Atmadharma magazine - Ank 166
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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वस्तुमां चोंटयो छे. पंडितजी एमनी वात समजी गया.....ने तरत ईसाराथी पाटी मंगावी तेमां लख्युंः–
“ज्ञानकुतका हाथ मारी अरि मोहना,
चले बनारसीदास फेर नहि आवना.”
जुओ, आ ज्ञानीनी अंदरनी दशा! अंदरनी निःशंकताथी कहे छे के, भेदज्ञानरूपी भालावडे अमे मोहने
वींधी नांख्यो छे, मोहने मारीने अमे जईए छीए. एकाद भवमां मोक्ष पामशुं......ने फरीने आ संसारमां आवशुं
नहि. जुओ, आ ज्ञानीनी निर्भयता! ज्ञानीनां अंतरना वेदन बहारथी ओळखाय तेवा नथी.
आहा! चैतन्यना शांत–अनाकूल वेदनने चूकीने जीवो व्यर्थ चिंता करीने आकुळताने ज वेदे छे. पण
बहारनी जेटली चिंता करे ते बधी व्यर्थ छे, तेमां मात्र आकुळताना वेदन सिवाय बीजुं कांई नथी. माटे धर्मी तो
निराकुळपणे अंतरना चैतन्यस्वभाव उपर निःशंक द्रष्टि राखीने ज्ञानना सहजवेदनने निर्भयपणे अनुभवे छे.
अने “जेवुं वर्तमान तेवुं भविष्य”–ए न्याये तेने एवो पण भय नथी थतो के ‘भविष्यमां रोगादिनी वेदनामां
हुं भींसाई जईश!’ ते निशंक छे के भविष्यमां पण मारा ज्ञानस्वरूपमांथी आवा निराकुळ ज्ञाननुं ज वेदन
आवशे, मारा ज्ञानमां बीजा वेदननो अभाव छे.–आवी निःशंकताने लीधे धर्मात्माने निर्भयता छे, तेमने
वेदनाभय होतो नथी.
(आ उपरांत अरक्षा, अगुप्ति, मरण के अकस्मात वगेरे संबंधी भय पण सम्यग्द्रष्टिने होतो नथी तेनुं
विवेचन हवे पछी आपवामां आवशे.) (चालु)
कर्मबंधथी छूटवानो उपाय
जुओ, आचार्यदेव कर्मोथी छूटवानो उपाय बतावे छे. ज्ञानस्वरूपना
अनुभववडे ज आठ कर्मोनो नाश थाय छे. स्वभावसन्मुख द्रष्टि थतां सम्यक्त्वरूपी
सूरज उग्यो त्यां ते सूर्यनो प्रताप समस्त कर्मोने नष्ट करी नांखे छे; पूर्वकर्मनो उदय
वर्ततो होवा छतां द्रष्टिना जोरे सम्यग्द्रष्टिने नवा कर्मोनो जरापण बंध फरीने थतो
नथी पण पूर्वकर्म निर्जरतुं ज जाय छे. उदय छे माटे बंध थाय–ए वात क्यांय उडी
गई; उदय वखते चिदानंदस्वभाव तरफथी द्रष्टिना जोरे आत्मा ते उदयने खेरवी ज
नांखे छे, एटले ते उदय तेने बंधनुं कारण थया विना निर्जरी ज जाय छे. ज्यां
मिथ्यात्वना बंधनने उडाडी दीधुं त्यां अस्थिरताना अल्प बंधननी शी गणतरी?–ते
पण क्रमे क्रमे टळतुं ज जाय छे, आ रीते ज्ञानीने स्वसन्मुख परिणतिने लीधे कर्मनी
निर्जरा ज थाय छे, ने अल्पकाळमां सर्वकर्मनो नाश करीने ते सिद्धपदने पामे छे.–
आवो सम्यग्दर्शननो महिमा छे.
(–प्रवचनमांथी)
श्रावणः २४८३ ः १३ः