Atmadharma magazine - Ank 166
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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प्रभावना है। श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र के समीकरण द्वारा मुमुक्षुओंका मार्ग प्रशस्त करने में
आप अधिकाधिक सफल हों, यह हमारी हार्दिक कामना है।
अन्तमें इस पवित्र प्रसंग पर हमें आप का अभिनंदन करते है और कामना करते है
कि आप का दिव्य संदेश [मिशन] पूर्णतः सफल हो।
चैत्र शुक्ला चतुर्दशी सं० २०१४विनयावनत
दि० १३–४–५७ जयपुर दि० जैन समाज
श्रीमान श्रद्धेय आध्यात्मिक संत श्री कानजीस्वामीजी के
करकमलोमें समर्पित
अभिनन्दन पत्र
आध्यात्मिक संत!
‘आत्मैव गुरुरात्मनः’ इस नीति के अनुसार आत्मा में ही रमण करनेवाला साधु
आत्मा को निर्विकार बनाता है। श्रीमन्! आप वास्तविक रूपसे आत्मरस के रसिक हैं।
यही कारण है कि आपकी किञ्चित् मात्र भी बाह्य द्रष्टि नहीं हैं, अतः आप एक महान्
आध्यात्मिक सन्त हैं।
मोक्षमार्ग प्रवर्तक!
आपके उपदेशामृत की सरस धारा मुमुक्षुजनों के लिये तो परमाह्लादकारक हैं ही
परंतु जो व्यक्ति सांसारिक विषयभोगों में ही अहर्निश मग्न रहते हैं, उन्हें भी वह जागृत
कर देती है और वे भी आत्मसाधना में जूट जाते हैं।
दिगम्बर धर्मोद्धारक!
आपने आचार्यप्रवर कुन्दकुन्दस्वामी के समयसार आदि ग्रन्थो का स्वाध्याय कर
स्वयं अपने ज्ञानको विकसित किया। साथ ही आपने दिगम्बर जैन धर्म अंगीकार किया
तथा अपने प्रान्त के सहस्त्रों श्वेताम्बर भाईयों को दिगम्बर जैन बनाया। आप एक सच्चे
धर्मोद्धारक है।
त्त्प्र!
जिस सोनगढ में आप अधिकतर निवास करते हैं वहां पर केवल आपकी
शिष्यमंडली ही नहीं अपितु जैनेतर समाज जैसे धोबी जुलाहे आदि भी जैन धर्म के मर्म से
परिचित हो रहे है। अब जिनेन्द्र देवसे प्रार्थना करते हैं कि आप शतजीवी हो तथा स्वस्थ
रहकर इसी प्रकार आत्मधर्म का प्रकाश एवं प्रचार करते रहें। यही एक कामना लेकर
श्रीमन्! आपके करकमलों में यह अभिनन्दन–पत्र प्रस्तुत करते हैं।
हस्तिनापुर हम हैं आपके–
गुरुकुल परिवार
ઃ ૧૭ઃ આત્મધર્મઃ ૧૬૬