अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
[२९–३०] तत्त्वशक्ति अने अतत्त्वशक्ति
तद्रूपपणुं अने अतद्रूपपणुं एवा बे विरुद्ध धर्मो आत्मामां छे ए वात २८ मी शक्तिमां करी; हवे २९ अने
३० मी शक्तिमां ते बंनेनुं कार्य बतावे छे. “तद्रूप भवनरूप एवी तत्त्वशक्ति छे.” अने “अतद्रूप भवनरूप एवी
अतत्त्वशक्ति छे.” ज्ञानस्वरूप आत्मा स्वयमेव आवी शक्तिवाळो छे.
भवनरूप एटले रहेवारूप अथवा परिणमवारूप; ज्ञानस्वरूप आत्मा पोताना चेतन स्वभावपणे ज रहीने
परिणमे छे, पण जडरूपे थतो नथी. आ रीते, चेतनस्वभावपणे ज रहेवारूप शक्ति ते तत्त्वशक्ति छे, अने चेतन
मटीने जडरूप न थवारूप शक्ति ते अतत्त्वशक्ति छे. आवी बंने शक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे. आत्मा ज्ञानमात्र छे
एम कहेतां तेमां आ बंने शक्तिओ पण भेगी आवी ज जाय छे.
आत्मामां पोताना ज्ञानादि स्वरूपे थवानी शक्ति छे, पण पररूपे थवानी शक्ति नथी, पररूपे न थवानी
शक्ति छे. अने खरेखर शुद्ध आत्मद्रव्यमां तो पुण्य–पापरूपे परिणमवानी पण शक्ति नथी, पुण्य–पापथी अतद्रुप
रहेवानी तेनी शक्ति छे. जो त्रिकाळी स्वभाव एक समयना विकारमां तद्रुप थई जाय तो ते विकार टळी शके ज
नहि, अथवा तो विकार टळतां आखा स्वभावनो ज नाश थई जाय, माटे त्रिकाळ शुध्धस्वभावने विकार साथे
तद्रूपता नथी. समयसारनी छठ्ठी गाथामां पण कह्युं छे के–शुद्ध द्रव्यना स्वभावनी द्रष्टिथी जोतां ज्ञायकभाव शुभाशुभ
विकाररूपे परिणमतो नथी. आत्मानी शक्तिओमां विकाररूपे परिणमवानो पण स्वभाव नथी तो पछी आत्मा
देहादिनुं करवारूपे परिणमे, ए वात तो क्यांथी होय? विकार ते त्रिकाळी शक्तिनो भाव नथी पण क्षणिक पर्यायनो
भाव छे.
आत्मामां अनंत शक्तिओ होवा छतां तेमां एवी कोई शक्ति नथी के परने करे के विकारने ऊपजावे, हा,
पररूप के विकाररूप न परिणमे एवी तेनी अतत्त्वशक्ति छे, ने स्वभावरूपे परिणमे एवी तत्त्व शक्ति छे.
अहीं तो अनेकान्तस्वभावी आत्मतत्त्व बताववुं छे, आत्मानो स्वभाव बताववो छे, आत्मानी शक्तिओ
बताववी छे, एटले अशुद्धता तेमां न आवे. जो के राग–द्धेष, दुःख वगेरे विकार छे ते आत्मानी ज एक
ः १४ः आत्मधर्मः १६६