सहित शक्तिओ ते ज आत्मा छे. आत्मामां शुद्धतारूप थवानी शक्ति तो त्रिकाळ छे; ने अशुद्धतारूप थवानी तो
मात्र एक समयनी पर्यायनी योग्यता छे, तेने खरेखर आत्मा नथी कहेता, केमके तेमां आत्मानी प्रसिद्धि नथी.
उत्तरः– जेनाथी एक जीवने लाभ तेनाथी बधा जीवोने लाभ! समाज ए कोई जुदी वस्तु नथी पण
तेनाथी बधाने लाभ थाय, माटे जे व्यक्तिनाहितनो मार्ग छे ते ज समाजना हितनो मार्ग छे. व्यक्तिना हितनो
मार्ग एक ने समाजना हितनो मार्ग तेनाथी बीजो–एम नथी.
एम स्वरूपनुं भान करीने परनी ममतानो अभाव करवो ने स्वरूपमां ठरवुं तेनुं नाम धर्म छे, आ सिवाय बीजा
लाख–करोड उपाये पण धर्म नथी.
उत्तरः– भाई, मोटा कहेवा कोने? शुं मोटा शरीरवाळाने मोटा कहेवा? तो तो माछलुं पण मोटुं हजार
तो मांस खानारा पापी जीवो पण पैसामां ने पदवीमां मोटा होय छे. शुं तेने मोटा गणशो?–नहि. शरीरथी,
लक्ष्मीथी के पुण्यथी कांई धर्ममां मोटापणुं गणातुं नथी. धर्ममां तो धर्मथी मोटापणुं गणाय छे जेने धर्मनुं भान पण
न होय ते भले लोकोमां आचार्य तरीके पूजातो होय तो पण धर्ममां तेने मोटा गणता नथी. समयसारनी चोथी
गाथामां कहे छे के परथी भिन्न एकत्वस्वरूप आत्माना भान विना समस्त अज्ञानी जीवो परस्पर आचार्यपणुं करे
छे. साचा तत्त्वथी विरुध्ध प्ररूपणा करीने अज्ञानीओ एक–बीजाना अज्ञानने पोषण आपे छे, ते तो ऊंधुंं
आचार्यपणुं छे. जगतना जीवो माने के न माने तेनुं अहीं काम नथी, संसार तो एम ने एम चाल्या ज करशे, अहीं
तो पोते सत्य समजीने पोतानुं हित करी लेवानी वात छे.
पद नथी, ते तो बधा अपद छे....अपद छे, माटे तेनाथी पाछो फर, ने आ अनंत शक्तिसंपन्न शुद्धचैतन्यपदमां
आव! एक वार तारा निज पदनी अनंत ऋद्धिनुं निरीक्षण कर, तो बहारनी ऋध्धिनो महिमा ऊडी जाय.
सर्वज्ञभगवान जेवी तारी चैतन्यऋद्धि छे. सर्व शास्त्रो तारा चैतन्यपदनो महिमा गाय छे. सांभळ–
अंतर्मुख थईने आव चैतन्यपदने लक्षमां लेवुं ते ज छे. आवा चैतन्यपदने लक्षमां जेणे न लीधुं तेणे शास्त्रोनुं
तात्पर्य जाण्युं नथी.