छे ने क्यांथी लक्ष ऊठाडवा जेवुं छे ते समज. बहारमां तारुं पद नथी, बहारमां लक्ष करीने अत्यार सुधी रखडयो
माटे त्यांथी लक्ष उठाड अने अंतरमां तारुं चैतन्यपद सर्वज्ञसमान छे–तेमां लक्ष कर. अंतर्मुख लक्ष कर्ये ज कल्याण छे,
माये ते ज करवानुं छे.
तुं छो के नहि?–के हा.
पर छे के नहिं?–हा.
तुं अने पर जुदा छो के एक?–जुदा.
जुदां छे तेनां कार्य जुदा होय के एक? जुदा.
–ए रीते जुदानां कार्यो जुदां छे, माटे जुदा पदार्थो उपरथी द्रष्टि छोड! तेनुं हुं कांई करुं ए मान्यता छोड. ने
–विकार तो क्षणिक छे?
अने तारो स्वभाव कायम रहेनार छे के क्षणिक छे?
–आत्मनो स्वभाव तो कायम रहेनार छे.
बस! क्षणिक विकार जेटलो आत्मा नथी, आत्मा तो कायम टकनार ज्ञानादि अनंत गुणनो भंडार छे; ते
छे. आत्माने परथी भिन्न जाणीने स्वभावमां एकतारूप परिणमन करे ते धर्मी–अंतरात्मा छे, अने जे पर साथे
एकता मानीने विकारमां एकतारूप परिणमन करे ते अधर्मी–बहिरात्मा छे.
थई जाय छे.
स्वभाव नथी. दुःख तो एक समयनुं मात्र पर्यायमां छे, ने आनंद स्वभावथी द्रव्य–गुण त्रिकाळ भरेलो छे. एकला
सिद्धोमां नहि पण बधाय आत्मामां आवो आनंदस्वभाव भरेलो छे, ते स्वभावमां जुए एटली ज वार छे.
स्वभाव छे. आवा आत्मस्वभावने लक्षमां लीधा वगर ‘मोक्ष जोईए ने भव न जोईए’ एवी भावना साची होय
नहि. भवना कारणरूप विभावने जे पोताना स्वभावमां माने तेने भवथी छूटवानी खरी भावना ज नथी. एटले
खरी मुमुक्षुता तेने थइ ज नथी. जेनामां भव नथी एवा आत्मस्वभावनी सन्मुखता वगररहित थवानी साची
भावना होय नहीं.
उत्तरः– अनंत शक्तिना पिंडरूप भवरहित स्वभावनी द्रष्टिमां क्षणे क्षणे तेने मोक्षरूप परिणमन ज थई
प्रधानता नथी पण मोक्ष तरफना परिणमननी ज प्रधानता छे. अने जेनी प्रधानता होय तेनुं ज अस्तित्व गणवामां
आवे छे, माटे समकितीने भव नथी.
ः १४