श्री वीतरागाय नमः।।
सोनगढ [सौराष्ट्र] के आध्यात्मिक प्रवक्ता सत्पुरुष श्री कानजी
महाराज की सेवामें समर्पित
अभिनन्दन पत्र
श्रीमन्!
हमारा सौभाग्य है कि उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्रों की बन्दना करते हुए
जयपुर पधार कर आपने हमें चार दिन का सुअवसर प्रदान किया। इन दिनों में आपके
अभ्युदय एवं निःश्रेयस की और लेजानेवाले प्रवचनों को सुनकर सभी अध्यात्मानुरागी
भव्यात्माओं को प्रसन्नता हुई है।
सत्पुरुष!
भारत के आध्यात्मिक सत्पुरुषोंमें आपका विशिष्ट स्थान है। आपने मानव को इस
दुःखमय संसारसे उपर उठानेवाले आत्मानुभूति–कारक जो सदुपदेश दिये हैं–वे वस्तुतः
मननीय और उपादेय हैं। इनसे जो सत्प्रेरणा और स्फूर्ति मिली है उसका मूल्यांकन हमें
जीवन की विभिन्न परिस्थितियोंमें होगा, ऐसी हमें आशा है।
आत्मार्थिन्!
आत्माकी खोजमें संलग्न आपने भगवान कुंदकुंद की महान् रचनाओं का मनन एवं
परिशीलन करके जो द्रष्टि प्राप्त की है–वह सचमुच प्रशंसनीय है। प्राणी का कल्याण
आत्मनिरीक्षण द्वारा ही संभव है, वही जगजाल से छुडाने में समर्थ है और वही मुमुक्षुओं
के लिए प्रशस्त मार्ग है। इसी मार्ग का आपने हमें उपदेश दिया है।
आध्यात्मिक प्रवक्ता!
आज के वैज्ञानिक युगमें जहां मानव–संहारकारक नित्य नये उपायों की खोज बडे
वेगसे जारी है, केवल आध्यात्मिक वाणी ही ऐसी है जो इस विकराल संहारको रोक
सके। भारतकी यह सदासे महान् देन है कि वह विश्व को शांति का पाठ पढ़ाता आ रहा
है। आज भारत में आप सरीखे अध्यात्मप्रचारक की महान् आवश्यकता है। इस महान्
निर्माण–कार्य में आप जो सहयोग दे रहे हैं वह स्तुत्य हैं।
जैनशासन प्रभावक!
आपके सदुपदेश के प्रभाव से सोनगढ एक तीर्थसा बन गया है जहां अनेक भव्य जीव
अपने कल्याण की इच्छा से निवास करते हैं। सांसारिक वैभव से दूर रह कर सदाचरणपूर्वक
अपने जीवन को अन्तर्मुखी द्रष्टि द्वारा सफल करने में ही जैनशासन की सच्ची
શ્રાવણઃ ૨૪૮૩ ઃ ૧૬ઃ