Atmadharma magazine - Ank 166
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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श्री सीमंधरजिनाय नमः।।
परम आध्यात्मिक आत्मार्थी संत श्री कानजीस्वामी की
सेवा में सादर समर्पित
सम्मान पत्र
सम्मानीय सद्गुरुदेव!
हम शिवगंज तथा जावालनिवासीयों का यह सद्भाग्य है कि
जनता जिस महानं् आत्मा के सम्पर्क की वर्षों से प्रतीक्षा कर रही थी आज हमारी
मनोकामनाएँ पूर्ण हो गई। आपको पाकर जावाल व शिवगंज की भूमि पवित्र हुई। भव्य
जीवों का उद्धार हुआ, आकाश और भूमि के बीच सत्य और अहिंसा की वाणी गूंज उठी।
जनता के हृदयमें पवित्रता का पावन मंदिर खडा हुआ; हृदय की पवित्रता और
आध्यात्मिक ज्ञानकी ज्योत का प्रकाश मिला। आपके सामीप्य से लाभ उठाकर हमको
जीवन यथार्थ बनाने की प्रेरणा उत्पन्न हुई। आपके समान परमोपकारी आत्मार्थी सत्पुरुष
का समागम पाकर आज हम अतिशय गौरव का अनुभव कर रहे है।
अध्यात्म योगी!
आज जब की क्षितिज में विश्वविनाशक युद्ध के काले बादल मंडरा रहे है,
उद्जनऔर अणु परमाणु बम मानवता को चुनौती दे रही है, हिंसा की विकराल आंधी,
आस्था और विश्वास को समूल उखाड देना चाहती है, द्वेष, स्वार्थता, धृणा, दम्भ
आदिका अंधकार सारे विश्व को आच्छादित कर रहा है, ऐसे दूषित वातावरण में पले विश्व
में आज भगवान महावीर के आध्यात्मिक ज्ञानदीप की ज्योति से तमभ्रान्त विश्वको
आलोकित करते है।
ज्ञानदूत!
आजके इस युग में जबकि भौतिकवाद का समस्त विश्व में एकछत्र साम्राज्य
स्थापित हो रहा है, केवल अर्थ ही मानव के जीवन का मुख्य लक्ष्य बन चुका है, ऐसे
विकराल समय आप भगवान के अध्यात्मज्ञान के दूत बनकर विश्व में शांति और प्रेमका
भाव भर रहे हैं। आपकी छत्रछाया में रहकर कई लेखकों को ज्ञान, उत्साह, और प्रेरणा
मिली; आपके सान्निध्य में रहकर कई विद्वानोंने कई आध्यात्मिक ग्रंथो की रचना की तथा
धार्मिक ग्रंथोके अनुवाद किये तथा सम्पादन किया।
શ્રાવણઃ ૨૪૮૩ ઃ ૧૮ઃ