमां ज शय्यासन छे. भले ते जंगलमां एकांत गुफामां एकलो पड्यो रहेतो
होय तो पण अंतरमांथी रागनो संग छूटयो नथी तेथी तेने खरेखर विविक्तशय्यासन होतुं नथी, अने
परमात्मा रागादिथी केवा विविक्त छे तेने पण ते ओळखतो नथी.
अहीं तो भगवान परमात्माना स्वरूपनी ओळखाण सहित तेमना अनेक नामोनी वात छे. आत्मामां
अनंत गुणो छे, तेना गुणोनी अपेक्षाए तेने भिन्नभिन्न अनेक नामेथी कहेवामां आवे छे. तेमांथी केटलाक नामो
तो उपर कह्यां; ते उपरांत सर्वना ज्ञाता होवाथी भगवानने ‘सर्वज्ञ’ कहेवाय छे, सहज अत्मिक आनंद सहित
होवाथी ‘सहजानंदी’ पण कहेवाय छे; राग–द्वेष–मोहरूपकलंक रहित होवाथी ‘निकलंक’ अथवा ‘अकलंक’ पण
कहेवाय छे; रागादि अंजनरहित होवाथी निरंजन पण कहेवाय छे. जन्म–जरा–मरण रहित होवाथी ‘अज–
अजर–अमर’ पण कहेवाय छे; वळी तेओ ज ज्ञानस्वरूप–बोधस्वरूप होवाथी खरा ‘बुद्ध’ छे; पोताना
ज्ञानानंदस्वरूपनी मर्यादाने धारण करता होवाथी तेओ ज ‘सीमंधर’ छे. आत्मानुं अनंत महान पराक्रम–
वीरता प्रगट करेल होवाथी तेओ ‘महावीर’ छे.
व्यक्ति तरीके तो एक नामथी एक भगवान ओळखाय पण गुणवाचक नाम तरीके एक नाम कहेतां
तेमां बधाय भगवान आवी जाय छे. जेमके ‘सीमंधर’ कहेतां व्यक्ति तरीके तो महाविदेहना पहेला तीर्थंकर
(सत्यवतीनंदन) ओळखाय छे तथा ‘महावीर’ कहेतां भरतक्षेत्रना छेल्ला तीर्थंकर (त्रिशलानंदन) ओळखाय
छे; पण गुणवाचक तरीके तो बधाय परमात्मा–जिनवरोने ‘सीमंधर’ अथवा ‘महावीर’ कहेवाय छे, केमके
बधाय भगवंतो स्वरूपनी सीमाने धारण करनारा छे ने महान् वीर्यना धारक छे–आ रीते गुणना स्वरूपथी
परमात्माने ओळखवानी प्रधानता छे. अने, परमात्माने जेटला नामो लागु पडे छे ते बधाय नामो आ
आत्माने पण स्वभाव–अपेक्षाए लागु पडे छे, केम के स्वभावथी तो आ आत्मा पण परमात्मा जेवो ज छे.
परमात्माना गुणोने ओळखीने परमात्मानुं स्वरूप जे जाणे तेने आत्मानुं स्वरूप पण जणाया वगर रहे नहि.
जेटला गुणो परमात्मामां छे तेटला ज गुणो आ आत्मामां छे ने तेनो विकास करीने (एटले के पर्यायमां प्रगट
करीने) आ आत्मा पोते परमात्मा थई शके छे. आ रीते आत्माना ध्येयरूप जे परमात्मपद तेने बराबर
ओळखवुं जोईए; ओळखाण विना तेनी प्राप्ति थती नथी.
सोनगढमां दसलक्षणी – पर्युषण पर्व
सोनगढमां दरवर्षनी जेम भादरवा सुद
पांचम ने गुरुवारथी शरू करीने, भादरवा सुद १४
ने शनिवार सुधीना दस दिवसो दसलक्षणीधर्म
अर्थात् पर्युषणपर्व तरीके ऊजवाशे. आ दिवसो
दरमियान उत्तम क्षमा वगेरे धर्मो उपर पू.
गुरुदेवना खास प्रवचनो थशे.
धार्मिक प्रवचना खास दिवसो
श्रावण वद १३ ने गुरुवार ता. २२ थी शरू
करीने भादरवा सुद पांचम ने गुरुवार ता. २९
सुधीना आठ दिवसो धार्मिक प्रवचनना खास
दिवसो तरीके ऊजवाशे.