आत्मधर्म
वर्ष चौदमुं ः सम्पादकः श्रावण
अंक दसमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८३
जिनागमनो प्रसिद्ध ढंढेरो
आ जिनागमनो प्रसिद्ध ढंढेरो छे के मोक्ष माटे ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूति करो.
शुद्ध ज्ञानस्वरूप आत्माना अनुभववडे ज मोक्षमार्गनी शरूआत थाय छे, ने ते अनुभूतिने
ज भगवाने मोक्षनुं कारण फरमाव्युं छे.
कलश १०प मां आचार्यदेव कहे छे के, आत्मा ज्ञानस्वरूपे परिणमे ते ज मोक्षनो हेतु
छे, ने तेना सिवाय अन्य जे कांई छे ते बंधनो हेतु छे; –
–ततो ज्ञानात्मत्वं भवनमनुभूतिर्हि विहितम्।
माटे ज्ञानस्वरूप थवानुं एटले के अनुभूति करवानुं ज आगममां विधान छे.
जुओ, आ जिनागमनो हुकम! जिनागमनी आज्ञा!
मुमुक्षुए एक शुद्ध ज्ञानना आलंबनथी, सहज आनंदथी विलसतुं आ चैतन्यपद
प्राप्त करवा योग्य छे.