Atmadharma magazine - Ank 166
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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तद्रूप–एकाकार थईने परिणमे छे, ने ज्ञानी तो स्वभावमां ज तद्रूपपणे परिणमे छे. आ रीते निर्मळ परिणमन
सहित शक्तिओ ते ज आत्मा छे. आत्मामां शुद्धतारूप थवानी शक्ति तो त्रिकाळ छे; ने अशुद्धतारूप थवानी तो
मात्र एक समयनी पर्यायनी योग्यता छे, तेने खरेखर आत्मा नथी कहेता, केमके तेमां आत्मानी प्रसिद्धि नथी.
*
प्रश्नः– आ वात समजवाथी समाजने शुं लाभ?
उत्तरः– जेनाथी एक जीवने लाभ तेनाथी बधा जीवोने लाभ! समाज ए कोई जुदी वस्तु नथी पण
व्यक्तिओनो समूह ते समाज छे. एटले व्यक्ति ते पण समाजनो एक भाग छे. जेनाथी एक व्यक्तिने लाभ थाय
तेनाथी बधाने लाभ थाय, माटे जे व्यक्तिनाहितनो मार्ग छे ते ज समाजना हितनो मार्ग छे. व्यक्तिना हितनो
मार्ग एक ने समाजना हितनो मार्ग तेनाथी बीजो–एम नथी.
माटे, आ समजीने पोते पोतानुं हित साधी लेवुं. हितनो आ एक ज मार्ग छे अने समाजमांथी पण जे जे
जीवो आ मार्ग समजशे तेओ ज कल्याण पामशे.
परपदार्थमां आत्मा कांई करी शकतो नथी. कां तो पैसा मारा परमेश्वर ने हुं पैसानो दास’ एम त्रीव ममता
करे, अथवा ममता घटाडीने दानादिना भाव करे, पण तेमांय क्यांय धर्म नथी. हुं तो सर्वथी भिन्न चिदानंदस्वरूप छुं
एम स्वरूपनुं भान करीने परनी ममतानो अभाव करवो ने स्वरूपमां ठरवुं तेनुं नाम धर्म छे, आ सिवाय बीजा
लाख–करोड उपाये पण धर्म नथी.
प्रश्नः– आ वात तो मोटा मोटा आचार्योने पण कठण पडे तेवी छे!
उत्तरः– भाई, मोटा कहेवा कोने? शुं मोटा शरीरवाळाने मोटा कहेवा? तो तो माछलुं पण मोटुं हजार
जोजननुं थाय छे, शुं तेने मोटा कहेशो? नहि! तो पैसाथी मोटाने मोटा कहेवा? पदवीथी मोटाने मोटा कहेवा? तो
तो मांस खानारा पापी जीवो पण पैसामां ने पदवीमां मोटा होय छे. शुं तेने मोटा गणशो?–नहि. शरीरथी,
लक्ष्मीथी के पुण्यथी कांई धर्ममां मोटापणुं गणातुं नथी. धर्ममां तो धर्मथी मोटापणुं गणाय छे जेने धर्मनुं भान पण
न होय ते भले लोकोमां आचार्य तरीके पूजातो होय तो पण धर्ममां तेने मोटा गणता नथी. समयसारनी चोथी
गाथामां कहे छे के परथी भिन्न एकत्वस्वरूप आत्माना भान विना समस्त अज्ञानी जीवो परस्पर आचार्यपणुं करे
छे. साचा तत्त्वथी विरुध्ध प्ररूपणा करीने अज्ञानीओ एक–बीजाना अज्ञानने पोषण आपे छे, ते तो ऊंधुंं
आचार्यपणुं छे. जगतना जीवो माने के न माने तेनुं अहीं काम नथी, संसार तो एम ने एम चाल्या ज करशे, अहीं
तो पोते सत्य समजीने पोतानुं हित करी लेवानी वात छे.
भाई, अनंतवार तुं मनुष्य थयो, मोटा मोटा होदा ने राजपद पण अनंतवार मळ्‌या, पण आ चैतन्यराजा
पोते कोण छे तेनी वात पण तें पोतानी करीने पे्रमथी कदी सांभळी नथी. परमां तारुं पद नथी, विकार पण तारुं खरुं
पद नथी, ते तो बधा अपद छे....अपद छे, माटे तेनाथी पाछो फर, ने आ अनंत शक्तिसंपन्न शुद्धचैतन्यपदमां
आव! एक वार तारा निज पदनी अनंत ऋद्धिनुं निरीक्षण कर, तो बहारनी ऋध्धिनो महिमा ऊडी जाय.
सर्वज्ञभगवान जेवी तारी चैतन्यऋद्धि छे. सर्व शास्त्रो तारा चैतन्यपदनो महिमा गाय छे. सांभळ–
“जिनपद निजपद एकता भेदभाव नहि कांई,
लक्ष थवाने तेहनो कह्यां शास्त्र सुखदाई”
भगवान सर्वज्ञ जिनदेव अने तारो आत्मा परमार्थे सरखा छे, ‘जिन’ अने ‘निज’ बंने स्वभावे सरखा
छे, स्वभावमां जराय फेर नथी. आवा स्वभावनुं लक्ष कराववा ज सर्व शास्त्रो कह्यां छे. सर्वे शास्त्रोनो सार
अंतर्मुख थईने आव चैतन्यपदने लक्षमां लेवुं ते ज छे. आवा चैतन्यपदने लक्षमां जेणे न लीधुं तेणे शास्त्रोनुं
तात्पर्य जाण्युं नथी.
आत्माना ज्ञानस्वभावमांथी ज भगवान सर्वज्ञपद पाम्या, अने वाणीमां ते सर्वज्ञस्वभाव बताव्यो. जेणे
तेे सर्वज्ञस्वभावने लक्षमां लीधो ते भगवानना मार्गमां
श्रावणः २४८३ः १४ C