त्रिकाळी स्वभावमां के अनंती शक्तिओमां विकारनी योग्यता पण नथी, जेवो स्वभाव छे तेवी पर्याय थाय तेने ज
आत्मतत्त्व कहे छे. धर्म करनारे क्यां द्रष्टि करवी?–के जेमांथी धर्म आवे त्यां द्रष्टि करवी. देहमांथी के विकारमांथी धर्म
आवतो नथी; एक समयनी विकारनी लायकातनो ज आश्रय करीने श्रद्धा करवाथी मिथ्यात्व छे. मारो आत्मा तो
त्रिकाळ ज्ञान–सुख ने श्रद्धारूपे थवानी ताकातवाळो छे, विकाररूपे के पररूपे न थाय एवो मारो स्वभाव छे,–आम
शुद्धस्वभावना आश्रये श्रध्धा करवाथी सम्यक्त्व थाय छे.
परिणमे एवी तत्त्वशक्ति, अने विकाररूप न एवी अतत्त्वशक्ति आत्मामां छे. आ शक्तिओ ते स्वभाव छे ने
आत्मा स्वभावी छे. आत्मा पोते आवा स्वभाववाळो छे के पोताना स्वभावमां (–द्रव्य, गुण ने शुद्ध पर्यायमां)
तद्रूप–एकाकार थईने परिणमे अने विकाररूपे के पररूपे अतद्रूप रहे एटले के ते–रूपे न परिणमे. अहो! विकाररूपे
परिणमवानो आत्मानो स्वभाव ज नथी तो पछी कर्म तेने विकार करावे ए वात क्यां रही? जेने कर्म उपर ने
विकार उपर द्रष्टि छे तेने आत्माना शुद्ध स्वभावनी द्रष्टि नथी; विकारपूरतो ज आत्माने अनुभवे छे ते मिथ्याद्रष्टि
छे. तेने आचार्यदेव समजावे छे के अरे भाई! विकाररूपे परिणमवानो तारो स्वभाव नथी, तारो स्वभाव तो
शुद्धचैतन्यस्वरूपे थवानो ज छे. ते स्वभाव तरफ जईने तेनी सम्यक्श्रध्धा–ज्ञान करवा अने तेमां लीनता करवी ते
ज मोक्षनो मार्ग छे. आ सिवाय बीजो कोई मोक्षमार्ग नथी. वच्चे शुभभाव होय पण ते मोक्षमार्ग नथी अने ते–रूपे
परिणमवानो आत्मानो स्वभाव नथी. जो ते शुभने मोक्षमार्ग माने तो ते जीवे शुभविकाररूपे नहि परिणमवारूप
आत्मस्वभावने जाण्यो नथी एटले ते मोक्षमार्गथी भष्ट छे.
प्रवेश ज नथी, मारो आत्मा विकार साथे अतद्रूप छे एटले विकारने माटे मारा आत्मानां बारणां बंध छे.
मकानना बारणां बंध करी दे छतां तेमां तो भूतडुं पेसी पण जाय, पण आ चैतन्यमूर्ति आत्मा एवो छे के तेना
स्वभावघरमां जईने मिथ्यात्वरूपी बारणुं बंध करी दे पछी तेमां राग–द्वेष–मोहरूपी भूतडां पेसी शकता नथी;
ज्ञानीने ते रागादि पोताना स्वभावपणे जरा पर भासता नथी.
अतत्त्वशक्तिनी प्रतीत नथी. अहो, एक पण शक्तिथी आत्मानुं स्वरूप बराबर समजे तो तेमां अनंतशक्तिनी
प्रतीत भेगी आवी जाय छे.
शरीर जड, बंने त्रणे काळे जुदेजुदा