प्रवचनशैलीः –
आपकी प्रवचनशैली अनुपम और प्रभावक होने से श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते है।
जनता के हृदय पर आपके वचनोंका असर पडता है। आपकी वाणींमें संसारदुःख से संतप्त
प्राणीयों को दुःखसे छूटकर शाश्वत सुख का मार्ग दिखलाई पडता है; और निश्चय–व्यवहार,
उपादान–निमित्त और द्रव्य का स्वतंत्र परिणमन आदिका सुंदर और मधुर विवेचन करते हैं;
श्रोताओं को जड, कर्म, राग आदिसे पृथक् नित्य, शुद्ध, चैतन्यस्वरूप आत्मा का भाविक
चित्र प्रस्तुत कर आत्मदर्शन की ओर प्रेरणा प्रदान करते है।
तेजस्वी!
आपके चेहरे पर अनुपम तेज झलक रहा है, आपने तो अपने सतत प्रयत्नो द्वारा
अपवर्ग की [–मोक्षकी] इस पृथ्वी पर सृष्टि की है, आप साकेतवासी है, आपके जीवन का
उदेश्य आध्यात्मिक चर्वणावस्था की प्राप्ति करना है। इधर आप दिव्य है, पवित्र है उतने ही
आपके दर्शन नेत्रों को शीतल आत्मा के लिये सुखद एवं जीवन को अवदात करनेवाले हैं।
इस पावन प्रसंग पर हम मुमुक्षुजन आपका अंतःकरण से अभिनन्दन करते हुये
अपने भावों की कुसुमांजलि इस सम्मानपत्र के द्वारा समर्पित करते है। हमारी तो यही
इच्छा है कि आप बार बार आ कर हमें ज्ञानकी ज्योतिका पथ प्रदर्शन करावें।
आपके विनीत ः –
[१] जैन मुमुक्षु मंडल, शिवगंज दः सुकनराज हीराचंदजी
[२] श्री समस्त ३६ पवन, जावाल
(જાવાલ ગામની ૩૬ જ્ઞાતિના સમસ્ત પ્રજાજનો તરફથી)
[३] जैन मुमुक्षु मंडल, जावाल दः रिखवदास कपुरचंदजी
નોંધઃ– ઉપર્યુક્ત ત્રણે નામોથી ત્રણ જુદા જુદા સન્માનપત્ર અર્પણ કરવામાં આવ્યા હતા;
પરંતુ તે ત્રણેનું લખાણ એકસરખું હોવાથી, અહીં તે ત્રણેના સંયુક્ત નામોથી આ એક જ સન્માન
પત્ર પ્રસિદ્ધ કરવામાં આવ્યું છે.
ઃ ૧૯ઃ આત્મધર્મઃ ૧૬૬